Saturday, July 26, 2025

#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475
7 मासूम (7 Innocents)

पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई,
सात मासूमों की जान चली गई।
स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई।
घरों में घनघोर अंधेरा कर गई,
घरों से खिलखिहाट, उछल कूद ,
शरारत सब ले गयी।
चौखट पर स्कूल से लौटते
बच्चों की आहट गायब हो गई,
मां की आंखों को पत्थर कर गई।

कई मासूमों को घायल कर गई।
जीवन भर के लिए कष्ट दे गई।
कई की जान अधभर में आ गई,

इन बच्चों की खामोशी,
आज हम सबसे कुछ कह गई।
हमारा क्या गुनाह था,
जो हमारी जान चली गई?

गांव, ब्लॉक, तहसील, जिला प्रशासन,
विधायक, सांसद और सरकार —
सबकी अनदेखी की कहानी कह गई।

मेरी आंखों में सिर्फ़ आंसू नहीं,
सवालों की झील भर गई।
झालावाड़ की काली सुबह
सबको भीतर तक हिला गई।

भ्रष्टाचार और लापरवाही की
कहानी खामोशी सबसे कह गई।
कब सुरक्षित होगी मासूमों की ज़िंदगी?
यह सवाल सबके लिए छोड़ गई।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक: 25 जुलाई 2025 ©
रेटिंग 9.7/10

Friday, July 25, 2025

#H474 वफादारी से डर तक (From Loyalty to Fear)

#H474
वफादारी से डर तक (From Loyalty to Fear)

वफादारी की मिसाल हूॅं।
हल्की नींद में सोता हूॅं।
जासूसी के काम आता हूॅं।
पालतू भी बन जाता हूॅं।
मालिक के साथ सोता हूॅं।
बच्चे जैसा रखा जाता हूॅं।

गलियों में भी रहता हूॅं।
खाने के लिए यहां वहां
आता जाता रहता हूॅं।
मारकर भगाया जाता हूॅं।
रखवाली के लिए भी
घर में रखा जाता हूॅं।

छोटे, बड़े, हर कद में मिलता हूॅं।
सफेद , काले, चितकबरे रंगों
में भी पाया जाता हूॅं।
छोटे, बड़े बालों में मिलता हूॅं।
झबरा भी कहलाता हूॅं।
बहुत सारी नस्लों में मिलता हूॅं।
कभी पूंछ खड़ी
और कभी लटकी होती है।

शेरू, मोती, टाइगर, .... जैसे
नामों वाला होता हूॅं।
एक साथ कई बच्चों को जन्म देता हूॅं।
खरीदा - बेचा भी जाता हूॅं।

अनजान को देख भौंकता हूॅं।
मेरे जैसा कोई और मिले तो
बिन भौंकें नहीं रह पाता हूॅं।
कभी-कभी काट भी लेता हूॅं।

इंजेक्शन तुरंत लगाने का
कारण बन जाता हूॅं।
वरना जानलेवा बीमारी दे जाता हूॅं।

बड़ी बुरी मौत मैं मरता हूॅं।
मेरी मौत की मिसाल
लोगों में दिया जाता हूॅं।

पागल होने पर घातक हो जाता हूॅं।
आजकल कई दुखदाई घटनाओं
का कारण बन गया हूॅं।
जब मासूम बच्चों को
जान से मार दिया हूॅं।

अब तो बच्चा हो या बूढ़ा
सबको डराने लगा हूॅं।
समाचारों में आने लगा हूॅं।
मैं शर्मिंदा होने लगा हूॅं।
मालिक की जान भी लेने लगा हूॅं।

कुत्ते जैसी वफादारी
भरोसे का पर्याय बनता हूॅं।
कुत्ते जैसी नींद
सतर्कता सिखाता हूॅं।
कुत्ते की दुम
व्यवहार को दिखाता हूॅं।
कुत्ते की मौत
मारें जाने की धमकी बनता हूॅं।

मैं वफादार भी हूॅं, खतरा भी।
तेरा व्यवहार बताएगा, मैं क्या हूॅं।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.2/10

Wednesday, July 23, 2025

#H473 चलो एक बाजी हो जाए (Let's play a game of chess)

