Monday, April 29, 2024

#H132 अभी भी मैं नादान हूँ (I'm still immature)

#H132

अभी भी मैं नादान हूँ

"कविता में वर्तमान और हासिल का मज़ा लेकर जीवन जीने के बारे में है"

अभी भी मैं नादान हूँ

मैं आज परेशान हूँ

लगता है अभी भी मैं नादान हूँ

मैं जो कर सकता था

वो लेके बैठा रहा

जो नहीं कर सकता  था

उस पर योजना बनाता रहा

मैं आज परेशान हूँ

लगता है अभी भी  मैं नादान हूँ


जो मेरे पास है

उसको अन्देखा करता रहा

और अधिक पाने की आस में 

हासिल का मजा खोता रहा

इसलिए मैं आज परेशान हूँ

लगता है अभी भी  मैं नादान हूँ


चिराग बुझ गये

जगमगा उठी महफ़िल

जीते जीते उम्र हो चली

तब कहीं जीने का सलीके हुए हासिल

इसलिए मैं आज परेशान हूँ

लगता है अभी भी  मैं नादान हूँ


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 15 जुलाई 2023,©

रेटिंग 9/10


#H131 रौनक (Splendor)

#H131

रौनक

"कविता में बढ़ती उम्र के प्रभाव और नियंत्रण पर प्रकाश डाला गया है"

उसने कहा,
बाल सही कर लो
बालों को रंग लो
गालों की चमक
सही कर लो
हुलिया सही कर लो
माल सही कर लो
लोगों ने कहा,
चाल सही कर लो

बुढ़ापा आ गया है
मिज़ाज सही कर लो
त्वचा की चमक सही कर लो
जो बची है सासें
उनका इस्तेमाल सही कर लो

शरीर बूढ़ा होता है
दिल जवान रहता है
दिल का हाल सही कर लो।
सेहत का ख्याल रख लो।
खुद को किसी भी
मलाल से दूर कर लो
दिल की सेहत सही कर लो।

सेहत के लिए कुछ तो कर लो
भरपूर नींद का इंतजाम कर लो
ध्यान और योग का अभ्यास कर लो।
प्रभु को समय रहते याद कर लो।
अपनी चेहरे की रौनक का ख्याल कर लो।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 14 अप्रैल 2024, ©

रेटिंग 8.5/10

Sunday, April 28, 2024

#H130 मैं खेलने जाऊँ (Let me go to play)

#H130
मैं खेलने जाऊँ (Let me go to play) 

"यह कविता बच्चों के द्वारा बार - बार घर से बाहर जाकर खेलने के जाने स्थिति के बारे में है "

मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
न मैं सुबह को देखूँ
न मैं दोहपहर की गर्मी देखूँ
न देखूँ शाम का अंधेरा।
न मच्छरों को आतंक समझ पाऊँ
हर वक्त ऐसा कहता जाऊँ
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।

होमवर्क समय से पूरा न कर पाऊँ
लिखने पढ़ने की बात होने पर
मैं मुद्दे को भटकाऊं।
टीवी देखूँ, मोबाइल देखूँ
लेपटॉप भी चलाऊँ।
इनमें केवल गेमिंग देखूँ
फिर से दोहराऊं,
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।

नीचे न भेजने पर

रो-रो कर घर सर उठाऊँ। 
मैं नीचे जाने से न घबराऊं
मम्मी से बस यही जबाब मैं पाऊँ
मैं तुझे थोड़ी देर में नीचे लेकर जाऊँ
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।

साथी आ जाते दरबाजे पर
और आवाज लगाते
तब भी मैं बोलूं
मम्मी मैं नीचे खेलने जाऊँ।

कभी - कभी मैं खुद ही भाग जाऊँ
मनमर्जी से दोस्तों संग खेलूँ
साइकिल चलाऊँ
फुटबॉल खेलूँ
छुपन छिपाई में समय लगाऊँ।
बिना बुलाने घर वापस न आऊं।
पानी पीने तो आऊं,
फिर वापस मैं जाऊँ।

चोट लगने पर वापस आऊं
मम्मी से दवाई मैं लगवाऊं
कई दिनों तक घर में  रुकने की
सजा फिर मैं पाऊँ।
मैं तो हर रोज दोहराऊं।
मम्मी मै नीचे जाऊँ।
मम्मी मै खेलने जाऊँ।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 26 अप्रैल 2024,©

रेटिंग 9/10

Saturday, April 27, 2024

#H129 हमारी संस्कृति ( Indian Culture)

#H129

हमारी संस्कृति


"कविता में ग्रामीण अंचल के संस्कारों और राम- राम कहने के महत्व को दर्शाया गया है"

मैं अनजान राह गीर

जाता रहा उस राह से

जब मैं सामने  से गुजरता

उस मकान से

हाथ उठ जाता है उनका

बोलते हुए "राम राम" सम्मान से

मैं भी हाथ उठा देता जबाब में

उनके आदर सम्मान में

जब न देखूँ उनको

दिल में अजीब लगता है, ईमान से

वो क्या हुआ, कहाँ गये भगवान से

राम राम से अनजाना

नि:स्वार्थ सम्बन्ध बन जाता है, इंसान से


न मुझे उनके नाम का पता

ना कोई है काम का पता

यह वो भारतीय संस्कार है

जिसको राम राम की दरकार है

"राम राम' से होता भवसागर पार है


यह भारतीय गाँव की खूबसूरती है

पर दिन व दिन घट रही है

गाँव शहर जैसे हो रहे हैं ईमान से

शहरों में घट गई है यह खूबसूरती

पड़ोसी का नाम पड़ोसी नहीं जानता 

कहता है अभिमान से


राम - राम ही है 

जो जोड़ रखे इंसान से

राम कहो, रहमान कहो

गुरु कहो, ईशा कहो

सब जोड़ें भगवान से

राम नाम ही है 

जो जोड़ रखे इंसान से


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ" ©

रेटिंग 8.5/10



#H128 जनहित में किसका हित है? (Who's Interest is in Public Interest)

#H128

जनहित में किसका हित है(Who's Interest is in Public Interest) 


"कविता में व्यक्तिगत लाभ, झूठे शुभचिंतकों और जनता के हित के बारे में प्रकाश डाला गया है"

मेरा हित मैं साधुंगा

तेरा हित तू साधेगा

उसका हित वो साधेगा

सबका हित भगवन साधेगा


मेरे हित में क्या तेरा हित है

तेरे हित में क्या मेरा हित है

उसके हित में किसका हित है


मेरे हित में क्या सबका हित है

तेरे हित में क्या सबका हित है

उसके हित में क्या सबका हित है


यह मैं देखूंगा, तू देखेगा,सब देखेंगे

किसके हित में किसका हित है

मेरे हित में क्या तेरा हित है

तेरे हित में क्या मेरा हित है

उसके हित में क्या जनहित है


जिसमें सबका हित है उसमें मेरा हित है

तेरे हित में सबका हित है

यह सब देखेंगे, तेरे हित में मेरा हित है


केवल मेरा हित, केवल तेरा हित

यह नहीं है जनहित में

जनहित में सबका हित है

जनहित में सबका हित है

जनहित में उसका हित नहीं है


मेरा हित मैं साधुंगा, तेरा हित तू साधेगा

मैं तेरा और तू मेरा हित साधेगा

तब ही सबका हित भगवन साधेगा


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ" ©

रेटिंग 8.5/10


Friday, April 26, 2024

#H127 भावुकता (Sentiment)

