Monday, September 30, 2024

#H262 अधूरा पितृ भोज ( Incomplete Ancestral Feast)

#262
अधूरा पितृ भोज ( Incomplete Ancestral Feast)

"कविता में अपने माता पिता का ख्याल न रखने पर भी पितृ भोज करने वाले लोगों के ऊपर लिखी गई है।"

जो जीते जी न पूज सका।
अपनों से हाल न पूंछ सका।
आंसू तू न देख सका।
अब ब्राह्मणों को भोज कराता है।
पितरों को भोग लगाता है।
या लोगों को दिखलाता है।
या सच में अफसोस जताता है।

मरने के बाद
क्या कोई खा पाता है।
क्यों पितरों को भोग लगाता है।
पीपल पर जल चढ़ाता है।
गायों को खाना खिलाता है।
ब्राह्मणों को भोज कराता है
जीते जी न पूज सका।
अपनों से न पूंछ सका।
फिर क्यों अधूरा पितृ भोग लगाता है।
कौओं को बुलाता है।
खाये तो पितरों को लगा
ऐसा माना जाता है।

आज भी तू इंसान को
भूल जाता है।
भूखे को भोज करा,
वो कम से कम
दुआ तो देकर जाता है।
ईश्वर तेरा भला करे।
मन में संतोष दिलाता है।
सच में यही पितरों को
भोग बन सकता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 28 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Sunday, September 29, 2024

#H261 चादर ( Range)

#H261
चादर ( Range)

"कविता आय और खर्चे के संतुलन के ऊपर आधारित है। "

क्या हैसियत जताते हो  ?
कैसे रहते हो ?  कैसे जीते हो ?
कितना खर्चा करते हो ?
क्या आय से ज्यादा खर्च करते हो ?
या कम करते हो।

लोगों की देखा देखी।
अपनी हैसियत ,
बड़ा चढ़ा कर दिखाते हो।
खर्चा करते जाते हो।
जो जरुरी नहीं,
वो भी खरीद लाते हो।
बाईक खरीदने की क्षमता तुम्हारी है
पर कार खरीद लाते हो।
छोटी कार की हैसियत है।
बड़ी खरीद लाते हो।
बड़ा सोफा, बड़ा फ्रिज, स्पिलिट एसी,
ब्रांडेड कपड़े लाकर फंसते जाते हो।
ऋण लेते जाते हो।
हैसियत को धता बताते हो।

चलो यह खरीद लेते हैं।
सस्ता दिख रहा है।
कभी न कभी, काम आ जायेगी।
इसी सोच से तुम फंस जाते हो।
घर में अनावश्यक सामान बढ़ाते हो।
खर्चा बढ़ाते जाते हो।

विक्रेता  ऋण को बढ़ावा देते,
पहले लोन लेकर खर्चा करते हो।
फिर दिन रात,
चुकाने की फिक्र में जीते हो।
बीमारी से ग्रसित हो जाते हो।
आय बढ़ाने के गलत रास्ते भी
चुनने से पीछे नहीं हठते हो।
घबराहट में कुछ लोग
आत्महत्या भी कर जाते।
परिवार को दुखी बनाते हो।

सदा सादा जीवन जियो।
आय से खर्चा कम रखो।
ऐसा कर समझदार बन जाते हो।

आमदनी अठन्नी हो,
और खर्चा रुपईया हो।
अपनी जिंदगी तुम ही नरक बनाते हो। 
बाजारवाद को समझ नहीं पाते हो।

ध्यान रखो
तुम बस पैर इतने ही फैलाओ।
जो चादर छोटी न पड़ जाए।
आज करो खर्चा,
पर कल के लिए कुछ जरूर बचाओ।
बुजुर्ग वर्षों से ऐसा कहते आए।
अगर ऐसा करते हो
तो सदा जीवन में मुस्कुराते हो।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 29 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Thursday, September 26, 2024

#H260 सांसारिक चुनौतियां (Worldly Challenges)

#260
सांसारिक चुनौतियां (Worldly Challenges)

नफरत के बाजार में
प्यार की दरकार में
देश की सरकार में
इंसा है किस हाल में।

हर कोई लगा हुआ है
अपने ही व्यापार में।
किससे लेना है, किसको देना है।
क्यों देना है, क्यों लेना है।
लगा हुआ है
अपने ही माया जाल में।
हर कोई लगा हुआ है
अपने ही व्यापार में।

प्यार बिकाऊ है, इस संसार में।
चमक दिखी जिधर ज्यादा
बह जाता है पैसे की धार में।
प्यार नहीं है सच्चा
जो बिक जाये संसार में।

रिश्ते टूट रहें,
इस भौतिक संसार में।
बच्चे पिछड़ रहे हैं।
बच्चे बिछड़ रहे हैं।
पति पत्नी की तकरार में।

घर टूट रहे हैं।
मंहगाई की मार में।
नासमझ भी
समझदार बन जाते हैं।
इस मतलबी संसार में।
अपनों की तकरार में।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 24 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Wednesday, September 25, 2024

#H259 खुद को बचालो। (Save yourself from quacks)

#259
खुद को बचालो। (Save yourself from quacks)

"कविता में नीम हकीमों से बचने की सलाह दी गयी है। ऐसी दवा बिलकुल न लें, जो सत्यापित न हो"