#H473
चलो एक बाजी हो जाए (Let's play a game of chess)

खेल का सामान सस्ता होता।
आसानी से हर जगह पर मिलता।
हर घर में एक बार जरुर आता।
समय बिताने के लिए अच्छा होता।

यह खेल स्कूल, कालेज, राज्य,
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
हर स्तर पर भी होता।

मैं सफेद लूंगा।
तुम काले संभालो।
64 खाने होते,
32 सफेद और 32 काले ।
और दो खिलाड़ी होते।
यह खेल ऐसा होता।

प्यादा सीधा चलता ।
पहले दो कदम,
फिर एक एक चलता।
पर पीछे न हटता।
न तिरछा, न दाएं बाएं चलता।

ऊंट केवल तिरछा चलता।
पर दोनों ओर तिरछा चलता।
आगे पीछे भी तिरछा चलता।

हाथी सीधा चलता,
दाएं और बाएं भी चलता।
आगे पीछे भी चलता।

घोड़ा कुछ अलग ही चलता।
चारों ओर, दो कदम सीधा,
फिर एक कदम दांए या बाएं चलता।
कहने को ढाई कदम चलता।

रानी भी होती।
जो राजा से तेज होती।
चलने पर कोई सीमा न होती।

आखिर में राजा होता।
चारों ओर एक कदम चलता।
चैक दिए बिना न मारा जाता।

चैक मेट हो जाता।
तब खेल खत्म हो जाता।
बराबरी पर भी खेल रुक जाता।

खेल में कुछ खास भी होता।
राजा और हाथी से कैसिलिंग होती।
जब इनकी अदला-बदली होती।

नये मोहरे का पुनर्जन्म भी होता।
जब प्यादा आख़िरी पंक्ति छूता,
तो मन चाहा मोहरा बन जाता।
खेल में नयी जान फूंकता।

जो आगे की चाल सोचकर चलता
सदा खेल में जीत पाता।
केवल खेल नहीं है, रणनीति है।
जीवन जीने की कला सिखाता।

भारत में जन्मा, दुनिया में फैला।
शतरंज का खेल ऐसा होता।
महाभारत की चौपड़ भी
कुछ ऐसी ही होती।
जो सोच-समझकर खेला जाता।

"विश्व शतरंज महासंघ"‌ को
इस खेल का आयोजन कराना होता।
आजकल ऑनलाइन भी होता।

पहले भारतीय ग्रैंड मास्टर
विश्वनाथन आनंद हुए हैं।
फिर सिलसिला न रुका।
खिलाड़ी डटे हुए हैं।
शतरंज में नाम किए हुए हैं।
तिरंगे की शान बने हुए हैं।

नासमझ
दिनांक 20 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

विश्व शतरंज दिवस (20 जुलाई ) पर प्रस्तुत की है।

Monday, July 21, 2025

#H472 हर कोई भिखारी है (Everyone is a Beggar)

#H472
हर कोई भिखारी है (Everyone is a Beggar)

कहने की बस की बात नहीं,
पर मन से मैं प्रयास करूँगा,
इनके साथ न्याय करूँगा।

बेघर, बेसहारा, अकेला,
बिछड़ा हुआ, भटका हुआ,
मजबूर, लाचार, टूटा हुआ —
आख़िर हाथ फैला ही देता है,
आत्मसम्मान को मार देता है।
मंदिर, सड़क, टोल, स्टैंड, स्टेशन,
चौराहे, दरगाह पर बैठ जाता है,
जब काम नहीं पाता है।
आत्महत्या नहीं कर पाता है,
फिर पेट की आग बुझाता है।

जाम में शीशा वे खटखटाते हैं,
कुछ देने की गुहार लगाते हैं।
कुछ लोग दे देते हैं,
कुछ आगे बढ़ जाते हैं।

जब किसी को आते देखते हैं,
तो खुला हाथ सामने फैलाते हैं।
कटोरा भी बढ़ा देते हैं,
कुछ पाने की आस लगाते हैं।

कोई लंगड़ाता है,
कोई अधनंगा दिखता है,
कोई अपंग होता है,
कोई चोट दिखाता है,
कोई मासूम की भूख दर्शाता है।