#H127

भावुकता  (Sentiment) 

"कविता में चुनावी माहौल, नेताओं की भाषा के गिरते हुए स्तर और वोटर को भावुक करने के बारे में बताया गया है। "

देश में
धरने जब बढ़ने लगें।
खुलासे सामने आने लगें।
कैश जब्तियां होने लगें ।
एक दूसरे को भ्रष्ट कहने लगें
नेता फब्तियां कसने लगें।
समझलो आगे चुनाव आने लगे।

पार्टियों के पोस्टर लगने लगें
सरपट गाड़ियां दौड़ने लगें
पार्टियां, दूसरों पर दोष मढ़ने लगें
हर घटना पर नेता फुटेज खाने लगे
विरोधी को नक्कारा बताने लगे
समझलो आगे चुनाव आने लगे।

जब कोई नेता किसी का डर दिखाने लगे
तुम्हारा सबसे बढ़ा हितैषी बनने लगे
मंदिर से मस्जिद को डराने लगे
मस्जिद मंदिर हर चर्चा में आने लगे
भाषा का स्तर हर रोज गिरने लगे
समझलो अब चुनाव होने लगे।

अमीर गरीब होने लगे
ऊंच नीच दिखने लगे
गालियाँ सुनने को मिलने लगें
व्यक्तिगत टिप्पणियां होने लगें
नोट से वोट पाने का चक्कर चलने लगे
समझलो नेता मिलकर तुम्हारा
दुरुपयोग करने लगे
वोट पाने के लिए
भावुक कर मूर्ख बनाने लगे
समझलो अब चुनाव चरम पर आने लगे।

"नासमझ" फिर यह समझाने लगे
नेताओं की बात को
चुनावों में गम्भीरता से न लें
भावुकता से बचें,
सही नेता का वोट डालने में लगें।
अपना देश मजबूत बनाने में लगें


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 25 अप्रैल 2024,©

रेटिंग 8.5/10



Thursday, April 25, 2024

#H126 आज का बच्चा (Today's Child)

#H126

आज का बच्चा (Today's Child) 

"कविता में  बच्चों के स्क्रीन के प्रति लत के प्रभाव के बारे में दर्शाया गया है"

बच्चा जब थक जाता है
तब सो जाता है
वरना टीवी के सामने टिक जाता है
न मिले टीवी तो
मोबाइल पर लग जाता है
स्क्रीन मैनिया रोग लग जाता है
चिड़चिड़ा हो जाता है
गुस्सा भी बढ़ जाता है।

हर किसी से लड़ जाता है
जल्दी समझाने में नहीं आता है।
समय से पहले बच्चा जवान होता जाता है।
आखों पर चश्मा जल्दी चढ़ जाता है
तर्क शक्ति कम हो जाती है
जिम्मेदारी लेने से घबराता है
आज का बच्चा जब थक जाता है
तब सो जाता है
वरना टीवी के सामने टिक जाता है

बच्चों के साथ जो समय बिताता है।
उनका विश्वास कमाता है।
बच्चा भी अच्छा करता जाता है।
ऐसा करने से घर का माहौल बदल जाता है।
"नासमझ" तुमसे घर में मोबाइल कम
इस्तेमाल करने की गुहार लगाता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 13 अप्रैल 2024,©

रेटिंग 9/10

Tuesday, April 23, 2024

#H125 खुद की गलती को अपनाऐं ( Accept your mistake)

#H125

खुद की गलती को अपनाऐं ( Accept your mistake) 

"कविता में  अपनी गलती स्वीकारने का महत्व और गलती न दोहराने के बारे में बताया गया है"

कुछ ऐसा लिखो

कि लोग मान जाऐं

लोग तुम्हारी कविता में,

गलती निकालने से कतराऐं


पढ़ने के बाद मुस्कराऐं,

कभी कभी मायूस

कभी कभी उत्तेजित हो जाऐं,

सुनने पर

फिर से एक बार दोहराने की,

आवाज लगाऐं

कुछ ऐसा लिखो,

कि लोग मान जाऐं


गलती तो है अवसर,

हम कैसे न इसे गले लगाएं

मानस तो है गलती का पुतला,

कैसे हम भगवन हो जाऐं

जो गलती न कर पाऐं,

बस हमरी भगवन से है चाहत

हम गलती न दौहराऐं,

हम कुछ ऐसा लिखें

कि लोग मान जाऐं


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 9.5/10


#H124 बालाजी (Hanuman)

#H124

बालाजी
"यह कविता हनुमान जयंती के अवसर हनुमान जी की महिमा पर आधारित  है"


बल के लिए पहचाने जाऐं
बह्मचर्य की शान बढ़ाऐं
शांत स्वरूप हैं,पवनपुत्र,
सदा भक्त के रूप में जाने जाऐं

गदाधारी ,  बाल ब्रह्मचारी
सुग्रीव का सदा साथ निभाऐ
वज्र भी  इनका कुछ बिगाड़ न पाऐ
देवताओं से कई वरदान पाऐ।

समुद्र पार कर
रावण पुत्र अक्षयकुमार
को स्वर्ग पहुंचाऐ
सीता मां का यह पता लगाए
संजीवनी बूटी लेकर आऐ
लक्ष्मण जी के प्राण बचाऐ
अहिरावण न इनसे बच पाऐ
राम की भक्ति में
सदा राम राम जपते ही पाऐ।

जो लेता इनका नाम
बन जाते उसके बिगड़े काम
भूत प्रेत उसके पास न आऐ
दुखों को यह दूर भगाऐं
अंजनीपुत्र, हनुमान कहलाऐ
बालाजी नाम से जाने जाऐं।

"एक बार बोलो
बजरंगबली की जय।
बालाजी महाराज की जय। "
धन्यवाद

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ "

दिनांक 23 अप्रैल 2024, ©

रेटिंग 10/10


Monday, April 22, 2024

#H123 डिजिटल जरुरी है, अपनाओ (Cyber security)

#H123

डिजिटल जरुरी है, अपनाओ (Cyber security) 


"कविता में डिजिटल के उपयोग, संभावित खतरों और सावधानियों के बारे में बताया गया है"