जगह जगह पर विज्ञापन पाते हो।
बाडी बना लो। शक्ति जगा लो।
हड्डियों को मजबूत करा लो
चड्डी की जगह लंगोट पहन लो।
बाडी को तुम सख्त करा लो।
बस शरीर को धूप खिला लो।
कुछ दिन मेरा तेल लगा लो।

जोश जगा लो, काम बनालो,
अपनों को मना लो।
खुद की इज्जत बचालो
डोले शोले भी बना लो।
सारे जिस्म को,
हड्डी जैसा सख्त बना लो
अरमान जगा लो।
हर दर्द को दूर भगा लो।
बस यह मेरा तेल लगा लो।

हम से बस तुम एक बार,
अपनी नाड़ी दिखवा लो।
हर तरह का इलाज करा लो।
बस यह मेरा तेल लगा लो।
मेरा चूरन और गोली खा लो।
चड्डी की जगह लंगोट पहन लो।
खानदानी राज्य वैद्य अपना लो।

"नासमझ" कहे सबको ।
इन नीम हकीमों से खुद को बचालो।
योग्य चिकित्सक से इलाज करालो।
पद्धति कोई भी हो।
आयुर्वेद हो, अंग्रेजी हो, या यूनानी
सही समय पर सेहत संभालो।
वरना जल्दी खुद को इतिहास बना लो।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 19 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Tuesday, September 24, 2024

#H258 आजाद गुलाम (Independent Slaves)

#258
आजाद गुलाम (Independent Slaves)


"कविता में बाजारवाद के प्रभाव को बताया गया है। कैसे यह कम्पनियां आम आदमी को नियंत्रित कर रही है। "

आंखों को मोबाइल, टीवी खा गया।
इअर फोन कानों को ले गया।
डियोड्रेन्ट नाक का काम कर गया।
तुम्हारा जीवन हराम हो गया।

पिज्जा, ब्रेड, मैदा
पाचन खराब कर गया।
शुगर किडनी को खा गया।
ज्यादा खाना, लीवर खा गया।
मोटापा यूँ ही तू पा गया।
ज्यादा नमक उच्च रक्तचाप दे गया।
आलस्य दिल को खराब कर गया।
लालच, बैचेनी सबको बढ़ाता गया।
जीना मुहाल हो गया।

सोसलमिडिया बुध्दि को खा गया।
दिमाग को बदहाल कर गया।
छोटी गणना भी कैलकुलेटर पर आ गया।

लत से आदमी गुलाम हो गया।
बना कर यह सब,
कोई मालामाल हो गया।
सोचने, खाने, घूमने, पहनने, खरीदने का ,
अंदाज भी पता लगाता गया।
फंसाने के मौके बनाता गया।
हर रोज हजारों को,
आजाद गुलाम बनाता गया।
आम आदमी फंसता चला गया।
खुद को मालिक समझता रह गया।
विकास के नाम पर यह क्या हो गया।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 23 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Monday, September 23, 2024

#H257 कुपोषित मोटापा (Malnourished obesity)

#H257
कुपोषित मोटापा (Malnourished obesity)

खाना हद से ज्यादा खाते
पर उसकाे बिना चबाते,
सीधे निगल जाते ।
बिलकुल भी पचाने की
कोशिश न करते।
रोज उसको फैट बनाते।
मोटे होते जाते।
संतुलित आहार बिलकुल न लेते
प्रोटीन न ले पाते।
कमजोर शरीर के साथ मोटापा पाते।
शरीर में ताकत न पाते,
जल्दी थक जाते।
हीमोग्लोबिन और बोन डेंसिटी
सदा कम ही पाते।
हम तो इसको कुपोषित मोटापा बताते।

खाना खाकर सीधे सोफा पर पड़ जाते
या सोने चले जाते।
उठते जल्दी, दफ्तर आते।
धूप कभी न ले पाते।
रविवार में भी अपनी सुविधा से,
धूप न लेने का बहाना बनाते।
कमजोरी को रोज बढ़ाते।
जल्दी मरीज बन जाते,
फिर गोलियां खाते।
डाक्टर की सलाह,
सक्रिय रहने की बिलकुल नहीं अपनाते।
अनदेखी में समय गंवाते।
फिर कुछ,
कर पाने वक्त न पाते।
सारी कमाई इलाज में लगाते।
वक्त रहते संभल जाओ।
नासमझ यह गुहार लगाते।
खुद को भी चेताते।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 23 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Sunday, September 22, 2024

#H256 अनुशासन (Discipline)

#H256
अनुशासन (Discipline)

"कविता में माँ को संपूर्ण व्यकितत्व की जननी के रुप में बताया गया है। "

रोज सुबह मम्मी मुझे उठाती
ब्रश कराती, और नहलाती।
कपड़े पहनाती, बाल बनाती।
नास्ता कराती, लन्च बाक्स भी देती।
मम्मी मुझे क्या सिखाती।

रोज होमवर्क कराती।
स्कूल बैग मुझसे सजबाती।
डिनर कराती, दूध पिलाती।
जल्दी सुलाती। लोरी गाती।
सुबह को जल्दी उठाती।
मम्मी मुझे क्या सिखाती।

मम्मी सबसे मिलकर
अभिवादन करती।
मैं भी नमस्ते बोलता
बड़ों के पैर भी छूता
सबसे मिलकर रहना बतलाती
गलती पर डांट लगाती
माफ़ी भी मंगवाती।
मम्मी मुझे क्या सिखाती।

