Tuesday, September 24, 2024

#H258 आजाद गुलाम (Independent Slaves)

#258
आजाद गुलाम (Independent Slaves)


"कविता में बाजारवाद के प्रभाव को बताया गया है। कैसे यह कम्पनियां आम आदमी को नियंत्रित कर रही है। "

आंखों को मोबाइल, टीवी खा गया।
इअर फोन कानों को ले गया।
डियोड्रेन्ट नाक का काम कर गया।
तुम्हारा जीवन हराम हो गया।

पिज्जा, ब्रेड, मैदा
पाचन खराब कर गया।
शुगर किडनी को खा गया।
ज्यादा खाना, लीवर खा गया।
मोटापा यूँ ही तू पा गया।
ज्यादा नमक उच्च रक्तचाप दे गया।
आलस्य दिल को खराब कर गया।
लालच, बैचेनी सबको बढ़ाता गया।
जीना मुहाल हो गया।

सोसलमिडिया बुध्दि को खा गया।
दिमाग को बदहाल कर गया।
छोटी गणना भी कैलकुलेटर पर आ गया।

लत से आदमी गुलाम हो गया।
बना कर यह सब,
कोई मालामाल हो गया।
सोचने, खाने, घूमने, पहनने, खरीदने का ,
अंदाज भी पता लगाता गया।
फंसाने के मौके बनाता गया।
हर रोज हजारों को,
आजाद गुलाम बनाता गया।
आम आदमी फंसता चला गया।
खुद को मालिक समझता रह गया।
विकास के नाम पर यह क्या हो गया।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 23 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9.5/10

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