मोबाइल लाओ

एक ईमेल एकाउंट बनाओ

आधार बनवाओ

बैंक खाता खुलवाओ

काम धंधा करो

या नौकरी पर जाओ

पैसा कमाओ

बैंक में पाओ

सामान खरीदने पर

यूपीआई चलाओ

छुटटे  का झंझट भूल जाओ

एसएमएस से जानकारी पाओ

बैंक खाते का हाल जान जाओ

मासिक स्टेटमेंट ईमेल पर पाओ


इनफार्मेशन जल्दी से भेजो ईमेल से

और जल्दी से पाओ

सोसलमिडिया अकाउंट बनाओ

सब से जुड़ जाओ

अपना हुनर सबको दिखाओ

और बिजनेस बढ़ाओ


डिजिटल जरुरी है, इसको अपनाओ

पर बरतो सावधानी, वरना पछताओ



इन सबमें पासवर्ड लगाओ

लिंक पर कभी किलिक न करो

वरना फंस जाओ

बैंक  का पैसा गंवाओ

अपनी सारी जानकारी गंवाओ

पैसा भूल जाओ

रुको , ज्यादा मत घबराओ

जल्दी से फ्राड आरबीआई को बतलाओ

अपना पैसा पाओ

पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराओ

ई क्राईम को कंट्रोल कराओ

डिजिटल जरुरी है, अपनाओ

सावधानी बरतो

हसते हसते डिजिटल अपनाओ


पासवर्ड ऐसा लगाओ

आठ अक्षर से कम न हो

12345678 जैसा न हो

जान का नाम

बेबी की जन्म तारीख न हो

घर गाड़ी का नम्बर न हो

अपनी जन्म तारीख न हो

इसमें नम्बर रखो

अक्षर रखो

छोटे बड़े अक्षर भी रखो

@, #, जैसे करैक्टर भी रखो

पासवर्ड ऐसा बनाओ

तोड़ने में समय लगाऐ

केवल ओटीपी पासवर्ड से बचो

केवल फिंगर स्कैन से बचो

कम्बीनेशन में अपनाओ

पासवर्ड को कहीं न लिखो

बीबी बच्चे किसी न बतलाओ

कभी किसी को न दिखाओ

जब भी कार्ड पिन डालो

छिपाकर डालो

कभी किसी को फोन पर

ओटीपी न बतलाओ

अनजानी काल न उठाओ

कार्ड का नम्बर और सीबीसी नंम्बर

फोन पर कोई आफर न उठाओ

डिस्काउंट पर  मत ललचाओ

जांच परखकर ही डिस्काउंट उठाओ

जल्द बाजी न दिखाओ


असल सुरक्षा यही है

जो डाला है सबके लिए है

फिर कभी नहीं पछताओ

इतना ही सबको दिखलाओ


डिजिटल जरुरी है, अपनाओ

बरतो  सावधानी , वरना पछताओ

हसते हसते डिजिटल अपनाओ


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 10/10


Saturday, April 20, 2024

#H122 घुटन (Suffocation)

#H122

घुटन  (Suffocation) 


एक मेरा सच है
एक तेरा सच है
एक उसका सच है
एक ग्राहक का सच है
एक सप्लायर का सच है
एक सच का भी एक सच है
सही मायने में
फायदा ही सबका सच है।

एक घुट घुटकर मरने का सच है
समझौता करने का सच है
एक अनदेखी करने का सच है
कानूनी को गैरकानूनी करने का सच है
गैरकानूनी को कानूनी दिखाना भी एक सच है।
एक मालिक का सच है
एक कर्मचारी का सच है
अपना फायदा ही सबका सच है।

एक नेता का सच है
एक जनता का भी सच है
एक सत्ता का सच है
सच्चा दिखना भी कितना सच है

पति का एक सच है।
एक पत्नी का भी सच है
एक मित्रों का सच है
एक रिश्तेदारों का सच है
कौन कहाँ पहुँचेगा
इसका भी एक सच है।

एक अगड़ों का भी सच है
एक पिछड़ों का भी सच है
एक कर्तव्यपरायण का भी सच है
एक कर्तव्यबिमूढ़ का भी सच है
एक दर्शक का भी सच है
एक दिखाई न देने वाला भी सच है

एक झूठे का भी सच है
एक झूठ का भी सच है
यही हम सबका सच है।
घुटन में जीना भी एक सच है
मत पड़ इस झंझट में "नासमझ"
कौन कितना सच है ।
किसका क्या सच है।
सही मायने में
फायदा ही सबका पहला सच है।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 09 फरवरी 2024, ©

रेटिंग 9.5/10

Friday, April 19, 2024

#H121 ध्यान रहे कौन जायेगा साथ ( Mind, who will go with you at the end)

#H121

ध्यान रहे कौन जायेगा साथ


मत करो अपने मन को उदास

अगर किसी ने तुम्हे छोटा 

दिखाने का किया है प्रयास

जीवन में सदा रहती है  

कुछ अच्छा होने की आस


सदा समय एक जैसा नहीं रहता

रख लो मन में साथ

कर लो मन में रामायण की याद

लंकापति कैसे हो गये बरबाद

वैभव गयाप्रिए गये , प्राण गये,

और गया है नाम

कुछ ले जा पाऐ अपने साथ

यश भी अपयश हो गया

सबको दे गये एक अनूठी साध


कल बचपन था

आज जवानी

कल आयेगा बुढ़ापा 

फिर  तुम बन जाओगे एक कहानी


फिर कैसा अभिमान तुम्हारा

ले लो सबको साथ

कौन है छोटा

कौन है बड़ा

कौन है अपना

कौन है पराया

ध्यान रहे कौन जायेगा साथ


चाहे हो छोटा

चाहे हो बड़ा

सबका कर लो तुम सम्मान

नहीं घटेगा इससे तुम्हरा मान

सम्मानित हो जाओगे

जो दोगे सबका साथ

हर हाल में सब देंगे तेरा साथ

वरना बलशाली के आगे

जोड़ें सारे हाथ


ध्यान रहे कौन जायेगा तेरे साथ

जाते समय रहेंगे खाली तेरे हाथ


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 9.5/10


Thursday, April 18, 2024

#H120 कल का भारत और हम (Tomorrow's India and us)

#H120

कल का भारत और हम (Tomorrow's India and us) 