मम्मी मेरी
पढ़ना सिखाती, लिखना सिखाती।
बोलना सिखाती, नेतृत्व जगाती
समय का महत्व सिखाती।
हौसला बढ़ाती, सौम्य बनाती
खेलने को आगे बढ़ाती।
कुछ नया करने को,
सदा हौसला बढ़ाती
साथियों के संग में रहना सिखाती
ढंग से सजना भी सिखाती
ढंग से अपना सामान रखना सिखाती।
मम्मी मुझे बड़े होने पर,
काम आने वाले सारे गुण सिखाती।
मम्मी मुझमें अनुशासन जगाती।
यूनिवर्सिटी प्रबंधन में यही सिखाती।
मम्मी मुझे क्या नहीं सिखाती।
"नासमझ" को भी समझदार बनाती।
एडीसन की माँ भी मुझे याद आ जाती।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 20 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Saturday, September 21, 2024

#H255 संधिवार्ता कौशल (Negotiations Skills)

#255
संधिवार्ता कौशल (Negotiations Skills)

"कविता में संधिवार्ता कौशल के महत्व बारे में बताया गया है। "

कोई मसला हो।
कोई हादसा हो गया हो,
कोई दुर्घटना हो गयी हो।
या दो लोगों का झगड़ा हो।
कोई और मकसद हो।
कोई खरीद - बेच का सौदा हो।

एक फैसला कैसे हासिल हो।
यह ही दोनों पक्षों की मुश्किल होती,
समझौता कैसे हो।
दोनों के साथ गरम - नरम होते हैं
गरम गर्मी से हल करने सोचे,
और बने हुए को और बिगाड़े।
नरम कुछ कहने से घबराये।
समझौते में देरी होती जाए।
लोगों का जीवन ,
फिर आगे कैसे बढ़ पाये।
ऐसे में समझौता कैसे हो ?

जब दोनों को ,
कोई न कोई मध्यस्थ मिल जाए।
यह कुछ तेरी सुने, कुछ तुझे सुनाये।
न पूरी तेरी माने,
न पूरी दूसरे पक्ष की मनवायें।
कुछ समझायें, कुछ डर दिखाऐं।
अच्छे, बुरे परिणाम बताये।

मुद्दा जल्दी ही सुलझ जाएं।
दोनों पीछे न हट जायें।
या समझौते से न मुकर जायें।
समझौता लिखकर,
हस्ताक्षर कर पक्का कराऐ।
समझौता करवाने वाले,
गवाह बनकर हस्ताक्षर कर जायें।
जरुरत के हिसाब से
समझौते को नोटेरी भी कराए।
जिस कौशल से समझौता हो
यह संधिवार्ता कौशल कहलाए।
इस कौशल के बिना
हम लोग जीवन न जी पायें।

शादी या सगाई हो,
या बच्चों की मांग,
बीबी की फरमाइश हो।
साक्षात्कार हो।
पदोन्नति का मसला हो।
किसी बजट का अनुमोदन हो।
मीटिंग का संचालन हो।
यह कौशल हर पहलू में काम आये।
नासमझ में
यह कौशल कम पाया जाए।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 18 सितम्बर 2024, ©

रेटिंग 9/10

Friday, September 20, 2024

#H254 गडढे (Potholes on the road)

#H254
गडढे (Potholes on the road)

"कविता में  सड़कों की दुर्दशा, और टोल वसूली के आधुनिक सिस्टम लगाने की सोच के बारे में है। "

सड़कों के गडढे नहीं भर पाऐ।
हाई सिक्योरिटी प्लेट नहीं लग पायी।
अब नया सिस्टम लायेंगे
हर गाड़ी में लगवायेंगें
डिवाइस का पूरा पैसा कमायेंगे।
कम्पनियों को नया धंधा दिलायेंगे।
वाहन मालिकों से अतिरिक्त खर्च करायेंगे।
टोल पूरा कैसे लें
बस इस पर जोर लगाऐंगे।

कब टोल मुक्त होगी सड़क,
यह नहीं बतायेंगे।
हाईवे साक्षात मौत के कुएं बने हुए हैं।
उनको ठीक नहीं करायेंगे।
सड़कों के गडढे नहीं भर पाऐ।
हर तरफ विकास का गुणगान कराऐंगे।
नये बनाने का श्रेय अगर लेते हो
पुराने हाईवे की मरम्मत के जिम्मेदार
किस खाते में रखे जायेंगे ?

जनसेवा को पीछे छोड़
आय पर सारा ध्यान लगाऐंगे।
अब सरकार को भी प्राइवेट जैसा पायेंगे।
सड़कों के गडढे कब भर पायेंगे।
हम सड़क पर सुरक्षित कब हो पायेंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 17 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.4/10

Thursday, September 19, 2024

#H253 वो दिन कब आयेगा (When will that day come)

#253
वो दिन कब आयेगा (When will that day come)

"कविता में देश को विकसित बनने के लिए युवाओं से की जाने वाली अपेक्षाओं के बारे में बताया गया है । "

जब तक जन जन न जागेगा
तब तक देश न आगे जायेगा।
समस्याओं को अपनी मानेगा।
तब ही देश आगे जायेगा।

समस्याओं को जड़ से मिटाऐगा।
गलती नहीं दौहराऐगा।
खुद समस्या नहीं बन जायेगा
तब देश विकसित हो पाऐगा।
युवा ही देश को आगे ले जायेगा।

अपने स्तर पर, हर किसी के द्वारा
अपना सहयोग दिया जायेगा।
कौशल को विकसित करेगा ।
गुणवत्ता को उच्च बनाऐगा।
तब ही देश आगे जायेगा।

