#H261
चादर ( Range)
"कविता आय और खर्चे के संतुलन के ऊपर आधारित है। "
क्या हैसियत जताते हो ?
कैसे रहते हो ? कैसे जीते हो ?
कितना खर्चा करते हो ?
क्या आय से ज्यादा खर्च करते हो ?
या कम करते हो।
लोगों की देखा देखी।
अपनी हैसियत ,
बड़ा चढ़ा कर दिखाते हो।
खर्चा करते जाते हो।
जो जरुरी नहीं,
वो भी खरीद लाते हो।
बाईक खरीदने की क्षमता तुम्हारी है
पर कार खरीद लाते हो।
छोटी कार की हैसियत है।
बड़ी खरीद लाते हो।
बड़ा सोफा, बड़ा फ्रिज, स्पिलिट एसी,
ब्रांडेड कपड़े लाकर फंसते जाते हो।
ऋण लेते जाते हो।
हैसियत को धता बताते हो।
चलो यह खरीद लेते हैं।
सस्ता दिख रहा है।
कभी न कभी, काम आ जायेगी।
इसी सोच से तुम फंस जाते हो।
घर में अनावश्यक सामान बढ़ाते हो।
खर्चा बढ़ाते जाते हो।
विक्रेता ऋण को बढ़ावा देते,
पहले लोन लेकर खर्चा करते हो।
फिर दिन रात,
चुकाने की फिक्र में जीते हो।
बीमारी से ग्रसित हो जाते हो।
आय बढ़ाने के गलत रास्ते भी
चुनने से पीछे नहीं हठते हो।
घबराहट में कुछ लोग
आत्महत्या भी कर जाते।
परिवार को दुखी बनाते हो।
सदा सादा जीवन जियो।
आय से खर्चा कम रखो।
ऐसा कर समझदार बन जाते हो।
आमदनी अठन्नी हो,
और खर्चा रुपईया हो।
अपनी जिंदगी तुम ही नरक बनाते हो।
बाजारवाद को समझ नहीं पाते हो।
ध्यान रखो
तुम बस पैर इतने ही फैलाओ।
जो चादर छोटी न पड़ जाए।
आज करो खर्चा,
पर कल के लिए कुछ जरूर बचाओ।
बुजुर्ग वर्षों से ऐसा कहते आए।
अगर ऐसा करते हो
तो सदा जीवन में मुस्कुराते हो।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 सितम्बर 2024,©
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