#H117
हौसला है, तो मंजिल हमारी
कदमताल करते - करते
यहाँ तक आ पहुंचें हैं हम |
कुछ इल्जाम और कुछ जख्म लेके
अब मंजिल है पास
ऐ मेरे साथी कुछ सासें और थाम ले |
नाव डगमगाती हैं समंदर में
कभी कभी पतवार भी टूट जाती हैं समंदर में
पाल भी फट जाते हैं तूफान में
पर सब रखते हैं भरोसा अपने मांझी पर
मांझी रखता है भरोसा खुद पर और अपने ईश्वर पर
ईश्वर सब को भंवर पार कराता है समंदर में
तू भी रख भरोसा अपने मांझी पर
मंजिल होगी हमारे कदमों में |
होगा सबेरा चारों ओर
तू असल मंजिल पर होगा जिंदगी में
हौसला हो तो हमारी मंजिल ,
सदा पास होती है असल में
वरना कश्तियाँ डूब भी जाती है,
आकर मंजिल पर, समंदर में
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
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