अपनी उत्पादकता को बढ़ाता जायेगा।
कोई भी  युवा खाली नहीं रह जायेगा
काम करेगा या औरों को काम को देगा।
तब ही देश आगे जायेगा।

समय का महत्व समझ जायेगा।
खुद के खर्चे घटायेगा।
और अपना निवेश बढ़ाऐगा।
स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण से समझौता
बिलकुल नहीं किया जायेगा।
तब ही देश आगे जायेगा।

युवाओं में अनुशासन आ जाऐगा।
खुद की आय बढ़ाऐगा।
देश की जीडीपी बढ़ वाऐगा।
देश की आय बढ़ वाऐगा।
तब ही सच्चा देशभक्त बन पाऐगा।
तब ही देश आगे जायेगा।

वो दिन जब आयेगा
देश विकसित हो जाऐगा।
नासमझ पूछ रहा है
यह दिन कब आयेगा।
जब देश विकसित हो जाऐगा।
कोई वंचित नहीं रह जायेगा।
लौटकर पैसा वापस ,
जनता के पास आयेगा।
सड़क, बिजली, पानी,
अनाज, घर देने का नारा,
चुनाव से बाहर हो जाऐगा।
हर कोई खुशहाल हो जाऐगा।
वो दिन कब आयेगा।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 14 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.6/10

Wednesday, September 18, 2024

#H252 चड्डी (Underwear)

#H252
चड्डी (Underwear)

भूखे बच्चे शहर में घूम रहे हैं।
सर्दी में वो ठिठुर रहे हैं।
फटे पुराने पहन रहे हैं।
गर्मी की मार झेल रहे हैं।
बहुत से बच्चे,
बिन चड्डी के घूम रहे हैं।

सब पैसों से इंसा को तोल रहे हैं
संपन्न ठण्ड में
ओढ़ दुशाला घूम रहे हैं।
ये बच्चे ठण्ड में,
छुपने की जगह ढूंढ रहे हैं।

बारिश की मार वो झेल रहे हैं।
सिर ढकने को जगह ढूंढ रहे हैं।
संपन्न बच्चे  बारिश में
छाता लेकर,
बारिश का मजा ले रहे हैं।

घर के अन्दर बच्चे बता रहे हैं
चड्डी टाइट है, काट रही है,
छोटी है, बड़ी है, बता रहे हैं।
ये बेचारे तो चड्डी को ही तरस रहे हैं।
बिन चड्डी के बच्चों को
हम सड़क पर घूर रह हैं।

कब तक हम गरीबी दूर करेंगे।
बच्चे बेचारे तन को ढक पायेंगे।
हम सड़क पर बिन चड्डी के
बच्चों को घूमता नहीं पायेंगे।
ऐसा भारत हम कब पायेंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 18 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Tuesday, September 17, 2024

#H251 सुरक्षा को जियोगे तो... ( Live Safety in life)

#H251
सुरक्षा को जियोगे तो... ( Live Safety in life)

"कविता में विश्वकर्मा दिवस पर सुरक्षा को जीने का महत्व बताया गया है। "

सुरक्षा को जियोगे, तो जिंदा रहोगे।
रोज अपनों से मिलोगे, जिंदगी खुलकर जिओग।
तभी दोस्तों संग पिओगे, मस्ती करोगे।
वरना अपनों को, दुनिया में बेसहारा छोड़ जाओगे।
जल्दी ईश्वर ही से मिलोगे।
अफ़सोस भी न कर सकोगे।
सुरक्षा को जियोगे, तो जिंदा रहोगे।

सुरक्षा को जियोगे, तो सलामत रहोगे।
सही से जिंदगी जिओगे।
वरना मजबूर होके जिओगे।
गलती पर पछताते करते रहोगे।
अपनों के लिए कुछ न कर सकोगे।
सुरक्षा को जियोगे, तो जिंदा रहोगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 17 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.4/10

Monday, September 16, 2024

#H250 प्राइवेट स्कूल टीचर (Private School Teacher)

#H250
प्राइवेट स्कूल टीचर (Private School Teacher)
"कविता में भ्रष्ट प्राइवेट स्कूलों मे टीचर की दशा और शिक्षा विभाग से अनदेखी के बारे में बताया गया है। "

प्राइवेट स्कूल टीचर भी
पूरी शिक्षा करके आए।
पर अपना हक पूरा न पाए।
अकुशल कामगार से भी,
कम वेतन पाए।
टीचर वेतन बतलाने से कतराए।

स्कूल बच्चों से पूरी फीस पाए।
दस्तावेजों में पूरा वेतन दिखलाए।
पर पूरा वेतन न पाए।
पीएफ, ग्रेच्युटी, न पाए।
चिकित्सा सुविधा से वंचित रह जाए।
मौलिक अधिकारों का
खुलेआम हनन होता जाए।

स्कूल तो  गैर - लाभकारी संस्थान होते
फिर स्कूल मालिक कैसे,
स्कूलों की श्रंखला बनाता जाए।
टीचर पूरा हक न पाए।
कैसे मन मार कर पढ़ाने वाले
देश का अच्छा भविष्य बनाए।
"नासमझ" को यह समझ न आए।

टीचर शोषित होता जाए।
अभिभावक लुटता जाए।
किताबें, नोटबुक, यूनिफॉर्म,
अपने ही स्रोतों पर बेचा जाए।
उच्च दरों पर स्कूल बस चलाए।
शैक्षिक दौरों के नाम पर
अच्छा शुल्क वसूला जाए।
अभिभावक लुटता जाए।

