Thursday, February 29, 2024

#H078 मैं (I, Pride)

#H078 

मैं (I, Pride) 

मैं ही मैं हूँ।
मैं ही सब हूँ।
तू ही तू हैं।
मैं अपनी दुनिया का रब हूँ।

कब मैं पीछ हूँ।
सब से आगे हूँ।
कब से आगे हूँ।
सच में, मैं डरपोंक हूँ।
मैं मौकापरस्त हूँ।
मैं चापलूस हूँ।
पर मैं मरने सबसे पीछे हूँ।

किसी का हक मारने में मैं,
सब से आगे हूँ।
कोई पीछे रहे या रुका रहे,
फर्क नहीं मुझे,
पर मैं सबसे आगे रहूँ।
मेरी दुनिया में बस मैं ही हूँ।

अर्श से फर्श तक आने में
एक  क्षण लगता है,
जब रब ने कहा, मैं ही सब हूँ।
तब मैं कुछ नहीं हूँ,
रब ही सब कुछ है।

जब तक तू "मैं" में मस्त।
तब तक सब तेरे से त्रस्त।
रब दुनिया में व्यस्त।
रब से होगा तू भी एक दिन त्रस्त।
उस दिन सब दिखेंगे मस्त।

समझ ले "नासमझ"
इस दुनिया में "मैं" कुछ नहीं हूँ।
केवल रब के लिए ही "मैं" हूँ।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 14 फरवरी 2024, ©

रेटिंग 9/10

Wednesday, February 28, 2024

#H077 अंडे का फंडा (Sides of Egg)

#H077

अंडे का  फंडा (Sides of Egg) 


संडे हो मंडे
रोज खाओ अंडे


अंडे में निकला चूजा । 

बच्चा अंडा खाके सूजा
यह खबर मिलने पर
दुकानदार अपनी सीट से कूदा
जल्दी नौकर को बोला
सारे अंडे तोड़ दो
अंडों का मुनाफा छोड़ दो
बच्चों अंडे खाना छोड़ दो।

संडे हो मंडे, रोज खाओ अंडे।
बस बर्ड्स फ्लू का राग छेड़ दो।
अंडे को अपना खाना, कहना छोड़ दो।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 26 जनवरी 2024, ©

रेटिंग 8/10

Tuesday, February 27, 2024

#H076 वो मंगल गा रही है (Song of Joy)

      #H076

   वो मंगल गा रही है (Song of Joy) 


वो मंगल गीत गा रही है

खुशियाँ मना रही है

छोटे भाई की शादी में लगी है

भाई को विवाह कर

भाभी को लाने में, दिन रात लगा रही है


माँ की भी आज याद आ रही है

आऐगी भाभी तो फलेगा फूलेगा घर

ऐसी उम्मीदें लगा रही है

वो मंगल गीत गवा रही है


आऐगी भाभी मेरे घर

संभालेगी पिताजी को

ऐसा सपना, भैया की दुलारी  सजा रही है

वो खुशियाँ मना रही है


मैं निश्चित होकर ही जाऊँगी सजन घर

ऐसा मन बना रही है

वो अपने पिता की प्यारी बिटिया

आज मंगल गा रही है


हमारी तरफ से तुम्हारे भाई को

शादी की शुभकामनाएं

इस पर वो आभार जता रही है

आने वाले दिनों का सपना सजा रही है

दुलारी मंगल गा रही है।


देवेन्द्र प्रताप 

Dated 19 Feb 2023,©

रेटिंग 8.5/10


Monday, February 26, 2024

#H075 जय हो जमादार की (Salute to Sweepers)

#H075

जय हो जमादार की (Salute to Sweepers) 

कूड़ा लेकर जाते हैं।
झाड़ू भी लगाते हैं।
धूल बहुत वो खा जाते हैं
गली मोहल्ले, घर, दफ्तर में
पौंछा भी लगाते हैं
हमें संक्रमण से बचाते हैं।
अस्पताल में कचरा, पट्टी,
जैविक अपशिष्ट भी हटाते हैं।
कई बार संक्रमित हो जाते हैं
अच्छा जीवन नहीं जी पाते हैं।
दुनिया से जल्दी चले जाते हैं।

मालिक से सुरक्षा दस्ताने नहीं पाते हैं
बगैर मास्क के काम पर लगाऐ जाते हैं।
उठने बैठने का सही जगह नहीं पाते हैं।
यहाँ- वहाँ बैठकर अपना समय बिताते हैं।

