#H473
चलो एक बाजी हो जाए (Let's play a game of chess)
खेल का सामान सस्ता होता।
आसानी से हर जगह पर मिलता।
हर घर में एक बार जरुर आता।
समय बिताने के लिए अच्छा होता।
यह खेल स्कूल, कालेज, राज्य,
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
हर स्तर पर भी होता।
मैं सफेद लूंगा।
तुम काले संभालो।
64 खाने होते,
32 सफेद और 32 काले ।
और दो खिलाड़ी होते।
यह खेल ऐसा होता।
प्यादा सीधा चलता ।
पहले दो कदम,
फिर एक एक चलता।
पर पीछे न हटता।
न तिरछा, न दाएं बाएं चलता।
ऊंट केवल तिरछा चलता।
पर दोनों ओर तिरछा चलता।
आगे पीछे भी तिरछा चलता।
हाथी सीधा चलता,
दाएं और बाएं भी चलता।
आगे पीछे भी चलता।
घोड़ा कुछ अलग ही चलता।
चारों ओर, दो कदम सीधा,
फिर एक कदम दांए या बाएं चलता।
कहने को ढाई कदम चलता।
रानी भी होती।
जो राजा से तेज होती।
चलने पर कोई सीमा न होती।
आखिर में राजा होता।
चारों ओर एक कदम चलता।
चैक दिए बिना न मारा जाता।
चैक मेट हो जाता।
तब खेल खत्म हो जाता।
बराबरी पर भी खेल रुक जाता।
खेल में कुछ खास भी होता।
राजा और हाथी से कैसिलिंग होती।
जब इनकी अदला-बदली होती।
नये मोहरे का पुनर्जन्म भी होता।
जब प्यादा आख़िरी पंक्ति छूता,
तो मन चाहा मोहरा बन जाता।
खेल में नयी जान फूंकता।
जो आगे की चाल सोचकर चलता
सदा खेल में जीत पाता।
केवल खेल नहीं है, रणनीति है।
जीवन जीने की कला सिखाता।
भारत में जन्मा, दुनिया में फैला।
शतरंज का खेल ऐसा होता।
महाभारत की चौपड़ भी
कुछ ऐसी ही होती।
जो सोच-समझकर खेला जाता।
"विश्व शतरंज महासंघ" को
इस खेल का आयोजन कराना होता।
आजकल ऑनलाइन भी होता।
पहले भारतीय ग्रैंड मास्टर
विश्वनाथन आनंद हुए हैं।
फिर सिलसिला न रुका।
खिलाड़ी डटे हुए हैं।
शतरंज में नाम किए हुए हैं।
तिरंगे की शान बने हुए हैं।
नासमझ
दिनांक 20 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9.8/10
विश्व शतरंज दिवस (20 जुलाई ) पर प्रस्तुत की है।
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