कुछ ढोंगी,
स्वस्थ होते हुए भी,
खुद को ऐसा दिखलाते हैं।
पता लगने पर
जनता को अपने दान पर
अफ़सोस करवाते हैं।

जब कोई सिक्का डाल देता है,
वो दुआएँ उसको देता है।
केवल तुमसे वह लेता नहीं है,
तुम्हें संतोष भी दे जाता है।

घरों में भी जाते हैं,
ज़ोर से आवाज़ लगाते हैं।
खाना, आटा, पैसा, फल,
कपड़े, जूते ले जाते हैं।
घर से देकर ही लौटाते हैं,
ऐसे संस्कार हमें सिखाए जाते हैं।

रहने को घर नहीं पाते हैं।
सड़क किनारे, फुटपाथ,
मंदिरों के बाहर,
रेलवे स्टेशनों पर सोते हैं।
कभी-कभी फुटपाथ पर
गाड़ियों से कुचल भी जाते हैं।

सड़क पर टक्कर में मर जाते हैं,
इलाज नहीं करवा पाते हैं।
शिक्षित नहीं हो पाते हैं,
स्वच्छ पानी नहीं पाते हैं,
शौचालय नहीं पाते हैं।
कई-कई दिनों तक
नहा नहीं पाते हैं।
गंदगी में जीवन बिताते हैं,
मनोबल खोते जाते हैं।

कूड़ा भी बीनते हैं,
खाना ढूँढते हुए भी मिल जाते हैं।
वहाँ कुत्ते भी साथ में मिलते हैं।
इंसान होने का हक़
समाज से नहीं पाते हैं।
ढंग से अंतिम संस्कार नहीं पाते हैं।
अपनी पहचान नहीं बना पाते हैं।

कुछ अपराधी
बच्चों के हाथ-पैर तोड़कर
चौराहों पर भीख मंगवाते हैं।
भिखारियों का रैकेट चलाते हैं।
अपराध में भी शामिल हो जाते हैं।

सरकारी सुविधाओं तक नहीं
पहुँच पाते हैं।
विपन्नता में जीवन बिताते हैं।
जानवर तो घरों में पाले जाते हैं,
पर इंसान यहाँ-वहाँ मिल जाते हैं —
वो भिखारी बन जाते हैं।

देखो तो, हर इंसान भिखारी है —
कोई ऊपर वाले से माँग रहा है,
कोई प्यार माँग रहा है,
कोई साधन माँग रहा है,
कोई सम्मान माँग रहा है।
कोई धंधा माँग रहा है,
कोई संतान माँग रहा है।
कोई भगवान से चाह रहा है,
सुबह-शाम अर्ज़ी लगा रहा है।

कोई पा जाता है।
कोई निराश हो जाता है।
कोई संतोष कर लेता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक: 19 जुलाई 2025 ©
रेटिंग 9.8/10

Saturday, July 19, 2025

#H471 सेहत सर्वप्रथम (Health First)

#H471
सेहत सर्वप्रथम (Health First)

सेहत सर्वप्रथम थी,
सेहत सर्वप्रथम है,
सेहत सर्वप्रथम रहेगी।
सेहत को सर्वप्रथम रखना होगा,
वरना जीवन का मजा
अधूरा रह जाएगा।

दिमाग तुम्हें अलसाएगा,
सोचो, इसे कैसे धोखा दोगे?
वरना हर बार
यह तुम्हें भटकाएगा।

चटपटा, फास्ट फूड खिलाएगा,
कोल्ड ड्रिंक, मदिरा पिलाएगा।
सैर, कसरत और योग से
दूर हटाएगा।
रातों में जगाएगा,
रीलें दिखाएगा,
सुबह न उठने के बहाने बनाएगा।
जो योजना बनाई थी,
वह चौपट हो जाएगी।

"सेहत सर्वप्रथम"
एक नारा बनकर रह जाएगा।

बार-बार अफसोस करवाएगा,
स्वस्थ रहने का मकसद
अधूरा रह जाएगा।

दिमाग को भटकाओ,
आगे क्या करना है —
यह न बताओ।
लोगों में उठो-बैठो,
अपना जनसंपर्क बढ़ाओ।
"सेहत सर्वप्रथम" अपनाओ,
दुनिया के मजे लेते जाओ।