सीवर भी खुलवाते हैं
नाले में घुसवाऐ जाते हैं।
हर साल कई सफाई कर्मी
दम घुटने से मर जाते हैं।
मास्क नहीं वो पाते हैं
सुरक्षा का ज्ञान पूरा नहीं पाते हैं।

वेतन बहुत कम पाते हैं।
कई विभागों में वेतन देरी से पाते हैं।
पक्की नौकरी  नहीं पाते हैं।
सामाजिक सुरक्षा से बंचित होते हैं।
ठेकेदारी में फंसकर रह जाते हैं।
मरने पर  उचित मुआवजा से बंचित रह जाते हैं।

गरीबी में जीवन बिताते हैं।
जो भी लोग गंद हटाते हैं।
"जमादार" कहलाते हैं।
पर जीवन में
कुछ भी जमा नहीं करपाते हैं।
सरकार को इस काम के लिए
पूरा सम्मान और वेतन
देने की हम उम्मीद लगाते हैं।

सब कूड़ा फैलाते हैं।
यहाँ वहाँ छितराते हैं।
खुद को बेहतर बताते हैं।
अनुशासित नहीं हो पाते हैं
कूड़ा फैलाने पर भी नहीं शरमाते हैं।

काश् सब जमादार हो जाते।
धरती को कितना सुन्दर रख पाते।
यहाँ - वहाँ हम फिर कूड़ा न पाते।

कचरा हटाने वाले "जमादार"
फैलाने वालों से कहीं ज्यादा,
अच्छा कहलाने का हक पाते हैंं।
"नासमझ " तो "जय हो जमादार की"।
ऐसी आवाज लगाते हैं।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 11 फरवरी 2024, ©

रेटिंग 9/10

Sunday, February 25, 2024

#H074 टोला (Cluster)

#H074

टोला (Cluster) 

कहाँ से शुरू करूँ मैं।
यह सोच रहा।
देश का हाल ,
मुझे आगे धकेल रहा है।

एक दारू घोटाले में डूबा है ।
दूजा नौकरी के बदले जमीन
की जांच में अटका है।
तीजा कई मामलों में ,
जमानत पर घूम रहा है।
चौथा आय से अधिक संपत्ति का केस
दशकों से झेल रहा है।

कोई जमीन को हड़पने में,
जेल में जा पहुँचा है।
यह कैसे लोगों का टोला है।
जाति धर्म बढ़ चढ़ कर
सिर पर इनके बोला है।
ये सब अपने मतलब के लिए,
हम सब एक है, ऐसा बोला है।
यह अवसरवादियों का टोला है।

क्या सब ठीक है सत्ता पक्ष में,
"नासमझ" का मन ऐसा बोला है।

इतिहास गवाह है।
इनके कार्यकाल में,
जुर्म, तुष्टिकरण, जातिवाद,
बढ़ चढ़कर इनके सिर बोला है।
कोई चारा खाकर हजम कर गया,
फिर भी इसने खुद शोषित बोला है।

कोई भाषा पर जोड़ रहा है।
खुलेआम दशकों से ,
भारत को तोड़ रहा है।
जोड़ने वाला इन सबसे से,
खुद को जोड़ रहा है।
सत्ता के बिना ,
इनके घोटालों का खुलने डर,
बढ़ चढ़कर सिर बोल रहा है।

सीटों के बंटवारे में,
अल्पसंख्यक वाली बहुसंख्यक सीटें,
टोला का मुखिया खोज रहा है।

कोई देश जोड़ रहा है।
न्याय के लिए दोड़ रहा है।
क्या देश टूट गया है?
किसको न्याय नहीं है?
क्या करेगें ये जीते यदि,
जनता का मन यह खोज रहा है।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 24 फरवरी 2024, ©

रेटिंग 9/10

#H073 फागुन आयो रे ( Spring 🌱🌷🌸 Came)

 #H073

फागुन आयो रे

हर तरफ खेतों में हरियाली छाई रे

सरसों कटने को,  गेहूँ पकने को है

फागुन आयो रे

ठंड जा रही गर्मी आ रही है

मौसम बढ़ा सुहाना है

खेतों में सुन्दर रंग छाओ रे

हरा, सफेद, पीला,  बैंगनी रंग छायो रे

सुनो भाईओं होली आई रे

अवीर गुलाल रंग लाई रे

गुजिया और मिठाई लाई रे

प्यार का मौसम आयो रे

फसल पकने को है

कनक कटने को है

शादी किसी की होने को है

कनक  किसान घर आने को

कोई सजने को है

पिया घर जाने को है

प्यार का मौसम आयो रे

होली आई रे

खुशनुमा मौसम लाई रे

फागुन आयो रे


देवेन्द्र प्रताप 

©

रेटिंग 8.5/10

Saturday, February 24, 2024

#H072 सार्थक देशभक्ति (True Patriotism)

