#H241
भटकाव (Distractions)
मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम
दर दर भटक रहा सुबह से शाम
मंदिर क्यों मैं जाऊँ
जब वहाँ नहीं मिलेंगे मेरे श्याम।
संत सभी हैं कहते आये
कण कण में रहते हैं श्याम
अब तक मैं खुद से न मिला।
कब मिलाओगे मुझसे, मुझको।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।
कर्म कर रहा हूँ, मैं
मर्म न समझे मेरा मन।
कब तक भटकेगा मेरा मन।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।
मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम।
मोह पाश में फंसा पड़ा हूँ
तेरे मेरे में लगा पड़ा हूँ।
दान - भक्ति से दूर खड़ा हूँ।
भौतिक सुख दुख में जकड़ा खड़ा हूँ।
भटकाव में फंसा हुआ हूँ।
कब दर्शन दोगे मेरे श्याम।
मैं खुदको ढूंढ रहा घनश्याम।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 06 सितम्बर 2024,©
रेटिंग 9/10