सेहत से सफलता मिलती है,
हर मंज़िल आसान लगती है।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 8 जून 2025,©
रेटिंग 9.5/10

Thursday, July 17, 2025

#H470 हर सीन में संसार ( Every Scene having Life)

#H470
हर सीन में संसार  ( Every Scene having Life)

गीत है, संगीत है।
एक मीत है।
एक मन मीत है।
और एक मीत है।
इसको भी आस है।
प्यार है, वियोग है।
बहुत बड़ा संयोग है।
शादी एक प्रयोग है।

भाई है, बहन है।
यार है, यारों का यार है।
सहेली है, जाती अकेली है।
उसकी भी सहेली है।
मिलती वो अकेली है।
हमजोली है, मुंहबोली है।
नजरें बड़ी कटारी हैं।
मन में लड़ने की तैयारी है।

मां है, पिता है, पुत्र है।
पिता की फटकार है।
मां का प्यार है।
प्यार अपरंपार है।

हंसी है, आंसू हैं।
जन्म है, मृत्यु है।
सुख है, दुख है।
नरक है, स्वर्ग लोक है।
भगवान है। मोक्ष है
यहां तो भूलोक है।

भूख है, प्यास है।
सपने हैं, उम्मीद है।
झूठ है, सच्चाई है।
दुश्मन है, मुखिया है।
साहूकार है, व्यापार है।
और अवैध व्यापार है।
यही तो संसार है।
रुपयों की दरकार है।

मान है, सम्मान है।
अपमान है, तिरस्कार है।
कद्रदान है, मेहमान है।
भूत है, प्रेत है, शैतान है।
अनचाहा मेहमान है।
पैसे का अभिमान है।

धोखा है। मिलन है।
और जुदाई  है।
हादसा है। कत्ल है।
चोरी है। षड्यंत्र है
डाका है। धमकी है।

नेता है, चुनाव है।
भ्रष्टाचार है।
देश है । दुश्मन देश है।
सीमा पर ललकार है।

स्वदेश है, परदेस है।
परदेस में भी देश है।
बंदूक है, गोली है,
बरछी और कटारी है।
बम गोले से यारी है।
भोली जनता हमारी है।

सृजन है । विनाश है।
आश्चर्य है। अनोखा है।
कल्पना है। अकल्पनीय है।
फेंटेसी है। हकीकत है।

राजा है। रंक है।
प्रजा है। प्रतिज्ञा है।
प्रतिशोध है। बलिदान है।
अभिमान है। अज्ञान है।

कमजोर है। ताकतवर है।
कामचोर है। कर्मठ है।
वफादार है, गद्दार है।

शुक्रवार का रहता इंतजार है।
ऐसा ही संसार है।
यही तो फिल्मों का संसार है।
जीवन हर सीन में साकार है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 10 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.3/10

Tuesday, July 15, 2025

#H469 टक्कर न हो जाए। (Let There Be No Collision)

#H469
टक्कर न हो जाए। (Let There Be No Collision)

अगली गाड़ी से तुम
सुरक्षित दूरी बनाकर रखो।
पता नहीं कब,
अगला ब्रेक लगा ले।
या उसको ब्रेक
लगाना पड़ जाए।
फिर गाड़ी की
टक्कर हो जाए।
जान माल का
नुक़सान हो जाए।
जान की कभी
भरपाई न हो पाए।

अपनी गाड़ी की गति को
गति सीमा में रखा करो।
पता नहीं कब कोई
पशु, इंसान
सड़क पर आ जाए।
तुमसे ब्रेक ना लग पाए
फिर हादसा हो जाए।

जल्दबाजी में
कट कभी ना मारो।
पता नहीं कब
कौन सामने आ जाए।
पैदल, मोटरसाइकिल,
कार, ट्रक भी आ जाए।
फिर भयंकर टक्कर हो जाए।

लाइन बदलने से पहले
साइड इंडिकेटर दिया करो।
फिर थोड़ा इंतजार किया करो।
फिर ही लाइन बदलो ।
ताकि दुर्घटना न हो पाए।