स्कूलों, नेताओं, शिक्षा बोर्ड की
मिलीभगत का संकेत आए।
क्यों यह घोटाले
प्रशासन को नजर न आए।
सब मिलकर
सरकारी स्कूलों का बेड़ागर्क कराए।

मजेदार बात यह है, उच्च शिक्षा के लिए,
सरकारी कालेज ही उत्तम कहलाए।
प्राथमिक शिक्षा में प्राइवेट स्कूलों का ही
गुणगान क्यों आए।
टीचर पूरा हक न पाए।
शिक्षा कब भ्रष्टाचार से मुक्त हो पाए।
जल्दी ऐसा होने की, आशा नजर न आए।
पहले स्कूल शिक्षा के मन्दिर होते थे
समाज सेवा के लिए बनते थे।
अब तो शिक्षा व्यापार ही कहलाए।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 15 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.8/10

Sunday, September 15, 2024

#H249 गोल (Circle)

#H249
गोल (Circle)

"कविता गोल शब्द  के ऊपर आधारित है। पहिऐ का आविष्कार मानव सभ्यता की एक बहुत बड़ी खोज है।"

सूरज गोल, चन्दा गोल, दुनिया गोल,
सारे घूमें गोल - गोल।
बतलाता हमको भूगोल।

आंखें गोल,
तना पेड़ का, होता गोल।
बहुत सारे फूल होतें है गोल।
फिर क्यों न भाऐ हमको गोल।

लडडू बोलो तो दिमाग आऐ गोल - गोल।
रसगुल्ले भी होते गोल।
खाने वाला बन जाऐ गोल मटोल।

सिक्के होते गोल
चलते हैं अनमोल।
कैरम की गोटियां होती गोल।
न टिकती हैं एक ओर।
गेंद होती चारों ओर से गोल।
घूमें हर बार गोल - गोल।
बिना गोल तेरा जीवन है गोल।

जब से मानव ने जाना गोल।
चारों ओर जीवन का
बदल गया है मोल।
साइकिल का पहिया घूमे गोल
घर में पंखा घूमे गोल
घड़ी की सुईयां घूमे गोल।
लट्टू भी घूमे गोल
सब घूमे गोल गोल।
धुरी की कीमत है अनमोल।

सिलिंडर की गति होती आगे - पीछे,
पर पिस्टन राड होती, गोल।
रोबोट भी काम पूरा न कर पाऐ
जब तक न घूमे गोल।

दुनिया में सारी गति
हो रही है गोल - गोल।
नर्तक नाचे गोल - गोल।
दुनिया है अनमोल।
वो न चल सके जीवन में
जो न समझे गोल।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 12 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.6/10

Saturday, September 14, 2024

#H248 क्वालिटी सर्कल टीम उन्नति (Quality Circle Team Unnati)

#H248
क्वालिटी सर्कल टीम उन्नति (Quality Circle Team Unnati)
"कविता हमारी क्वालिटी सर्कल टीम " उन्नति "  को ध्यान में रख कर लिखी गई है। "

"उन्नति" ने ठाना है
समस्याओं को जड़ से मिटाना है
उन्नत होते जाना है।
यह हमारा जमाना है।

कौशल विकसित करते जाना है।
उत्पादकता बढ़ाना है
खर्चे घटाना है लगता
गुणवत्ता बढ़ाना है
सुरक्षा को अचूक बनाना है
गलती नहीं दौरान है।
मुनाफा बढ़ाना है।

"उन्नति" ने ठाना है
आय को बढ़ाना है।
समाज को लौटाना है।
उन्नत होते जाना है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 04 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.2

Friday, September 13, 2024

#H247 जनता की दुविधा (Public's Dilemma)

#H247
जनता की दुविधा (Public's Dilemma)

वो नफरत फैलाऐ
ऐसा कोई और बताऐ
खुद प्यार की दुकान चलाऐ।
धन्धा दोनों का
चकाचक चलता जाऐ।
जनता पिसती जाऐ
हर बार वादों के बाजार में
सस्ती दर में ठगी जाऐ।
कहीं खटाखट की आवाज आऐ।
कोई विश्व गुरु बनने की बात से
लोगों का दिमाग गुमाऐ।

मंहगाई, बेरोजगारी, पर
कोई भी रणनीति न लाऐ।
भ्रष्टाचार में संलिप्त होकर भी
न्यायालय पर संदेह जताऐ।
जाति, धर्म, की छाया से देश को,
कोई बाहर लाने का साहस न जुटाऐ।
लोकतंत्र है यारो,
संख्याबल से ही गंगा बहती जाऐ।
फिर चाहे, उल्टी ही क्यों न बहती जाऐ।

किसी का बस चले
तो देश बेच आऐ।
आतंकी को मसीहा बताऐ।
दुश्मन से गलबाहियाँ डाले।
प्यार की दुकान चलाने का
खूब दावा भरवा वाऐ।
संविधान बचाने की बात करे, वो,
जीवन जमानत पर कटता जाऐ।
खुद की जाति का निर्धारण नहीं है
जाति जनगणना की बात दोहराऐ।
दूजे की जाति बार - बार बताऐ।
प्यार की बात करते - करते
नफरत फैलाने की दुकान सजाऐ।