#H072
सार्थक देशभक्ति (True Patriotism) 

झंडा फहराओ।
गणतंत्र मनाओ।
खुशी जताओ। ।
तिरंगा लहराओ।

पर पहले,
अनुशासित हो जाओ।
अपना फर्ज निभाओ।
संसाधन बचाओ।
समय कीमत समझ जाओ।
उत्पादकता बढ़ाओ।
जो भी करो,
एक बार में सही करो।
देश को आगे लेके जाओ।

लोगों से संपर्क बढ़ाओ।
आपस में भाई चारा बनाओ।
फिर सच्चे नागरिक बन जाओ।

"नासमझ" जोर से बोले,
विजयी रहे तिरंगा हमारा।
ससम्मान तिरंगा लहराओ।


देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 25 जनवरी 2024, ©

रेटिंग 8.5/10

Friday, February 23, 2024

#H071 बेटी (Daughter)

#H071

बेटी (Daughter) 


आस लगाई तुमने, तब बेटी पाई।
बचपन में बेटी,
तुमको देख - देखकर,
शरमाई, हंसी और मुस्काई।

पढ़ाई, लिखाई कर, शिक्षित हो पाई।
दूर भेजी जब भी तुमने,
एक अजीब से भड़क दिल में पाई।
जब तक सुरक्षित घर में वापस न आई।

और फिर एक दिन, बेटी तुमने विहाई।
हो गई अपनों से दूर,
वह तुमसे दूर कभी न हो पाई।

बेटी माँ बनकर एक दिन आई।
लाला या लाली लेकर आई।
बीमार अगर पड़े तुम,
तो फिर दौड़ी - दौड़ी आई।

बेटी आगे जाकर, दादी कहलाई।
किस्मत से वो नानी भी बनपाई।
चश्मे और छड़ी को ढूंढती पाई।
और फिर कोई छोटी बेटी
खेल- खेल में दादी को बहुत थकाई।

फिर एक दिन बस यादों में बेटी पाई।
यादों में हर लम्हा बार - बार दिखलाई।
जब जग से हो गयी बेटी विदाई।
ईश्वर किसी को ऐसा दिन न दिखाई।

"नासमझ" सबसे बस यही कहें।
बेटी को कभी बेटा मत कहना,
ऐसे में उसकी पूरी इज्जत न हो पाई।
ध्यान रहे, बेटी कहीं पीछे न रह जाऐ।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 01 फरवरी 2024,
©

रेटिंग 9/10

Thursday, February 22, 2024

#H070 आदमी खुद का दुश्मन हो गया है (Man become self enemy)

  #H070

आदमी खुद का दुश्मन हो गया है (Man become self enemy)