जब भी मोड़ पर मोड़ो।
गति को थोड़ा धीमा किया करो।
ताकि गाड़ी पलट न जाए ।
और टक्कर ना हो पाए।

जब सर्विस लाइन में जाओ।
थोड़ा अधिक सतर्क हो जाओ।
गति को थोड़ा सीमित किया करो।
ताकि अगली गाड़ी से न भिड़ जाओ।

ड्राइविंग में सदा सीट बेल्ट पहनो।
खुद को सुरक्षित करो।
और ध्यान रहे
सभी सवारियों की जान की सुरक्षा
बस तेरे ही हाथों में रह जाए।
मेरी नजरों में चालक
देश का आंतरिक प्रहरी कहलाए।

लापरवाही से चलने पर
भगवन भी साथ न निभाए।
जीवन सबका बहुमूल्य है।
इसको सुरक्षित रखा जाए।

सिग्नल कभी न तोड़ा करो।
विपरीत लाइन में न चला करो।
ट्रैफिक नियम को पालनकर
संयम  से गाड़ी चलाई जाए।
खुशियों में जिया करो।
ताकि परिवार न पछताए।

आंखें सड़क पर, स्टेरिंग हाथों में
पैरों में ब्रेक, कंधे पर सीट बेल्ट ,
लेन ड्राइविंग, बदलने से पहले इंडीकेटर,
मोड़ पर धीमी गति, मिरर पर नजर,
सदा रखा करो, फिर टक्कर न हो पाए।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 7 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.9/10

Saturday, July 12, 2025

#H468 कार्बाइड (Carbide)

#H468
कार्बाइड (Carbide)

केला सब मन से खाते।
रसीले आम सभी को भाते ।
पपीता घर हम भी लाते।
डॉक्टर खाने में फल सुझाते।

फल खाकर हम इतराते।
स्वास्थ्य लाभ मिलने की
गलतफहमी पालते जाते।
और फल खाते जाते।

सेब, लीची, आंड़ू, नाशपाती,
बहुत चमकते हैं सब साथी।
चमक नहीं,यह कैमिकल्स हैं।
होते सेहत के विश्वासघाती।

खाने पर सिरदर्द, पेट दर्द,
उल्टी दस्त  कर सकते हैं।
गले और फेफड़ों में
जलन बढ़ा सकते हैं।
अस्पताल दिखा सकते हैं।
जब हम ऐसे फल खाते हैं।
लंबे समय तक सेवन से
कैंसर के लपेटे में आ सकते हैं।

फलों में कार्बाइड लगायी जाती है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
ताज़ा फल अब कहां हैं मिलते?
बस कार्बाइड लगे ही फल पाते।

मुनाफाखोर, जनता के घर में
सरेआम जहर पहुंचाते।
सरकार को मूकदर्शक ही पाते।
लोग जहरीले फल खाते जाते।

चाहे हो तौरई, बैंगन, लौकी...
सब में पेस्टीसाइड लगते।
ऐसे फल और सब्जी खाते।
जो ज्यादा गहरे रंग में होते।
उसमें ज्यादा कैमिकल लगते।

चमकीले फल न लेना।
एक रंग के फल न लेना।
मिले जुले रंग वाले ही लेना।
ज्यादा ठोस और मुलायम न लेना।
खुद की सेहत बचा लेना।
जब फल सब्जी ऐसे लेना।

अब हम सबको जागना होगा।
सरकार को नींद से जगाना होगा।
जहर से फलों को बचाना होगा।
बच्चों का भविष्य  बचाना होगा।
छत पर सब्जियां उगाना होगा।
किचन गार्डन बनाना होगा।
ऑर्गेनिक की तरफ जाना होगा।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 6 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.9/10

Thursday, July 10, 2025

#H467 आचरण के बाद शब्द आते हैं (Conduct before words)

#H467
आचरण के बाद शब्द आते हैं (Conduct before words)

धर्म ओढ़ कर आते हैं।
अपना हित साधते हैं।
ज्ञान ज्ञान चिल्लाते हैं।
विद्वत्ता  फरमाते हैं।
ज्ञान से दूर हैं ये लोग।
जाति का जहर फैलाते हैं।