दूजा अच्छे दिनों के सपनों के वायदे में,
जनता के सपनों को हरता जाऐ।
जनता पिसती जाऐ।
एक हाथ में काना, दूजे में अंधा।
अब तो जनता को भगवान बचाऐ।
जनता की दुविधा से
उसको अब कौन बचाऐ ?
लोकतंत्र तो भ्रष्टाचारियों से 
हर बार ठगा जाऐ।
नासमझ को लोकतंत्र समझ न आऐ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 12 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Thursday, September 12, 2024

#H246 समझदार (Intelligent)

#H246
समझदार (Intelligent)

सच को सच समझना ,
बचपना था, नासमझ।
सच को झूठ,
झूठ को सच,
आधा सच बताना,
आधा सच  छिपाना,
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम
रह गये, नासमझ।

कब बताना, कब छुपाना
कब दिखाना, कब छुपाना
कब मुस्कुराना, कब आंखें दिखाना
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम
रह गये, नासमझ।

कब रोना, कब रुलाना।
कब बोलना, कब चुप रहना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

कब रुठना, कब मान जाना।
कब मनाना, कब धमकाना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

कब गैरों पर भरोसा दिखाना,
कब अपनों का हाथ पकड़ कर चलना।
कब अपनों को अकेला छोड़ जाना,
अपनों पर भरोसा दिखाना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

कब मांगना, कब देना।
कब खर्च करना, कब बचाना,
बचाया हुआ निवेश करना,
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

कब विश्वास करना, कब शक करना,
कब जिद्द मानना, कब मना करना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम
रह गये, नासमझ।

कब प्यार करना, कब दुत्कारना।
कब सिर सहलाना, कब थप्पड़ लगाना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम
रह गये, नासमझ।

कब बेज्जती का घूंट पी जाना,
कब बदले का दांव लगाना,
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

कब खुशी मनाना, कब खुशी छुपाना।
कब दुख जताना, कब दुख छुपाना।
कब दुख मे साथ देना।
आ गया तो समझदार बन गये।
वरना आज भी तुम ,
रह गये, नासमझ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 10 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.7/10

Wednesday, September 11, 2024

#H245 भिन्न (Fraction)

#H245
भिन्न (Fraction)

"कविता में भिन्न को छोटे बच्चों के लिए समझाया गया है "

बताओ बच्चों भिन्न क्या होती है ?
जिसको पता है हाथ उठाऐ।
यहाँ भिन्न (Fraction) भी भिन्न (Different) से अलग होती है।
आओ समझें भिन्न क्या होती है ?

एक गोला बनाओ, इसको गोला कहते हैं।
इसको एक बटा एक  (1/1) भी कहते हैं।

गोला बनाओ, बीच से काटो।
दो भाग हो जाते हैं।
एक भाग को आधा और
दूजे को भी आधा कहते हैं।
इसको एक बटा दो  (1/2) भी कहते हैं।

गोला बनाओ।
बराबर तीन भाग में काटो।
तीन भाग हो जाते हैं।
हर एक भाग को तिहाई कहते हैं।
इसको एक बटा तीन (1/3) भी कहते हैं।

गोला बनाओ, बीच से काटो।
दो भाग हो जाते हैं।
एक भाग को आधा और
दूजे को भी आधा कहते हैं।
फिर इसको बीच से काटो
फिर दूसरे को भी बीच से काटो
चार भाग मिल जाते हैं।
एक भाग को चौथाई कहते हैं
इसको एक बटा चार  (1/4) भी कहते हैं।

इसको भिन्न कहते हैं।
एक "अंश (Numerator)" कहलाता है।
दूसरे को "हर (Denominator)" बताते हैं।
इसी तरह भिन्न को
आगे ले जाते हैं।
भागों की संख्या को "हर" बताते है
हिस्से को "अंश" कहलाते हैं।
"अंश" को ऊपर और
"हर" को नीचे लिखते हैं।
भिन्न से बिलकुल नहीं घबराते हैं।

जोड़ - घटा के लिए
"हर" एक जैसा बनाते हैं
फिर जोड़ या घटा कर जाते हैं।
सरल बनाकर परिणाम बताते हैं।

भिन्न से भिन्न को
गुणा करने के लिए
"अंश" से "अंश" गुणा करते हैं
"हर" को "हर" से गुणा करते हैं।
सरल बनाकर परिणाम बताते हैं।

भिन्न से भिन्न को
भाग करने के लिए
एक भिन्न को पलट देते हैं
यानि पहले के "अंश" में
दूजे के "हर"  से
पहले के "हर" में
दूजे के अंश से
गुणा कर जाते हैं।
सरल कर परिणाम बताते हैं।
इसी तरह सवाल हल करते जाते हैं।

अंश जब हर से छोटा हो (3/5)
समान भिन्न बताते हैं।
अंश जब हर से बड़ा हो (7/3)
असम भिन्न बताते हैं।
जब पूर्णांक और भिन्न का मिश्रण हो (1, 1/3)
मिश्रित भिन्न बताते हैं।
भिन्न में पूर्णांक को सही बताते हैं।
जब अलग-अलग भिन्न होने के बावजूद
एक ही मूल्य बताती हो।
समतुल्य भिन्न बताते हैं। (1/3, 2/6)
जब भिन्न में अंश इकाई हो।
इकाई भिन्न बताते हैं। (1/3)

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 06 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Tuesday, September 10, 2024

#H244 लावा (Lava)

#H244
लावा (Lava)

