Monday, September 30, 2024

#H262 अधूरा पितृ भोज ( Incomplete Ancestral Feast)

#262
अधूरा पितृ भोज ( Incomplete Ancestral Feast)

"कविता में अपने माता पिता का ख्याल न रखने पर भी पितृ भोज करने वाले लोगों के ऊपर लिखी गई है।"

जो जीते जी न पूज सका।
अपनों से हाल न पूंछ सका।
आंसू तू न देख सका।
अब ब्राह्मणों को भोज कराता है।
पितरों को भोग लगाता है।
या लोगों को दिखलाता है।
या सच में अफसोस जताता है।

मरने के बाद
क्या कोई खा पाता है।
क्यों पितरों को भोग लगाता है।
पीपल पर जल चढ़ाता है।
गायों को खाना खिलाता है।
ब्राह्मणों को भोज कराता है
जीते जी न पूज सका।
अपनों से न पूंछ सका।
फिर क्यों अधूरा पितृ भोग लगाता है।
कौओं को बुलाता है।
खाये तो पितरों को लगा
ऐसा माना जाता है।

आज भी तू इंसान को
भूल जाता है।
भूखे को भोज करा,
वो कम से कम
दुआ तो देकर जाता है।
ईश्वर तेरा भला करे।
मन में संतोष दिलाता है।
सच में यही पितरों को
भोग बन सकता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 28 सितम्बर 2024,©

रेटिंग 9/10

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