जनता ने आजादी पाने को बहुत प्रयास लगाए

देश के सपूतों ने जेलों में

दिन बहुत कठोर बिताए

अपना बहुत खून बहाया 

फांसी के फंदों को चूमा, बिन घबराए

हंसते हंसते झूल गए फंदे पर

लड़ते लड़ते सीने पर गोली पर खाई

हजारों शहीद हुए पर, अंग्रेजों से न घबराए

तब जाकर यह आजादी आई

फिर हमने ठाना अब हमको

अंग्रेजों की तरह कोई न ठग पाए

यह सोच सोचकर

हर कोई इनके सम्मान में झुक जाए


आजादी को पाकर 

हमने कई दशक  बिताऐ

बहुत बढ़े हम आगे

बहुत पड़ा है, बढ़ने को आगे

हम सबने अब सपना देखा है

कैसे वो पल आये 

जब भारत विकसित हो जाए


2047 में हर नागरिक कैसे

गरीबी के स्तर से बाहर आये

हर कोई रहे अपने घर में

स्वच्छ पानी पीने को वो पाये

नागरिक रोजगार पाऐ

या दूसरों को रोजगार देकर

लोगों को रोजगार उपलब्ध कराएं

बच्चे पढ़ लिखकर

अपना भविष्य वनाऐ

स्वास्थ्य सुविधा सभी को सुलभ हो

ताकि सब अच्छी सेहत रख पाऐं


खुश हाल बने अपना देश

और देशों को भी कुछ दे पाऐ

हम आगे बढ़ें, और देश भी आगे बढ़ें

ताकि सच्चा बसुधैव कुटुंब बन जाए

तब जाकर हमारा भारत देश

दुनिया में आत्मनिर्भर कहलाऐ


यह तब ही सम्भव हो पाये

जब हर कोई अपना 

शत् प्रतिशत प्रयास लगाऐ

ईमानदारी से टैक्स चुकाऐ

सरकार को भी चाहिए 

टैक्स दर कम करके

करदाताओं का दायरा और बढ़ाऐ

युवा शक्ति को पहचान

बढ़ने को नये अवसर उपलब्ध करवाए


भ्रष्टाचार नहीं अपनाऐंगे

प्रदूषण पर मजबूती से

अंकुश कड़ा लगाऐंगे

पानी की बर्बादी पर

कड़ा प्रतिबंध लगाऐंगे

जोड़ नदियाँ को आपस में

बाढ़ की विपदा पर

रणनीति ठोस अपनाऐंगे

सड़क सुरक्षा को और अधिक बढ़ाऐंगे

सड़क दुर्घटना को कम कर पाऐंगे


हर कोई करे सहयोग

सबकी मुश्किल में आगे आये

समस्याएं हमारी हैं भिन्न 

समाधान भी हम ही लोग बनाऐ

अभिनव तकनीक अपनाएं

राजनीति में स्थिरता लाने को

निज स्वार्थ छोड़मजबूत सरकारें लाएं

तब जाकर हिन्दुस्तान को

हमारे बच्चे विकसित देश पायें


आज सभी प्रण ले लो

हम अपना फर्ज निभाऐंगे

तब जाकर हिन्दुस्तान के 

सच्चे सपूत बन पायेंगे

भारत की जय हो, जय हो भारत की

आगे बढ़ते जायेंगे

वन्दे मातरम्, मादरे वतन

कहते कहते विकसित देश बनाऐंगे


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 09 अगस्त 2023, ©

रेटिंग 9/10


Wednesday, April 17, 2024

#H119 यह सब है हाथ तुम्हारेे


#H119
यह सब है हाथ तुम्हारेे (All is in your hands)

"कविता में मानवता के मूल तत्वों को  भगवान राम के चरित्र द्वारा न्याय, सत्य, और प्रेम के महत्व को समझाया गया है।"

कब हुआ जन्म तुम्हारा
कब होगी मौत तुम्हारी। 
जन्म मृत्यु नहीं है हाथ तुम्हारे
अच्छे मानव बन सकते हो
यह सब है हाथ तुम्हारेे। 

सदियों से "राम" नाम से जग में
यह सीख है साथ हमारे। 
मानव तुझे कैसा जीवन जीना है 
यह है सब हाथ तुम्हारे। 

खाना, पीना, बच्चे जनना, 
जीना और मर जाना । 
करते हैं इस जग के 
सारे पशु, साथ हमारे। 
मानव तुझे कैसा जीवन जीना है 
यह है सब हाथ तुम्हारे। 

मर्यादा पुरुषोत्तम से
कुछ ले लो सीख और
कर ले जीवन में कुछ अच्छे काम 
इस जग में साथ हमारे। 

पितृ वचन की लाज के लिए
राजपाट को त्याग कर
छोड़ गए अयोध्या, राम हमारे। 

दोस्ती निषादराज संग निभाई
ऊँच नहीं बीच नहीं आई। 
सबरी का सत्कार लिया, 
निश्छल प्यार को प्यार दिया। 

बाली का वध करके
न्याय धर्म का साथ दिया
सुग्रीव को राजपाट दिया। 

भक्ति जताई आदिदेव में , 
ईश्वर ने मानव को 
भक्ति मार्ग का ज्ञान दिया
रामेश्वरम का धाम दिया। 

बिना संसाधन के, 
आन के लिए लड़े
लंकापति का संहार किया। 
अंत समय में रावण से
जीवन का ज्ञान लिया। 

विभीषण को सम्मान दिया, 
और छोड़ आऐ जीती लंका को
ऐसा राम ने त्याग किया
मर्यादा पुरुषोत्तम यों ही
नहीं कहलाऐ, राम हमारे। 

हर कोई भगवन हो। 
यह है नहीं हाथ तुम्हारे। 
मानव तुझे कैसा जीवन जीना है 
यह है सब हाथ तुम्हारे। 
"नासमझ" बस यही पुकारे। 

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 17  अप्रैल 2024,©
रेटिंग 9.5/10

Tuesday, April 16, 2024

#H118 सच्चाई (Truth)

#H118

सच्चाई (Truth) 