गला फाड़कर कहते हैं
सभी समान हैं धर्म में
फिर जाति के नाम पर
क्यों आगे आ आते हैं।
सच पूछो तो
धर्म का सबसे ज्यादा
नुकसान यही लोग कराते हैं।

सभी धर्म श्रेष्ठ हैं।
धर्म से कोई बड़ा नहीं होता।
जाति से कोई श्रेष्ठ नहीं होता।
धर्म पालन करने से ही
कोई ऋषि बन जाता है।
कोई राक्षस हो जाता है।
राम और रावण याद आते हैं।

प्रवचनों में आदर्श दिखाते हैं।
खुद उससे मुंह मोड़ जाते हैं।
अच्छी - अच्छी बातें बतलाते हैं।
शब्दों के  जाल में फंसाते हैं।
असल आचरण में पीछे रह जाते हैं।

हम तो बस यही समझते हैं।
आचरण को सबसे ऊपर मानते हैं।
कर्म से ही इंसान श्रेष्ठ बनते हैं।
आचरण के बाद ही
शब्द अपना मूल्य बताते हैं।
सरदार पूर्ण सिंह की रचना
"आचरण की सभ्यता"
को बार बार याद करते हैं।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10

प्रेरणा स्रोत: मुकुट मणि यादव, एक कथावाचक के साथ हुई 21-22 जून 2025 को घटित घटना और राम-रहीम, आशारामजी की अपराधिक घटनाओं से प्रेरित है।

Monday, July 7, 2025

#H466 तरकश (Quiver)

#H466
तरकश (Quiver)

कुछ तीर बचे हैं अभी।
उम्मीद बची है अभी।
ताकत बची है अभी।
जीत के कुछ दांव बचे हैं अभी।
तरकश कंधे पर टंगी है अभी।

मनोबल बचा है अभी।
जज्बा बचा है अभी।
चुनौतियां खड़ी हैं अभी।
वीरता से लड़ा हूं अभी।
वीरगति बची है अभी।

जिंदगी के थपेड़ों से
लड़ना बचा है अभी।
लालच और मोह का जाल
मेरे भीतर बचा है अभी।
जीवन से मन कहां भरा है अभी।

तीरों से दुश्मन कहां विंधा है अभी।
रक्त शरीर में मेरे बचा है अभी।
मेरा शरीर मर भी जाएगा।
आत्मा को कोई भेद पाया है कभी?
तरकश में तीर बचे हैं अभी।

अनुभव लगाना बचा है अभी।
युवाओं से कंधे से कंधा मिलाकर
चलना बचा है अभी।
नया सीखना बचा है अभी।
जज्बा दिखाना बचा है अभी।
भीड़ से अलग चलना बचा है अभी।
लक्ष्य अब दूर नहीं —
कुछ तीर बचे हैं अभी।
जिंदगी की कहानी अधूरी नहीं है।
कहने सुनने को
बहुत कुछ बचा है अभी।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Saturday, July 5, 2025

#H465 युद्ध और प्रदूषण (War and Pollution)

#H465
युद्ध और प्रदूषण (War and Pollution)

दुनिया ने इराक युद्ध को झेला है,
धुएं के गुबार को सबने देखा है।
कारगिल युद्ध को भारत ने सहा है,
अफगानिस्तान को भी
बार-बार रौंदा गया है।
सालों-साल बारूद और गोला
वहाँ जमकर चलाया गया है।

यूक्रेन और रूस के बीच
बरसों से युद्ध जारी है,
आज भी वहाँ रोज़ गोले दागे जाते हैं।
आसमान में अंधकार ले आते हैं।

इज़राइल–फिलिस्तीन की
जंग मासूमों ने झेली है।
अब इज़राइल–ईरान का युद्ध देखा है,
एयर स्ट्राइक और मिसाइलों को
ज़मीन और आकाश में फटते देखा है।

उत्तर दक्षिण कोरिया संघर्ष को
दशकों से झेला है,
आर्मेनिया और अज़रबैजान को
दुनिया ने लड़ते देखा है।

ये युद्ध धुआँ बहुत उड़ाते हैं,
प्रदूषण अत्यधिक फैलाते हैं।
हवा में ज़हर घोलते जाते हैं,
मानव की साँसों को
धीरे-धीरे सीमित कर जाते हैं।

हम क्योटो प्रोटोकॉल,
कोपेनहेगन डायलॉग, सीओपी-17,
और पेरिस समझौते में
प्रदूषण घटाने की बातें करते हैं।
तो फिर जलवायु सम्मेलनों में
युद्धों से होने वाले प्रदूषण पर
पाबंदी क्यों नहीं लगाते हैं?