आलस्य छा गया है, बजन बढ़ गया है

बीपी चढ़ गया है, हर जोड़ हिल गया है

सांस फूलने लगा है, सब्र टूट सा गया है

हर जगह घुटन सी हो रही है, धुआँ छा गया है

हर दूसरा आदमी बेसब्र हो गया है

आदमी को यह क्या हो गया है


क्योंकि चाहत बढ़ गया है 

कार पड़ोसी से बड़ी होबीवी सबसे से गोरी हो

पांच सौ गज का बंगला हो

बैंक में करोड़ों का धन, लाखों का वेतन हो

पांच दिन काम हो, कोई जबाब देही न हो

हों महीने भर की छुट्टियां विदेशी जमीन पर

पाश्चात्य सिर चढ़ गया है

देखो भारतीय कितना गिर गया है 

चाहत कितना बढ़ गया है

दिमाग में सब खोने का डर चढ़ गया है

हर दूसरा आदमी बेसब्र हो गया है



आदमी आदमी से कट गया है

क्योंकि आज आदमी सोसल मीडिया पर जुड़ गया  है

हर हाथ को काम मिल गया है

नेट का खर्च बढ़ गया है, चश्मा चढ़ गया है

हाथों, अंगुलियों और गर्दन का रोग बढ़ गया है

खेलना घट गया है, दौड़ना बहुत घट गया है

हर दूसरा आदमी बेसब्र हो गया है


कभी भारत विश्व गुरु रहा है

नालंदा तक्षशिला विश्व विद्यालय यहीं रहा है

आज भारतीय क्या कर रहा है

पश्चिम से सीख रहा है

दारू हर जगह बढ़ गया है

हों कई कमसिन महिला मित्र

सिगरेट का धुआँ फेफड़ों में भर गया है

पार्टियों का चलन बढ़ गया है

आदमी बहुत बैचेन हो गया है

हर किसी में गुस्सा बढ़ गया है

आदमी खुद से कट गया है

मन का संतोष खो गया है

हर दूसरा आदमी बेसब्र हो गया है


दुकान से सामान लाना, बहुत कम हो गया है

सब कुछ आनलाइन रिटेल से आने लगा है

खाने से आटा घट गया है, ब्रेड घर में घुस गया है

साग - सब्जी सलाद से हट गया है

मौसमी फल खाने से, आदमी पीछे हट गया है

दलिया  कहीं गुम गया है, कार्नफ्लेक्स आ गया है

दूध हट गया है, चाय का चलन बढ़ गया है

शरीर में शुगर बढ़ गया है

मंहगाई बहुत चढ़ गया है

बजन बढ़ गया है, आलस्य चढ़ गया है

आदमी बहुत बेसब्र हो गया है


जीवन में कमाया जो, इलाज में खो गया है

आदमी खुद का दुश्मन हो गया है

आलस्य छा गया है, बजन बढ़ गया है

बीपी चढ़ गया है, हर जोड़ हिल गया है

आदमी बहुत बेसब्र हो गया है


पाश्चात्य में शाकाहार बढ़ गया है

वहाँ लोग सनातनी हो रहे हैं

हिन्दू संस्कृति अपना रहे हैं

मन की शांति खोज रहे हैं

हम यहाँ विधर्मी हो रहे हैं

ऐ भारतीय तुझे क्या हो गया है


देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 23 फरवरी 2023 ,©

रेटिंग 9.87/10

Wednesday, February 21, 2024

#H069 देशभक्त की कसक (the pain of a patriot)

#H069

देशभक्त की कसक (The Pain of a Patriot) 

खुद को देशभक्त कहलाते हो।
टैक्स नहीं चुकाते हो।
टैक्स बचाने के चक्कर में
टैक्स की चोरी कर जाते हो।

सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती है।
इसलिए मैं ऐसा कर जाता हूँ।

गुडस और सर्विस  को लेने पर
जीएसटी  की कई दरें लगवाते हो।
फिर क्यों आयकर उघाते हो।

वाहन खरीदने पर,
रोड टैक्स चुकाते हैं हम,
फिर टोल टैक्स क्यों उघाते हो।
पेट्रोल को जीएसटी में क्यों नहीं लाते हो।
नागरिकों पर दोहरा टैक्स लगाते हो।

सालों साल गड्डों में रोड चलाते हो
रोड पर वारिश में नदी हाते हो।
गडढा  मुक्त रोड का नारा लगाते हो
पर चुनाव के पहले ही रोड बनाते हो।
या फिर रोड के लिए, धरना भी करवाते हो।

शिक्षा विभाग को बर्बाद कर जाते हो।
चिकित्सा विभाग को ठप्प कर देते हो।
सब कुछ महंगा लेने पर नागरिकों को ,
मजबूर कर जाते हो।
ऊँचा आयकर क्यों लगाते हो।
हमें क्यों "टैक्स चोरी" को उकसाते हो।

करदाता को कोई सुविधा नहीं देते हो।
सस्ता जीवन और स्वास्थ्य बीमा दिलवाओ।
अच्छा सस्ता इलाज कराओ।
अच्छी सस्ती शिक्षा करवाओ।
वृद्ध होने पर पेंशन दिलवाओ।
टैक्स दरों को कम करो।
फिर हर किसी से टैक्स पाओ।

टैक्स के पैसे का सदुपयोग करो।
मुफ्त योजनाओं में न बर्बाद करो।
वोट के लिए टैक्स के पैसे को
यों न जनता में नीलाम करो।
भ्रष्टाचार को जड़ से दूर करो ।
करदाताओं का विश्वास जगाओ।

हर किसी से फिर देशभक्त ,
होने की आस लगाओ।
आयकर देकर देश को,
और आगे ले के जाओ।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 18 जनवरी 2024
©

रेटिंग 8.5/10

Sunday, February 18, 2024

#H068 अवेन्जर्स हमारे (Our Avengers)

#H068

अवेन्जर्स हमारे (Our Avengers) 

