#H130
मैं खेलने जाऊँ (Let me go to play)
"यह कविता बच्चों के द्वारा बार - बार घर से बाहर जाकर खेलने के जाने स्थिति के बारे में है "
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
न मैं सुबह को देखूँ
न मैं दोहपहर की गर्मी देखूँ
न देखूँ शाम का अंधेरा।
न मच्छरों को आतंक समझ पाऊँ
हर वक्त ऐसा कहता जाऊँ
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
होमवर्क समय से पूरा न कर पाऊँ
लिखने पढ़ने की बात होने पर
मैं मुद्दे को भटकाऊं।
टीवी देखूँ, मोबाइल देखूँ
लेपटॉप भी चलाऊँ।
इनमें केवल गेमिंग देखूँ
फिर से दोहराऊं,
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
नीचे न भेजने पर
रो-रो कर घर सर उठाऊँ।
मैं नीचे जाने से न घबराऊं
मम्मी से बस यही जबाब मैं पाऊँ
मैं तुझे थोड़ी देर में नीचे लेकर जाऊँ
मम्मी मैं नीचे जाऊँ।
साथी आ जाते दरबाजे पर
और आवाज लगाते
तब भी मैं बोलूं
मम्मी मैं नीचे खेलने जाऊँ।
कभी - कभी मैं खुद ही भाग जाऊँ
मनमर्जी से दोस्तों संग खेलूँ
साइकिल चलाऊँ
फुटबॉल खेलूँ
छुपन छिपाई में समय लगाऊँ।
बिना बुलाने घर वापस न आऊं।
पानी पीने तो आऊं,
फिर वापस मैं जाऊँ।
चोट लगने पर वापस आऊं
मम्मी से दवाई मैं लगवाऊं
कई दिनों तक घर में रुकने की
सजा फिर मैं पाऊँ।
मैं तो हर रोज दोहराऊं।
मम्मी मै नीचे जाऊँ।
मम्मी मै खेलने जाऊँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 26 अप्रैल 2024,©
रेटिंग 9/10