#H071
बेटी (Daughter)
आस लगाई तुमने, तब बेटी पाई।
बचपन में बेटी,
तुमको देख - देखकर,
शरमाई, हंसी और मुस्काई।
पढ़ाई, लिखाई कर, शिक्षित हो पाई।
दूर भेजी जब भी तुमने,
एक अजीब से भड़क दिल में पाई।
जब तक सुरक्षित घर में वापस न आई।
और फिर एक दिन, बेटी तुमने विहाई।
हो गई अपनों से दूर,
वह तुमसे दूर कभी न हो पाई।
बेटी माँ बनकर एक दिन आई।
लाला या लाली लेकर आई।
बीमार अगर पड़े तुम,
तो फिर दौड़ी - दौड़ी आई।
बेटी आगे जाकर, दादी कहलाई।
किस्मत से वो नानी भी बनपाई।
चश्मे और छड़ी को ढूंढती पाई।
और फिर कोई छोटी बेटी
खेल- खेल में दादी को बहुत थकाई।
फिर एक दिन बस यादों में बेटी पाई।
यादों में हर लम्हा बार - बार दिखलाई।
जब जग से हो गयी बेटी विदाई।
ईश्वर किसी को ऐसा दिन न दिखाई।
"नासमझ" सबसे बस यही कहें।
बेटी को कभी बेटा मत कहना,
ऐसे में उसकी पूरी इज्जत न हो पाई।
ध्यान रहे, बेटी कहीं पीछे न रह जाऐ।
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 01 फरवरी 2024,
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