बच्चों को हैं अवेन्जर्स प्यारे। 

पर इनको समझाओ, 

कितनी लम्बी छलांग लगाते, 

राम भक्त हनुमान हमारे। 

एक छलांग में समुद्र पार कर जाते, 

पवनपुत्र हनुमान हमारे। 


अवेन्जर्स तो हैं  कामिक्स के, 

केवल पात्रतुम्हारे। 

पर रामायण और महाभारत, 

इतिहास हमारे। 


जब कोई थक जाता है इस जग से, 

हो जाता राम सहारे। 


पिता वचन की लाज को, 

वन चले गये राम हमारे। 

क्योंकि वचनबद्ध दशरथ भी, 

 रह गए थे राम सहारे। 

एक वाण से समुद्र सुखाते, 

पुरुषोत्तम राम हमारे। 


एक वाण मार, धरती से जलधार  निकालते, 

गांडीव धारी अर्जुन हमारे। 

कुत्ते का मुंह वगैरह चोट के, भरते, 

एकलव्य अद्वितीय शिष्य हमारे। 


अवेन्जर्स तो हैं  कामिक्स के, 

केवल पात्रतुम्हारे। 

पर रामायण और महाभारत, 

इतिहास हमारे। 

जब कोई थक जाता है इस जग से, 

हो जाता राम सहारे। 


देवेन्द्र प्रताप 

©

रेटिंग 8.5/10




Saturday, February 17, 2024

#H067 खांसी (Cough)

#H067
खांसी (Cough) 

रात रात भर जगाऐ।
गला बहुत दुखाऐ।
सीने में दर्द उठाऐ।
पसलियों में दर्द बताऐ।
कभी सूखा, कभी गीला,
बलगम भी आए।
कभी - कभी कुछ भी न आए।
इंसान बोलने से कतराऐ।
कभी सूखी, कभी- कभी काली भी कहलाऐ।
बताओ यह बीमारी क्या कहलाऐ।

गर्म पानी में नमक के गरारे करवाऐ।
गर्म पानी पिलवाऐ।
सिरप पिलवाऐ।
भाप दिलवाऐ।
एंटीबायोटिक दवाई,
खाने को मजबूर कराऐ।
शहद अदरक रस चट वाऐ
मुलहठी भी चुसवाऐ।
तब जाकर मुश्किल से खांसी दूर हो पाऐ।
भाईयो आजकल  खांसी  को हल्के में न ले जाऐं।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 01 फरवरी 2024
©

रेटिंग 7.5/10

Friday, February 16, 2024

#H066 जाटनी का धरना (Strike of wife )

#H066

जाटनी का धरना (Strike of wife ) 


जाटनी अपने जाट से बोली
मुझे "वरना" दिलवा दो।
वरना मैं धरने पर बैठ जाऊँगी।
खाना नहीं बनाऊंगी।
तुम्हें सुबह शाम तरसाऊंगी।
न माने तो, पीहर में रुक जाऊँगी
घर का सारा काम, तुमसे ही कराऊंगी।

क्या करेगी वरना से?
उसे सरपट दौड़ाऊँगी
गर्दा बहुत उड़ाऊंगी
तुम्हें बिठाकर,
गाड़ी मैं दौड़ाऊँगी।
तुम्हें गाड़ी में डराऊंगी,
सखियों को दिखलाऊंगी।
पीहर मैं ही लेकर जाऊँगी।

"वरना" रहने दे, भागवान,
ठेर सारे जेवर तुझे दिलवाऊंगा।
तेरा गला सजाऊंगा।
वैगनआर जैसी छोटी कार लेकर आऊंगा।
अपने काम लिए पैसे और बचाऊँगा।

जाटनी रुठ गयी,
जाट आ गया सकते में,
रोज रोज की चिक चिक में
बात अटक गयी क्रेटा पर।
जाटनी की हठ के आगे
हार गया, जाटनी का वरना।
अब क्रेटा ही लेकर आऊंगा।
भागवान, अब तुझको मैं मनाऊँगा।

धूल उड़ा लेना, सरपट दौड़ा लेना
बस मुझको तू हसता हुआ
मुखड़ा दिखला देना।

जो चाहे वो दिखलाऊंगा।
अब क्रेटा में तुझे बिठाऊंगा
क्रेटा चलाते तुझे निहारुंगा।
सनस्क्रीन खोलकर ,
तुझे ताजा हवा खिलाऊंगा।
तुझे खड़ाकर क्रेटा में
गाड़ी मैं चलाऊंगा।
तेरी सारी इच्छा पूरी करवाऊंगा।
तेरी शान बढ़ाऊँगा।
अब अपने वरना को गले लगा ले।
वेलेंटाइन डे पर क्रेटा ही तुझे दिलाऊँगा।
क्रेटा तुझसे चलवाऊंगा।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 15 फरवरी 2024
©

रेटिंग 8/10

Wednesday, February 14, 2024

#H065 एक रोज ( A 🌹Rose)

#H065

एक रोज ( A Rose)