भूख ही सच्चाई है, घर में नहीं लुगाई है

दिल पर लगी है चोट, जिसकी नहीं दवाई है

मौसम बड़ा हरजाई है

कामचोरी की नहीं , कोई दवाई है

खाना बनाना नही है, कोई बड़ी कमाई

फिर भी भूखे रहे हरजाई

कहते रहे हैं, मुश्किल बहुत सहना जुदाई

भूखों मरना ही सच्चाई है


भूख कड़वी सच्चाई है

खा के मिटा सकते हो

दूसरों को खिला सकते हो

इसमें बड़ी भलाई है

चेहरे पर मुस्कराहट ला सकते हो

भूखे सो जातें, बहुत से देशभाई हैं 

भूख कड़वी सच्चाई है


हो सकता है मुस्कराहट भी झूठ हो 

दिखाने के लिए मुस्करा सकते हो

गुस्सा छिपा कर मुस्कुरा सकते हो

गम दबा कर मुस्कराहट दिखा सकते हो

औरों के लिए मुस्कुरा सकते हो


ऐसा भी हो मुस्कराहट सच्ची हो

अगर दिल से मुस्कराते हो

मुस्करा कर किसी का भी

दिल जीत सकते हो

हारने पर भी

मुस्कुरा कर जीतने वाले की

जीत को कम कर सकते हो

मुस्कराहट में बहुत दम है


हो सकता है झूठ भी सच हो

सच को झूठ बता सकते हो

कुछ समय के लिए सच को हरा  सकते हो

सदा के लिए झूठ छिपा नहीं सकते हो


दर्द और मौत सच्चाई है

इसको गले लगाना होगा

किसी से बांट नहीं सकते हो

चाहे कोई कितना प्यारा क्यों न हो

जिसको लगी है चोट

दर्द से उसी को कराहना होगा

जिसकी आयी है मौत

उसी को जाना होगा


मुस्कराहट झूठी या सच्ची हो सकती है

भूख सदा सच होती है

आंखें  सदा सच बोलती आंखें हैं

इनको पढ़ना सीख लिया

समझो तुमने जीना सीख लिया


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 9/10



Monday, April 15, 2024

#H117 हौसला है, तो मंजिल हमारी

#H117

हौसला है, तो मंजिल हमारी 


कदमताल करते - करते 

यहाँ तक आ पहुंचें हैं हम |

कुछ इल्जाम और कुछ जख्म लेके

अब मंजिल है पास


ऐ मेरे साथी कुछ सासें और थाम ले |

नाव डगमगाती हैं समंदर में

कभी कभी पतवार भी टूट जाती हैं समंदर में 

पाल भी फट जाते हैं तूफान में

पर सब रखते हैं भरोसा अपने मांझी पर

मांझी रखता है भरोसा खुद पर और अपने ईश्वर पर

ईश्वर सब को भंवर पार कराता है समंदर में


तू भी  रख भरोसा अपने मांझी पर

मंजिल होगी हमारे कदमों में |

होगा सबेरा चारों ओर

तू असल मंजिल पर होगा जिंदगी में


हौसला हो तो हमारी मंजिल

सदा पास होती है  असल में

वरना कश्तियाँ डूब भी जाती है,

आकर मंजिल पर, समंदर में


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 9/10


Sunday, April 14, 2024

#H116 "बाबा साहेब" आपने फिर से आना होगा


#H116

बाबा साहेब" आपने फिर से आना होगा

भारतीय संबिधान को रचने वाले

नई दिशा देश को देने वाले


छुआछूत को सहने वाले

विदेश से विधि पढ़ने वाले

पढ़ पढ़कर खुद की किस्मत गढ़ने वाले

32 - डिग्रियाँ हासिल करने वाले

बिपक्षियों में अपनी साख गढ़ने वाले

शिक्षा का महत्व सिखाने वाले

समानता के लिए लड़ने वाले

दलितों के लिए लड़ने वाले

शिक्षा को आगे लाने वाले

महिलाओं को हक दिलवाने वाले

संविधान को रचने वाले

नई दिशा देश को देने वाले


पहले विधि मंत्री बनने वाले

छुआछूत से लड़ने वाले

पिछड़ों के लिए लड़ने वाले

"बाबा साहेब  अम्बेडकर" कहलाने वाले

मरणोपरांत भारत रत्न को पाने वाले

संविधान को रचने वाले

नई दिशा देश को देने वाले


ये शिक्षा देने वाले

शिक्षित बनो , 

निर्भीक बनो

संगठित रहो

सबको साथ लेकर चलो

ऐसा बतलाने वाले

संविधान को रचने वाले

नई दिशा देश को देने वाले


महिलाओं को पूरा हक

अभी मिला नहीं है

बंचित पूरा बढ़ा नहीं है

भारत जैसा सोचा था आपने

अभी पूरी तरह से बना नहीं है

भ्रष्ट नेताओं का घर 

अभी भरा नहीं है

भ्रष्टाचार अभी हटा नहीं है


बंचित, दलितों और पिछड़ों को

भ्रष्ट नेताओं से बचना होगा

अपने हक के लिए 

खुद ही लड़ना होगा

लड़ने के लिए पढ़ना होगा

बाबा की शिक्षाओं को

अपनाना होगा


लगता है बाबा आपने

एक बार फिर आना होगा

आरक्षण की उल्झी गुत्थी को

आपने सुलझाना होगा

हर समाज को आगे लाना होगा

शोषित बंचित हर समाज में

हो सकता हैनेताओं को

यह बतलाना होगा

संपन्न दलितों को 

"दलित" शब्द से आगे आना होगा

हर समाज को आगे लाना होगा

अभी कुछ नहीं किया तो

भारत ने फिर पछताना होगा


हर बंचित यह कहता रहेगा

बाबा तेरा नाम, अमर रहेगा

जब तक हिन्दुस्तान रहेगा

गाता रहेगा यह, जन जन दिल से

"चैत्य भूमि" पर जाता रहेगा


शिक्षा से ही बंचित 

बलवान बनता रहेगा

समाज में अपना मुकाम 

पाता रहेगा

बाबा साहेब का यश

गाता रहेगा


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

Dated 14.04.2023, ©

रेटिंग 9.5/10


Saturday, April 13, 2024

#H115 तेरा कितना हुआ (Increment)

#H115

तेरा कितना हुआ (Increment) 

"यह कविता वेतन वृद्धि और पदोन्नति की घोषणा के बाद कर्मचारियों में उत्पन्न मानवीय वातावरण को दर्शाती है। "

क्या हुआ, बताओ न क्या हुआ।
तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ।
अगर सामने वाले से ज्यादा हुआ।
अन्दर खुशी का बड़ा अहसास हुआ।
चलो मेरा इससे तो ज्यादा हुआ।

क्या हुआ, बताओ न क्या हुआ
तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ
अगर सामने वाले का ज्यादा हुआ
बड़ा धक्का लगा दिल में,
इसका इतना कैसे हुआ।

सामने वाले के बराबर हुआ।
हाँ यार मेरा भी इतना ही हुआ।
इस बार कुछ खास न हुआ।

जिसका उम्मीद से ज्यादा हुआ।
सातवें आसमान का हुआ।
उसके लिए सब कुछ अच्छा हुआ।

कई लोगों का वर्षों से कम हुआ।
हर बार गम हुआ,
फिर भी कहते हैं, यह भी ज्यादा हुआ,
अब से काम और कम हुआ।
समय आगे बड़ा, अगला साल आया।
फिर से तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ।

कई लोगों का वर्षों से हर बार ज्यादा हुआ।
फिर भी लगता है उनको, हर बार कम  हुआ।
जो किया सही किया, गलत भी सही लगा।
ऐसा गुमान हुआ।
सच में ऐसा कई अन्य वजहों से हुआ।
मदहोश होकर गाता गया,
अपने काम का गुणगान करता गया।
काम से ज्यादा शोर मचाता गया।
हर बार ज्यादा पाता गया।
अगला साल आया,
फिर से तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ।

जिसको पदोन्नति प्राप्त हुआ,
वो भी इस चक्कर में रहता।
मुझसे ज्यादा किसका हुआ।
या मेरा सबसे ज्यादा हुआ।

कुछ लोग वर्षों से कहते आये हैं
तेरा कितना हुआ,
अपना सच न बताकर पूछते आऐ
मेरा इतना हुआ, तेरा कितना हुआ।

कुछ ऐसे भी होते हैं,
कई बार पूछने पर भी न बताते।
किसी से पूछते भी नहीं,
तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ
"नासमझ" कहलाते हैं।
विशेष लोग आकर बताते हैं
तुम्हारा इतना हुआ।
एच आर बताऐ, गोपनीयता क्या हुआ।