धरती जब तपने लग जाऐ
गर्म भाप निकलती आऐ
धरती के अन्दर द्रव खोल जाऐ
धरती ऊपर उठने लगे।
धरती फाड़कर अति गर्म द्रव बाहर आऐ
यही लावा कहलाऐ।
यह जगह ज्वालामुखी कहलाऐ।

लावा धरती पर बहता जाऐ
इसमें जो भी आये
पलभर में भस्म हो जाऐ।
ठण्डा होकर यह लावा
बहुत उपयोगी बन जाऐ।

ठण्डा होने पर ज्वालामुखी सो जाऐ
धरती में दबाव बड़े जब
फिर से ज्वालामुखी फट जाऐ।
दुनिया में ऐसी घटनाऐं घटती आऐं।

ज्वालामुखी फटे तो
बहुत विनाश कर जाऐ।
अपने अन्दर का दबाव कम कर जाऐ।
आदमी के अन्दर का गुस्सा भी
खुद को हल्का कर जाऐ।
पर रिश्तों का बहुत नुकसान कराऐ।
आंसू बन लावा आंखों से आऐ।
कभी कभी ये आंसू अपनापन जगाऐ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 08 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Monday, September 9, 2024

#H243 शून्य (Zero)

#243
शून्य (Zero)

मूल्य नहीं है इसका कुछ भी
पर औरों का मूल्य बनाऐ।
जोड़ने पर न बढ़ाऐ,
घटाने पर न घटाऐ
जब गुणा करें इससे
सब खत्म हो जाऐ
भाग करें तो असंख्य बना दे
यह शून्य की महिमा कहलाऐ।

बाऐं रखो तो मान न बदले
दायें रखो दस गुना करे।
लिखा जो दशमलव के साथ
दशमांश बनाता जाऐ।
यह शून्य की ताकत बतलाऐ।

शून्य जीवन में हमें
अच्छी और बुरी संगति का पाठ पढ़ाऐ।
अच्छी संगत बलशाली बनाऐ
बुरी संगत कमजोर बनाऐ।
शून्य हमें यही सिखाऐ।
जहाँ रखोगे, वैसा ही मूल्य बताऐ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 07 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Sunday, September 8, 2024

#H242 एक रविवार (Sunday)

#H242
एक रविवार (Sunday)

आज रविवार है
बारिश का भी वार है
पकोड़ों की दरकार है।
मेहमान मेरे द्वार है।

छुट्टी पर,
घर की सरकार है।
मुझे बीबी से प्यार है।
बीबी हाथ से लाचार है।
मम्मी बीमार है।
बड़ा बच्चा घर के बाहर है

मेरे कंधों पर सारा दारोमदार है
किचन में
बर्तनों को मेरा इंतजार है।
अभी सब्जी काट रहा हूँ।
आटा बुला रहा है।
सबको लंच का इंतजार है।
आज यह मेरे ऊपर किचन का वार है।
आज रविवार है।
आज रविवार है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 08 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 8.5/10

Saturday, September 7, 2024

#H241 भटकाव (Distractions)

#H241
भटकाव (Distractions)

मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम
दर दर भटक रहा सुबह से शाम
मंदिर क्यों मैं जाऊँ
जब वहाँ नहीं मिलेंगे मेरे श्याम।

संत सभी हैं कहते आये
कण कण में रहते हैं श्याम
अब तक मैं खुद से न मिला।
कब मिलाओगे मुझसे, मुझको।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।

कर्म कर रहा हूँ, मैं
मर्म न समझे मेरा मन।
कब तक भटकेगा मेरा मन।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।
मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम।

मोह पाश में फंसा पड़ा हूँ
तेरे मेरे में लगा पड़ा हूँ।
दान - भक्ति से दूर खड़ा हूँ।
भौतिक सुख दुख में जकड़ा खड़ा हूँ।
भटकाव में फंसा हुआ हूँ।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।
मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 06 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Friday, September 6, 2024

#H240 महान भारतीय कवि (Great Indian Poets)

#H240

महान भारतीय कवि (Great Indian Poets)


"कविता में भारतीय कवियों को श्रद्धांजलि देने की एक कोशिश की गयी है। "

बाल्मीकी रचे "रामायण"
जनमानस को  एक दिशा दिऐ।
वेद व्यास रचे "महाभारत"
धर्म के साथ रहो, यह ज्ञान दिऐ।

कालिदास रचे "शाकुन्तलम"
प्रेम को नये रूप दिऐ।
रैदास रचे "प्रभु जी तुम चंदन हम पानी"
भक्ति के नये रुप दिये।

चन्द्रवरदायी रचे "पृथ्वीराजरासो"
वीररस को अनूठी आवाज दिऐ।

कबीर बोल बने "बीजक"।
सामाजिक बुराईयों पर
कुठाराघात किये।

तुलसी रचे "रामचरितमानस"
जनमानस को जीवन का आदर्श दिऐ।

सूरदास दिये "सूरसागर",
प्रेम का सागर प्रदान किऐ।
मीरा बाई रची "गोबिंद टीका",
कान्हा भक्ति के अनूठे रुप दिये।
रसखान रचे "सुजान - रसखान"
कृष्ण भक्ति को नये आयाम दिऐ।
रहीम लिखे "रहीम - सतसई"
भक्ति रस के नये रुप दिये।