रोज से मिलने गया एक रोज।
रोज से मिलने गया, हर रोज।
रोज मिली तो साथ में न था रोज।
रोज - रोज के चक्कर में,
आज न मिली रोज।
हर रोज मिली,  पर रोज न मिला।

रोज को वेलेंटाइन डे  ले गया।
रोज को रोज न दे पाया।
रोज की वजह से,
नाराज हो गयी रोज।

मत तोड़ तू  रोज
मत मरोड़ तू रोज
मत छेड़ तू रोज।
किसी की है रोज।
तेरी होगी तो मिलेगी एक रोज।
तारीफ करके तू भी दे दे एक रोज।
न स्वीकार करे तो,
खोज ले कोई और रोज।
कोई न मिले तो,
दे तू खुद को एक रोज।

रोज है तो महक ले हर रोज।
रोज के बालों लगा तू,
हर रोज, एक रोज।
रोज संग रख तू रोज, हर रोज।
महकाते रहिये जीवन में रोज।
चहकते रहो, अपनी रोज के साथ रोज।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 14 फरवरी 2024
©

रेटिंग 7.5/10

#H064 अहसास ( Realization)

#H064

अहसास ( Realization) 

मन में अंकुर फूट रहा है

दिल में कुछ आग लग रही है

पता नहीं क्या हो रहा है

कोई अच्छा क्यों लग रहा है

काम में मन न लग रहा है

अभी उम्र बाली है

सब हरा दिख रहा है

हो कोई चाहने वाला

ऐसा मन सोच रहा है

मन में अंकुर फूट रहा है

समय बदल गया है अब

प्यार का इजहारे सलीका

बाजार ने बदल दिया है

इक सच्चे अहसास को

दिखावा बना दिया है

कोई चाकलेट खरीद रहा है

तो कोई मंहगा उपहार खरीद रहा है

ये वैलेंटाइन डे से ज्यादा

मिलियन सैलिंग डे बना दिया है

फिर भी मन में अंकुर फूट रहा है

मैं हूँ अपने माँ वाप के प्यार की निशानी

प्यार एक एहसास है, जो न है मोहताज

चढ़़ती उम्र का और न ढलते हुस्न का

यह वो अहसास, जो रहे मरते दम तक

प्यार करो इजहार करो

न तुम किसी   का तिरस्कार करो

न नशा करो न युद्ध करो

वासना और प्यार का फर्क समझो

वासना तो उम्र के साथ ढल जाती है

जिससे करो तो जीवन भर करो प्यार

जैसे राधा ने किया किशन से

हीर ने रांझे से, लैला ने किया मजनू से

मीरा ने कृष्ण से, यशोदा ने किया कन्हैया से

श्रवण ने अपने माता पिता से

लक्ष्मण ने राम से, राम ने दशरथ से

सती सावित्री ने सत्यवान से

बहन का भाई से, सीता ने राम से

जीवन भर करो , प्यार निःस्वार्थ करो

प्यार केवल पाने नाम नहीं है

प्यार देने का नाम है

अब भी मन में अंकुर फूट रहा है

जीवन के लिए प्यार चाहिए

कोई घर आने वाला चाहिए

घर पर कोई इन्तजार करने वाला चाहिए

वरना प्यार क्या है पूछो

किसी बिछड़े हुए भाई से

सूनी  हुई कलाई से, सूनी मांग से

जंग में न जाने  लायक जख्मी सिपाही से

कभी न मरने वाला अंकुर मन में फूट रहा है

तुम न बदलना किसी के लिए

तभी प्यार करना सदा के लिए

प्यार केवल पाने का नाम नहीं है

प्यार देने का नाम है सदा के लिए

मन में अंकुर फूट रहा है सदा के लिए


देवेन्द्र प्रताप 

©

रेटिंग 8/10

Tuesday, February 13, 2024

#H063 सोच (Thinking)

#H063

सोच (Thinking) 

तेरी सोच ही तुझे पहचान दिलायेगी ।
वरना भगवान् को भी दोषी कहलाऐगी।
अच्छी सोच तुझे आगे लेकर जायेगी ।
बुरी सोच तो तुझे संकट मे फंसायेगी।

जिसको नहीं अहसास अपनी गलती का
वो तो फंसता ही जायेगा।
अपना ही नुकसान करायेगा।
ऐसे में अच्छी सोच ही उसे  बचायेगी।
अच्छे लोगों  का साथ दिलाऐगी।
हर हालात से लड़ने की शक्ति लायेगी।
बुरी सोच तो तुझे संकट मे ही लायेगी।