क्या हुआ, बताओ न क्या हुआ।
तेरा कितना हुआ, मेरा इतना हुआ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 12 अप्रैल 2024, ©

रेटिंग 9/10

Friday, April 12, 2024

#H114 मुक्ति (Salvation)

#H114

मुक्ति (Salvation)

शरीर से मोह हो जाता है।
शरीर  ही दर्द बताता है
चोट लगने पर कराहता है।
शरीर सौन्दर्य दिखलाता है
शरीर ही से शरीर
घृणा करवाता है।
शरीर मुक्ति से भटकाता है।

शरीर तृष्णा में रम जाता है
शरीर भूख बताता है
शरीर लालच जगाता है
शरीर धनअर्जन में फंस जाता है।
यह मुक्ति से दूर भगाता है।

शरीर मेरा है का, भाव जगाता है
शरीर तेरा है, यह कहलवाता है
शरीर संतान से वंश बढ़ाता है
अपनापन मुक्ति से भटकाता है।

शरीर भयग्रस्त हो जाता है
शरीर  हार मान जाता है
शरीर जीत का भाव जगाता है
शरीर मान दिलवाता है
शरीर अपमान का कारण बन जाता है
डर मुक्ति से भटकाता है।

शरीर  से पहचाना जाता है
शरीर से शक्ति पाता है
शरीर में ही कष्टों को पाता है
शरीर ही तो सब कष्टों का
मूल माना जाता है
मुक्ति पाने में बाधा बन जाता है।

शरीर है पर इनसे मोह नहीं
तो जीवन में विरक्ति लाता है
विरक्ति सबसे बढ़ी शक्ति है
विरक्ति से पहले भक्ति आता है।
विरक्ति ही मुक्ति है।
जीते जी जो जीवन में विरक्ति पाता है
वही जीवन में, जीते जी मुक्ति पाता है।
वरना शरीर का त्यागकर
हर कोई मुक्ति पाता है।
ऐसा कहलाया जाता है।

जो इस जग से मुक्त नहीं हो पाता है।
फिर वापस इस जग में आता है।
यह चक्कर यों ही चलता जाता है।
अगर मुक्त हुआ तो
परमात्मा में विलीन हो जाता है।
सनातन में
इसको ही मुक्ति माना जाता है।

"नासमझ" तो बस इतना समझे,
जिसकी जैसी आस्था,
वैसा ही मार्ग अपनाता है।
दूसरों को कष्ट दिऐ बिना जीवन जियो।
यही मुक्ति मार्ग कहलाता है।
संतोष ही मुक्ति है
"नासमझ" तो बस इतना पाता है।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 06 मार्च 2024, ©

रेटिंग 9/10

#H113 हम क्यों खामोश हो गये (Why ?, they become silent)

#H113

हम क्यों खामोश हो गये (Why ?, they become silent)

गुम हो गयी
किसी के घर की आहट
मुस्कुराहट गुम हो गयी
गुम हो गयी खिलखिलाहट
शरारत गुम हो गयी
गुम हो गयी मासूमियत
कहाँ गुम हो गयी कदमों की आहट
आवाज कहाँ गुम हो गयी

माँ बाप के अरमान लुट गये
लुट गये किसी के सपने
अपने कहाँ गुम हो गये
अब बस घर में माँ बाप ही रह गये।

वंश को दंश लग गया
उठते हैं जनाजे
जवानों के हाथ से
बड़ों के हाथ मासूमों का
जनाजा उठा गया।

कितना भारी है बोज
नासमझ क्या समझे
जिस पर गुजरी है बस
वही समझे यह बोज।

नासमझ पूछता है
कौन मिटा गया मुस्कुराहट
कौन खामोश कर गया
माँ बाप के सपने खा गया
न मिटने वाला गम दे गया।

कोई कहे चालक दोषी है
शराब का नशा दोषी है
स्कूल प्रशासन की मदहोशी है
सड़क सुरक्षा विभाग दोषी है
सरकार की खामोशी है

लाख पीटो अब लाठी
फांसी चढ़ा दो किसी को
छ: मासूम तो खामोश हो गये
न मिटने वाला गम दे गये

"नासमझ" कहे हम सब पर
बहुत बड़ा सवालिया निशान दे गये
क्या दोष था हमारा
हम क्यों खामोश हो गये।
हम क्यों खामोश हो गये।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 10 अप्रैल 2024,©

रेटिंग 9.5/10

Thursday, April 11, 2024

#H112 पैसा-पैसा (Money - Money )

#H112

पैसा-पैसा (Money - Money )

जिंदगी आदमी की हो गयी है पैसा-पैसा

उसके लिए न समाज, न रिवाज

न ही जज्बात है

बस है हर वक़्त करता पैसा-पैसा


अपने शौक का पता नहीं

सेहत का ख्याल रखा नहीं

प्रकृति का मज़ा चखा नहीं

बस करता रहता है पैसा-पैसा


बच्चों संग ढंग से खेला नहीं

कभी भी खुलकर खिलखिलाया नहीं

बीबी बच्चों को संग कहीं घुमाया नहीं

हर वक़्त करता रहता है पैसा-पैसा


देर से रोज उठा नहीं

सुबह का सूरज देखा नहीं

रात को जल्दी सोया नहीं

बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए

कभी घर रुका नहीं

विटामिन डी कभी बढ़ा मिला नहीं

ईलाज के बाद पैसा बचा नहीं

इस वजह से बस करता रहता है पैसा-पैसा


जल्दी सुबह काम पर जाता रहा

देर से रात में आता रहा

सुबह का सूरज देखा नहीं

अपने काम में खुद को खपाता रहा

बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए

घुट घुटकर पैसा कमाता रहा

विटामिन डी कभी बढ़ा मिला नहीं

इलाज पर कमाया हुआ गंवाता रहा

इस वजह से बस करता रहता है पैसा-पैसा


आने वाले समय की सोच में

वर्तमान का मज़ा चखा नहीं

जो हाथ में  है उससे खुश हुआ नहीं

सफलता पैसे के पैमाने पर तौलता रहा

बस करता रहता है पैसा-पैसा


अभी वक़्त है

लेलो मज़ा वर्तमान का

भविष्य किसने देखा है

भूत में कुछ रखा नहीं

मतकर हर वक़्त पैसा-पैसा

हर कोई सदा के लिए यहाँ रहा नहीं


खुश रहले अपनों में

किसी के चेहरे पर ला खुशी दे

अपने दिल में सुकून पा ले

औरों से अपने लिए दुआ कमाले


बस यही है तेरा

जो कभी घटा नहीं

किसी से बंटा नहीं

खुश रहले प्यारे

मतकर पैसा-पैसा

साथ में यह किसी के गया नहीं


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ" 

Dated 04.07.2023, ©

रेटिंग 9/10


Wednesday, April 10, 2024

#H111 तेरे साथ भी जी लेंगे (I will enjoy with you too)

#H111

तेरे साथ भी जी लेंगे (I will enjoy with you too)


