Monday, April 1, 2024

#H105 अन्नदाता के आंसू (Tears of farmers👳👳👳)

#H105

अन्नदाता के आंसू (Tears of farmers👳👳👳)


बादल गरज रहा है,  

बेमौसम बारिश लाने‌ को,  

अन्नदाता का दिल

जोर जोर से धड़क रहा है

भांप रहा है आने वाले खतरा को

होने वाले नुकसान से,  

किसान की आवाज भर्राई

सोच रहा है

यह कैसी आफत आयी


पकी फसल खड़ी है कटने को,  

कटी फसल पड़ी है मढ़ने को

अब बारिश ने झड़ी लगाई

अन्नदाता की आखें भर आयीं

यह कैसी आफत आयी


किसान खड़ा खेत पर,  

फसल घर लाने को

उसका दिल बैठ रहा है

यह सोच सोच के

घर क्या लायेगा, खाने को

क्या बेचेगा वो

औरों को खानेको


आज बेमौसम बारिश आयी,    

मौसम में ठण्डक लायी

सबके मन भायी

पर यह बारिश नहीं है

अन्नदाता के आंसू हैं,  

यह कैसी आफत आयी


बेमौसम बारिश से फसल सड़ जायेगी,  

रह जायेगी केवल चारे को

इस बार बच्चों को, वो कैसे पढ़ायेगा

फीस कहां से लायेगा,  

कैसे विहाऐगा बच्चों को

कौन मदद को आयेगा,  

क्या रह गया, मुझको कहने को

यह कैसी आफत आयी


फसल बीमा की तरफ, वो ताकेगा,  

धूल बीमा आफिस की फांकेगा,  

कुछ हो जाए भरपाई 

खाना खाने को

बैमौसम बारिश, हर बार यों ही सताऐगा

ईश्वर ही सताऐ  जिसको

कौन मदद को आऐगा,  

किसान यों ही पछताता रह जाऐगा,  

किसान के हिस्से, यह कैसी आफत आयी


अब खाद कहाँ से लायेगा,  

किसान कार्ड से ऋृण लेगा

अगली फसल पर कुछ घर लाने को

ऐसी उम्मीद जगाऐगा,  

अगली फसल उगाऐगा

हम सब को भरपूर अन्न मिल सके

ऐसी उम्मीद जगाऐगा


पर यह बारिश नहीं है

अन्नदाता के आंसू हैं

यह कैसी आफत आयी


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 31 मार्च 2023, ©
रेटिंग 9.8/10

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