अच्छा भी नहीं सीखने देगी तुझे।
ऐसे मन भटकायेगी।
तुझे समझ कुछ नहीं आयेगी।
बुरी सोच तुझे संकट मे फंसायेगी।
अच्छी सोच तुझे आगे लेकर जायेगी ।

तेरी अच्छी सोच ही,
अच्छे दोस्त बनाऐगी।
तुझे विकसित होने का
मौका लेकर आऐगी।
बिगड़ते काम बनाऐगी।

बुरी सोच तो बनता
तेरा काम बिगड़ वाऐगी
दोस्ती तुड़़ वाऐगी
अपनो में आग लगाऐगी।
कुछ अच्छा होने का
मौका भी खा जायेगी।

तेरी सोच ही तुझे पहचान दिलाऐगी।
तुझे समाज में मान दिलाऐगी।
तुझे एक अच्छा इंसान बनाऐगी।
तेरी सोच ही तुझे पहचान दिलाऐगी।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 18 जनवरी 2024, ©

रेटिंग 9.5/100

Sunday, February 11, 2024

#H062 सम्मान ( Self Respect)

#H062

सम्मान ( Self Respect) 

आत्मसम्मान  के लिए लड़े थे,
राणा, लक्ष्मी और शिवाजी।
भले ही जीवन बीता लड़ते- लड़ते
पर सम्मान से याद किया जाता है।

कोई झुका नहीं तो,
स्वाभिमान रह जाता है।
स्वाभिमान से आगे बढ़ने पर,
इंसान अभियानी हो जाता है।

न मिले सम्मान, सही समय पर,
तो अपमान हुआ करता है।

दया दिखाने से,
स्वाभिमान को,
ठेस लगा  करती है।
ऐसे में अभिमान,
घमंड बना करता है।

दोस्ती में दोस्तों का,
सम्मान रखा जाता है।
तभी दोनों का,
स्वाभिमान बचा करता है।

स्वागत करके,
सम्मान किया जाता है।
मेहमानों के दिल में,
यह बहुत हर्षाता है।

लालच में इंसान का,
सम्मान चला जाता है।
नेता को फूलमाला पहनाकर,
सम्मान दिया जाता है।

सम्मुख सभी सम्मान दिया करते हैं।
जब आपके पीछे,
सम्मान दिया जाता है।
सही मायने में
यही असल "सम्मान" हुआ करता है।
जो इस जग से, तेरे जाने पर भी
लोगों से दिया जाता है
न होने का अफसोस हुआ करता है।

देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 19 नवम्बर 2023, ©

रेटिंग 9.5/10

Wednesday, February 7, 2024

#H061 डर से डरना कैसा (Don't be afraid of fear)

#H061

डर से डरना कैसा (Don't be afraid of fear) 


ये क्या हो गया

कोई अपने सपनों को 

धोखा दे गया

अपनों को धोखा दे गया

आंसू वो दे गया

अपने घर में वो खो गया



कोई यह कह गया

जो डर गया वो मर गया

डर से जो आगे बढ़ गया

वो कुछ कर गया

जीवन में सफल वो हो गया

जिन्दा वो रह गया



वरना अपेक्षाओं के बोझ से

आत्महत्या वो कर गया

आंसू वो दे गया

अपने सपनों को धोखा दे गया



एक इम्तिहान में अगर

तू फेल हो गया, तो क्या हो गया

हमारा था हमारा ही रहता

यह तू क्या कर गया

न मिटने वाला दर्द तू दे गया



जिंदगी हर लम्हा इम्तिहान है

इस हार से जो आगे बढ़ गया

जिंदगी में हर इम्तिहान 

वो पास पर गया


हार और जीत जीवन में

जरूरी हिस्से हैं तो डर कैसा


डर से जो डटकर लड़ गया

जीवन में वो सफल हो गया


देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 04 सितम्बर 2023, ©

रेटिंग 9.4/100


Saturday, February 3, 2024

#H060 कदम (Foot step)

#H060
क़दम (Foot step)

घुटनों के बल चलने  वाले
जब कब पहला कदम बढ़ाते हैं।
किसी चीज को पकड़कर
धीरे-धीरे चलते जाते हैं।
कदम लड़खड़ाते हैं इनके
पर फिर भी चलते जाते हैं।
सबके मन को यह हर्षाते हैं।

गिरने पर रोने लगते हैं
माॅं इन्हें उठाती है।
किसने तुम्हें गिराया
बार-बार दोहराती है।
कभी-कभी धरती मां को
यह दोष लगाती है
दो चार थपकियां धरती मां
पर लगा दे देती है ।
अनजाने में ही
कुछ गलत पाठ पढ़ा देती है।
गलती तेरी है, पर
धरती मां को दोस्त लगा देती है
फिर यह हंसने लगते हैं
अब फिर से कदम बढ़ाते हैं।
अनायास ही मुझे
कान्हा और यशोदा याद आते हैं।