पीते नहीं हैं, पी लेंगे, दिल से बुलाया अगर,   

तो एक जाम हम भी ले लेंगे,  

तेरे साथ भी जी लेंगे


हाथ बढ़ाओगे तो, तुम्हें खुश करने के लिए,  

थोड़ा  मटक लेंगे, थोड़ा झटक लेंगे

पीते नहीं हैं पी लेंगे


जो गर रोऐ तुम, दिल हल्का हम भी कर लेंगे,    

गम को दबाए फिरते हो

तुम खोलोगे गम,  

हम भी गम हल्का कर लेंगे

पीते नहीं हैं, पी लेंगे

दिल से बुलाया अगर

एक जाम तो ले लेंगे

तेरे साथ भी जी लेंगे


अगर भड़के तुम, हम चुप रह लेंगे,  

हसते हसते  सह लेंगे

तुम गाओगे गर, तो हम भी  गा लेंगे

महफ़िल हम तेरे साथ जमा लेंगे

पीते नहीं हैं, पी लेंगे,


अगर की बुराई किसी की, तो हम कट लेंगे

हाथ जोड़कर दारू से, हम तौबा कर लेंगे

पीते नहीं हैं, नहीं पियेंगे

बिन पिए ही  हम जी लेंगे,  

गम दबाए फिरते हैं, गम दबा कर जी लेंगे

बिन पिए ही  रह लेंगे


पीने के बाद,   

टैक्सी घर को लेंगे,  

कार किसी को नहीं चलाने देंगे


यादों को  दिल में रख लेंगे

पीते नहीं हैं, पी लेंगे

तेरे साथ कुछ समय जी लेंगे


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
©
रेटिंग 8/10

Tuesday, April 9, 2024

#H110 फूलों से मिले जख्म (Wound from flowers)

#H110

फूलों से मिले जख्म (Wound from flowers) 


कांटों से मिले जख्म

हमें रुला न सके

फूलों से मिले जख्म 

हम भुला न सके


माशूक ने हमसे क्या मुंह फेरा 

हम फिर अपना मुंह दिखा न सके

ऐसे टूटे कि

फिर कहीं दिल लगा न सके


तेरी बेवफाई  पर भी

तुझे बेवफा कह न सके

तेरी न हो जाऐ जग में रुसवाई 

बस इसलिए तेरा नाम, ले न सके


तेरे मासूम चेहरे को

अरसे बाद भी भुला न सके

तेरा वो मुस्कराना

हस के सहेलियों संग बतियाना

हम भुला न सके


तेरी याद में ऐसे डूबे 

कि हंस न सके

दोस्त भी कहते हैं दीवाना 

हम अपना फसाना

दोस्तों से भी न कह सके


कांटों से मिले जख्म

हमें रुला न सके

फूलों से मिले जख्म 

हम भुला न सके


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

Dated 01.07.2023, ©

रेटिंग 8.5/10


Sunday, April 7, 2024

#H109 निरन्तरता (Continuity)

#H109

निरन्तरता (Continuity)

एक कथा दौहराता हूँ मैं

दौड़ लगाती दुनिया सारी

जीवन के सफर में ,  

सफल होने के चक्कर में


हर कोई चला सफर में,

कुछ रुक गये सफर में

कुछ थक गये सफर में,

कुछ सो गये, सफर में


दुनिया बड़ी रंगीन है,

कुछ भटक गये सफर में

जीवन में बहाने बहुत हैं,

बहाना लगा कर

कुछ उतर गये सफर में,

कुछ डरकर भाग गये सफर में


कुछ थकान भूल चलते रहे सफर में,

मंजिल ने इनको पा लिया

बाकी मंजिल पाने को लगे रहे सफर में,

मंजिल सामने दिखती रही, सफर में

जीवन, मंजिल पाने की आस में,

खपा गये सफर में


वही कथा दौहराता हूँ मैं,

खरगोश कछुआ दौड़ 

याद दिलाता हूं मैं,

बिना रुके जो चलते रहे सफर में

निरन्तरता बनाऐ रखने की,

आस लगाता हूँ मैं


मंजिल पाने  के बाद,

अगली मंजिल पाने  को

जो निकल गये सफर में,

वो खुद मंजिल बन जाते हैं

औरों के  लिए ,

जीवन की मंजिल हो जाते हैं


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 1 मई 2023,©

रेटिंग 9.4/10


Friday, April 5, 2024

#H108 नशा नशीन (Addict)

#H108

नशा नशीन (Addict) 

रंगों से रंगे जाने से डरते नहीं
भीगने से हटते नहीं
कीचड़ में पड़ने से डरते नहीं
होली खेलने से हटते नहीं
नौजवान है नया दौर
लाने से डरते नहीं

कदम संभलते नहीं
मुंह से शब्द निकलते नहीं
रिवाज समझते नहीं
रिवाज से पीछे हटते नहीं
शर्म अब करते नहीं
सरेआम पीकर आने
लोग डरते नहीं
गुटखा लेकर चलते
सुट्टा लगाने से घबराते नहीं
जीवन पथ से भटक चुके
फिर भी संभलते नहीं।

माँ बाप ने सपने संजोऐ थे
हर रोज तोड़ने से बचते नहीं
नशेबाज जवानी के नशे में
देश का भविष्य डुबोने डरते नहीं।
नशा नशीन बच्चे होते नहीं।

"नासमझ" क्या समझाऐ।
माँ बाप के गम को समझते नहीं।
आंसू भी इनको दिखते नहीं।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 25 मार्च 2024, ©

रेटिंग 9.2/10

#H107 धरती तपने वाली है (The Earth is going to heat up)

#H107

धरती तपने वाली है (The Earth is going to heat up)


गर्मी आने वाली है

पसीना लाने वाली है

शरीर में जल की कमी रहने वाली है 

चेहरा झुलसाने वाली है

गर्मी आने वाली है


पौधों को सुखाने वाली 

गला सुखाने वाली है

तालाब सुखाने वाली है

नदियाँ मरने वाली हैं


लस्सी आने वाली है

नीबू पानी लाने वाली है

जल्दी लू चलने वाली है

सत्तू लाने वाली है

गर्मी आने वाली है



चेहरा झुलसाने वाली

चेहरा ढंकर ही बाहर 

जनता निकलने  वाली है

कपड़े कम करने वाली है


आंधी लाने वाली है

पछुआ हवा चलाने वाली

पंखा एसी कूलर चलवाने वाली है

मच्छर लाने वाली है

गर्मी आने वाली है


पानी की बोतल साथ में

दिन भर रहने वाली है

पानी की  सप्लाई कम आने वाली है

पानी ज्यादा बिकवाने बाली है

कहाँ प्याऊ लगाते थे हमारे बुजुर्ग 

समाज सेवा के लिए

आज पानी बेचा जाता है

मुनाफे के लिए

धरती तपने वाली है

जल्द ही एक दिन पानी के लिए 

विश्व में बड़ी लड़ाई होने वाली है

ग्लेशियर ज्यादा पिघलाने वाली

बाढ़ को लाने वाली

गर्मी आने वाली है

धरती तपने वाली है


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

©

रेटिंग 9.5/10


Wednesday, April 3, 2024

#H106 जिंदगी (Life Journey)