जयशंकर रचे "कामायनी"
जीवन दर्शन के अलग रुप दिऐ।
रामधारी सिंह दिनकर रचे "रश्मिरथी"
कर्म को कुल से उंचा स्थान दिऐ।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र लिखे "प्रेम-मालिका"
प्रेम के नये रुप दिऐ।
महादेवी वर्मा रची "सांध्यगीत"
दर्शन के अलग रुप दिऐ।

नासमझ सबको प्रणाम किऐ
जिन्होंने समय समय
पर जनमानस को ज्ञान दिये।
नाम नहीं है जिनका इसमें
उनको भी मेरा प्रणाम मिले।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 06 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

Thursday, September 5, 2024

#H239 प्रिय शिक्षक (Beloved Teachers)

#H239
प्रिय शिक्षक (Beloved Teachers)

शिक्षक से हम ज्ञान पाते ।
शिक्षा से दुनिया अच्छे से जान पाते।
बिन शिक्षा के अनपढ़ कहलाते।
शिक्षक ही भगवान से मिलवाते।

शिक्षक ही हमें पढ़ना, लिखना, गणना
और अपनी बात रखना सिखाते।
तर्क करना, शिक्षक सिखाते।
शिक्षक ही हमें अनुशासित बनाते।
सच जानने की क्षमता जगाते।
शिक्षक, हमें अच्छा इंसान बनाते।
शिक्षा से ही हम जीवन में सफल हो  पाते।
शिष्य सफल हो, तो शिक्षक खुश हो जाते।

शिक्षक दिवस पर हम शिक्षकों के
सम्मान में हाथ जोड़कर शीश झुकाते।
आप सभी स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें।
हम ईश्वर से ऐसी दुआ लगाते।
आपका आशीर्वाद बना रहे, हम पर
आप सब से ऐसी आश लगाते।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 05 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 8.5/10

Wednesday, September 4, 2024

#H238 आज की दुनियादारी। ( Today's life)

#H238
आज की दुनियादारी। ( Today's life)

चुगलखोरों से बचो ।
तुम से सच कहने की
हिम्मत न जुटाऐंगें।
बस चुगली ही लगाऐंगे।

मुफ्तखोरों से बचो।
तुझे कभी न खिलाऐंगे।
बस खाकर भूल जायेंगे।

आस्तीन के सांपों से बचो
सारा दूध पी भी जायेंगे।
पर डसने से बाज न आयेंगे।

अपनों से बचो।
एक दिन तो दुश्मन बन जायेंगे।
जिस दिन आगे निकले तुम
दिल से खुश न हो पायेंगे।

मुस्कुराते रहने वालों से बचो।
मीठेपन के पीछे जहर लगाऐंगे।
भले बनते दिखेंगे।
काट तुम्हारी जरूर करेंगे।

उधार लेने वालों से बचो।
वापस न लौटाऐंगे।
लेकर पैसा उड़ा देंगे।
मांगने पर मुंह बनाऐंगे।

जलने वाले से बचो।
तेरी सफलता न पचा पाऐंगे।
कुछ न सही तो
नजर जरूर लगाऐंगे।

किस किस से बचो।
आज की दुनियादारी में
हम कहाँ सब बता पाऐंगे।
नासमझ भी अपना सिर खुजालऐंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक : 04 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 8/10

Tuesday, September 3, 2024

#H237 संतोष (Satisfaction)

#H237
संतोष (Satisfaction)

"कविता में सब कुछ हासिल होने पर भी हाय हाय करने की प्रवृत्ति को बताया गया है। "

हर चीज हासिल है इन्हें
घर, धन - दौलत, औलाद,
यह जहाँ में हाय हाय किये जाते हैं।

औरों को छोटा, अपने को बड़ा बताते हैं
पैसे की भूख नहीं मिटा पाते हैं।
पैसा कैसा भी हो, लाते जाते हैं।
यह जहाँ में हाय हाय किये जाते हैं।

एक दिन एक कफ़न में विदा हो जाते हैं।
सब कुछ यहीं छोड़ जाते हैं।
फिर क्यों लूट - खसोट,
छल - कपट में जीवन बिताते हैं।
हाय हाय कर जीवन बिताते हैं।

सब कुछ हासिल होने पर भी
सुख से बंचित रह जाते हैं।
संतोष कभी हासिल नहीं कर पाते हैं।
नासमझ को नासमझ बताते हैं।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 03 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 8.5/10

Sunday, September 1, 2024

#H236 हमदर्द (Sympathizer)

#H236
हमदर्द (Sympathizer)

हमदर्द साथ थे, वक्त बेरहम था।
हम दर्द सहते रहे।
हमदर्द, हमदर्द न हो सके।

वक्त बेदर्द से हमदर्द हो गया।
दर्द को तो ले गया।
हमको हमीं से जुदा कर गया।
हमदर्द साथ बैठे रहे।
हम तो दर्द के हमसफ़र हो गये।

ऐ "नासमझ" समझ ले।
दर्द ही तेरा हमदर्द है।
दर्द ही हमसफर है।
जमाना तो बहुत बेदर्द है।
उसे तो सदा अपनी पड़ी है।
किसी और की उसको कहाँ कद्र है।

हमदर्द साथ थे, वक्त बेरहम था।
हम दर्द सहते रहे।
हमदर्द, हमदर्द न हो सके।
हम दर्द के हमसफ़र हो गये।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 31 अगस्त 2024,©

रेटिंग 8/10



#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475 7 मासूम (7 Innocents) पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई, सात मासूमों की जान चली गई। स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई। घरों में घनघोर अंधेरा क...