पता नहीं बड़ा होने पर
फिर क्यों कदम बढ़ाने से डरते हैं ।
नया करने से डरते हैं।

सदा कुछ नया करो,
मन में संकोच जरा भी ना रखो
हो जाएगा तो मंजिल मिल जाएगी
असफल रहा कुछ सिखा जाएगा।
जो भी हो उसके लिए तैयार रहो।
आगे कदम बढ़ाने से
कभी ना तुम फिर पीछे जाओ।
सदा गलत कदम से पीछे आओ।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 3 फरवरी 2024,©
रेटिंग 9.6/10

Thursday, February 1, 2024

#H059 अविश्वास (Distrust)

#H059

अविश्वास (Distrust) 


अविश्वास के साथ तुम जीते हो।
सुख चैन से नहीं रह पाते हो।
हर किसी से धौखे की उम्मीद लगाते हो।
अपनी टीम नहीं बना पाते हो।
और पीछे रह जाते हो।
घर दफ्तर दोनों में कट जाते हो।
अपने भी बेगाने हो जाते हो।
छोटी छोटी चीजों पर संदेह जताते हो
सनकी जैसे हो जाते हो।

कब कौन धौखा दे दे, सौचकर,
अपना सुख चैन खो जाते हो।
विश्वास करो, पर निगरानी रखो।
जांचों परखो, तभी बढ़ते जाओ।
विश्वासघात मिले, अगर तुम्हें,
सबक लो, और आगे बढ़ते जाओ।
वरना एक सच्चा साथी पा़ओ।
अच्छी टीम बनाओ।
यह परख जितना जल्दी होता है।
वही फायदे का सौदा है।
अविश्वास से बैहतर है विश्वासघात खाना,
हमें, सबक दे कर जाता है।
अविश्वास तो सुख चैन, सब खा जाता है
सभी पर विश्वास करो।
और आगे बढ़ो, चलते जाओ।

टीम में तुम्हें विश्वास हो जाता है।
तुम्हें टीम में विश्वास हो जाता है।
फिर लक्ष्य कदमों में आ जाता है।
यह सबको जीवन में विजयी बनाता है।
अपनों से भी ज्यादा समझ बिठाने लगता है।
सुख चैन जीवन में रह जाता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 13 जनवरी 2024, ©

रेटिंग 9.3/10

#H058 स्वाद (Taste)

#H058

स्वाद (Taste)

कोई चखे तो नमकीन कहे।
कोई चखे तो मीठा बोले।
कोई कहे इसको खट्टा।
कभी कभी कढ़वा भी निकले।
तीखा जब भी निकले,
मुंह से निकले मर गये
या फिर निकले वाह।
कुछ समझ न आये
तो फिर फीका बोले।

स्वादिष्ट बने तो
स्वादू  बोले, और लेकर आओ।
धीरे - धीरे  खाते जाओ।
हद से ज्यादा, तुम खा जाओ।
अगर बना बेस्वाद ,
थाली को फिर दूर हटाओ।

अगर स्वाद के चक्कर में,
तरह तरह व्यंजन खाते,
फास्ट फूड्स को घर में लाते।
लम्बे समय तक ज्यादा खाते।
जल्दी ही फिर वजन बढ़ाते।
जिसको फिर कम न करपाते।

मुश्किलों को फिर गले लगाते।
बीपी, शुगर को मुफ्त में पाते।
ये साथ कई और साथी भी लाते।
फिर दौड़ न पाते।
जल्दी से थक जाते।
धीरे - धीरे अपना मनोबल गिराते।
अनिष्ट होने की आशंका भी जताते।
डाक्टर से फिर मिलने जाते।
जांच कराते, दवा हैं खाते।
डाक्टर चलने - फिर ने को बतलाते।
खाने पर अंकुश लगवाते।
फिर स्वाद का मजा, हम न ले पाते।

इसलिए "नासमझ" ये गुहार लगाते,
खाने पर नियंत्रण रखो।
ताजा खाना ही तुम खाओ।
स्वाद के चक्कर में,
अपना जीवन नहीं गंवाओ।

देवेन्द्र प्रताप 

दिनांक 08 जनवरी 2024, ©

रेटिंग 9.4/10

#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475 7 मासूम (7 Innocents) पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई, सात मासूमों की जान चली गई। स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई। घरों में घनघोर अंधेरा क...