मुझे तो ऐसा लगता है,
हम केवल प्रदूषण कम करने की
वकालत भर करते हैं।
असल में, हथियार बेचकर
युद्धों से दुनिया का विनाश चाहते हैं।
सभी देशों के वादे
खोखले ही नज़र आते हैं।
लक्ष्य हर साल हासिल करते जाते हैं।
पर प्रदूषण भी बढ़ता ही पाते हैं।

कब हम इन युद्धों  को रोककर
प्रदूषण से मिलकर युद्ध करेंगे।
मानव की सांसें और मजबूत करेंगे।
पृथ्वी के जीवन को बड़ा करेंगे।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 03 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9/10

Thursday, July 3, 2025

#H464 बधाई देने आएंगे (Will come to give their blessings)

#H464
बधाई देने आएंगे (Will come to give their blessings)

बधाई देने आएंगे।
घर में बच्चा जन्मा हो,
या घर में शादी हो।
या गृहप्रवेश किया हो
बधाई देने आएंगे।

जनसंपर्क मजबूत रखते हैं।
हर हाल में आएंगे।
कभी अकेले नहीं आएंगे।
चार-पांच के समूह में आएंगे।
साथ में ढोलक वाला लायेंगे।
नेग के लिए बुलाएंगे।
11, 21, 31,51... हजार
देने की बात दोहराएंगे।
बधाई देने आएंगे।

मना करने पर शोर बचाएंगे।
काम सारे रुक जाएंगे।
कोई तीसरा मोलभाव कराएगा।
सही जंचा तो मान जाएंगे।
नाचेंगे, गाएंगे, दुआएं देंगे।
तुमको भी साथ में नचाएंगे।
भावुक तुम्हें कर जाएंगे।
पर नेग लेकर जाएंगे।
बधाई देने आएंगे।

कभी-कभी गर्मी में ताव खा जाएंगे।
तुमको गुस्सा भी दिलाएंगे।
झगड़े जैसा माहौल बनाएंगे।
कभी-कभी खाली हाथ भी जाएंगे।
बधाई देने आएंगे।

इतिहास में शिखंडी हम पाते हैं।
अर्धनारीश्वर भी शिव का रुप हैं।
इनकी दुआएं शुभ मानी जाती हैं।
सबको भावुक मनाती हैं।
बधाई देने वालों को
खाली हाथ नहीं लौटाती हैं।
जबतक रकम क्षमता में आती है।

महिला या पुरुष न होने पर
समाज में उचित मान नहीं पाते हैं।
घर से निष्कासित हो जाते हैं।
अपनों से बिछड़ जाते हैं।
शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
नौकरी और व्यवसाय के
अवसर हासिल नहीं कर पाते हैं।
तृष्कृत जीवन जीते हैं।
यों ही बधाई देने आते हैं।
नेग से जीवन यापन करते हैं।
भिक्षा से भी पेट भरते हैं।
कभी-कभी यौन वृत्ति में
शामिल हो जाते हैं।
अपने तृष्कार को भूल
बधाई देने आते हैं।

डाक्टर ऐश्वर्या पहली एमबीबीएस,
डाक्टर मनबी पहली प्रिंसिपल,
डाक्टर मंडल पहली जज,
के प्रयासों को हम सम्मान देते हैं।
यह पहली किन्नर
होने का गौरव पाते हैं।
औरों को रास्ता दिखाते हैं।

सबको शिक्षा, सम्मान मिले।
महिला पुरुष की तरह
समाज में अपना मान मिले।
सरकार से इनको सहयोग मिले।
तो बधाई देने नहीं आएंगे।
अपनी पहचान बनाएंगे।
देश की प्रतिष्ठा बढ़ाएंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 6 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10







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