#H106

जिंदगी (Life)

जिंदगी में कोई कहीं जा पहुँचा,
कोई कहीं खड़ा रहा,
पर अपने उसूलों पर डटा रहा।
कोई चलता रहा। भटकता रहा।
जिंदगी से दो - दो हाथ करता रहा।
किस्मत सबकी अपनी होती है
पर फिर भी, क्यों कोई हाथ मलता रहा।
खुद से खफ़ा होकर जिंदगी जीता रहा।
जिंदगी बिना समझे।
जिंदगी का सफर करता रहा।

जिंदगी न रेस है, जिंदगी न द्वेष है।
जिंदगी न क्लेश है, जिंदगी न विनाश है
जिंदगी धनअर्जन का केवल, न उद्देश्य है
जिंदगी संतानोंत्पत्ति का, न उद्देश्य है
जिंदगी में केवल मृत्यु, न उद्देश्य है।

जिंदगी जिंदादिली का आवेश है।
जिंदगी दुनिया को जानना, उद्देश्य है।
घूमो फिरो , लोगों का जानो,
खुद को बेहतर बनाने का, उद्देश्य है।
जिंदगी में इज्जत, स्वदेश में है।
जिंदगी, सृजन का आदेश है।
जिंदगी, हंसी खुशी का परिवेश है।

जिंदगी, समाज को
बेहतर बनाना, उद्देश्य है।
जिंदगी वो है,
जो जिऐ तो देश के लिए
जो मिटे देश के लिए
मरने के बाद,
याद आऐ वो जिंदगी है।
जिंदगी में जिन्दादिली,
जीवन का उद्देश्य है।
जिंदगी, सृजन का आदेश है।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 24 मार्च 2024, ©

रेटिंग 9.6/10

Monday, April 1, 2024

#H105 अन्नदाता के आंसू (Tears of farmers👳👳👳)

#H105

अन्नदाता के आंसू (Tears of farmers👳👳👳)


बादल गरज रहा है,  

बेमौसम बारिश लाने‌ को,  

अन्नदाता का दिल

जोर जोर से धड़क रहा है

भांप रहा है आने वाले खतरा को

होने वाले नुकसान से,  

किसान की आवाज भर्राई

सोच रहा है

यह कैसी आफत आयी


पकी फसल खड़ी है कटने को,  

कटी फसल पड़ी है मढ़ने को

अब बारिश ने झड़ी लगाई

अन्नदाता की आखें भर आयीं

यह कैसी आफत आयी


किसान खड़ा खेत पर,  

फसल घर लाने को

उसका दिल बैठ रहा है

यह सोच सोच के

घर क्या लायेगा, खाने को

क्या बेचेगा वो

औरों को खानेको


आज बेमौसम बारिश आयी,    

मौसम में ठण्डक लायी

सबके मन भायी

पर यह बारिश नहीं है

अन्नदाता के आंसू हैं,  

यह कैसी आफत आयी


बेमौसम बारिश से फसल सड़ जायेगी,  

रह जायेगी केवल चारे को

इस बार बच्चों को, वो कैसे पढ़ायेगा

फीस कहां से लायेगा,  

कैसे विहाऐगा बच्चों को

कौन मदद को आयेगा,  

क्या रह गया, मुझको कहने को

यह कैसी आफत आयी


फसल बीमा की तरफ, वो ताकेगा,  

धूल बीमा आफिस की फांकेगा,  

कुछ हो जाए भरपाई 

खाना खाने को

बैमौसम बारिश, हर बार यों ही सताऐगा

ईश्वर ही सताऐ  जिसको

कौन मदद को आऐगा,  

किसान यों ही पछताता रह जाऐगा,  

किसान के हिस्से, यह कैसी आफत आयी


अब खाद कहाँ से लायेगा,  

किसान कार्ड से ऋृण लेगा

अगली फसल पर कुछ घर लाने को

ऐसी उम्मीद जगाऐगा,  

अगली फसल उगाऐगा

हम सब को भरपूर अन्न मिल सके

ऐसी उम्मीद जगाऐगा


पर यह बारिश नहीं है

अन्नदाता के आंसू हैं

यह कैसी आफत आयी


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 31 मार्च 2023, ©
रेटिंग 9.8/10

#H104 अप्रैल फूल (April fool 🤡)

#H104

अप्रैल फूल (April fool 🤡)

उसने मुझे बुलाया
कोई मिलने मुझसे आया
यह बतलाया
मैं पहुँचा तो कोई नहीं पाया
उसने मेरा अप्रैल फूल बनाया।
मुझे इस पर बहुत गुस्सा आया।
खूब जोर से मेरा  उसने मजाक उड़ाया।

अंग्रेजों ने यह क्या चलाया
हर कोई चाहे किसी अपने को
मूर्ख बनाना, याद करे बाद में,
कैसे हमने उसका मज़ाक उड़ाया।

हर साल तरह - तरह के हथकंडों से
लोगों ने लोगों को मूर्ख बनाया।
यह सिलसिला यों ही बढ़ता आया।
अंग्रेजों ने यह क्या चलाया।

सच तो यह है
किसी को मूर्ख बनाने का
ख्याल मन में जब भी लाया।
यानी खुद को पहले
तूने खुद को मूर्ख बनाया।
किसी की भावनाओं का
तूने जम के मज़ाक उड़ाया।
अंग्रेजों ने यह क्या चलाया।

हमने मूर्ख में बस इतना पाया
जो करने के समय बैठा रहा।
न करने के समय करता रहा।
बोलने के समय बोला नहीं।
समय निकलने पर बोलता रहा।
बोलने से पहले सोचता नहीं।
स्थान, व्यक्ति, समय का ध्यान रखता नहीं

सांप आंखों के सामने जाता रहा।
निकल जाने पर लठ्ठ पीटता रहा।
हर बार ऐसा ही दोहराता हो
वही व्यक्ति मूर्ख से कम रहता नहीं।
"नासमझ" किसी को मूर्ख समझता नहीं।

कालिदास को मूर्ख समझकर
साजिश कर विवाह कराया।
मेघदूत महाकाव्य रचकर
कालिदास ने इतिहास बनाया।

हर कोई तुगलक बन सकता नहीं
हर बार रणनीति सफल हो
यह सम्भव हो सकता नहीं।
गलती करने वाला मूर्ख हो
यह जरुरी नहीं।
प्रवृत्ति हो गयी हो ऐसी
उसको फिर मूर्ख कहने हर्ज नहीं।


देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 31  मार्च 2024, ©

रेटिंग 9.4/10

#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475 7 मासूम (7 Innocents) पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई, सात मासूमों की जान चली गई। स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई। घरों में घनघोर अंधेरा क...