युद्ध और प्रदूषण (War and Pollution)
दुनिया ने इराक युद्ध को झेला है,
धुएं के गुबार को सबने देखा है।
कारगिल युद्ध को भारत ने सहा है,
अफगानिस्तान को भी
बार-बार रौंदा गया है।
सालों-साल बारूद और गोला
वहाँ जमकर चलाया गया है।
यूक्रेन और रूस के बीच
बरसों से युद्ध जारी है,
आज भी वहाँ रोज़ गोले दागे जाते हैं।
आसमान में अंधकार ले आते हैं।
इज़राइल–फिलिस्तीन की
जंग मासूमों ने झेली है।
अब इज़राइल–ईरान का युद्ध देखा है,
एयर स्ट्राइक और मिसाइलों को
ज़मीन और आकाश में फटते देखा है।
उत्तर दक्षिण कोरिया संघर्ष को
दशकों से झेला है,
आर्मेनिया और अज़रबैजान को
दुनिया ने लड़ते देखा है।
ये युद्ध धुआँ बहुत उड़ाते हैं,
प्रदूषण अत्यधिक फैलाते हैं।
हवा में ज़हर घोलते जाते हैं,
मानव की साँसों को
धीरे-धीरे सीमित कर जाते हैं।
हम क्योटो प्रोटोकॉल,
कोपेनहेगन डायलॉग, सीओपी-17,
और पेरिस समझौते में
प्रदूषण घटाने की बातें करते हैं।
तो फिर जलवायु सम्मेलनों में
युद्धों से होने वाले प्रदूषण पर
पाबंदी क्यों नहीं लगाते हैं?
मुझे तो ऐसा लगता है,
हम केवल प्रदूषण कम करने की
वकालत भर करते हैं।
असल में, हथियार बेचकर
युद्धों से दुनिया का विनाश चाहते हैं।
सभी देशों के वादे
खोखले ही नज़र आते हैं।
लक्ष्य हर साल हासिल करते जाते हैं।
पर प्रदूषण भी बढ़ता ही पाते हैं।
कब हम इन युद्धों को रोककर
प्रदूषण से मिलकर युद्ध करेंगे।
कब हम इन युद्धों को रोककर
प्रदूषण से मिलकर युद्ध करेंगे।
मानव की सांसें और मजबूत करेंगे।
पृथ्वी के जीवन को बड़ा करेंगे।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 03 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9/10
पृथ्वी के जीवन को बड़ा करेंगे।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 03 जुलाई 2025,©
रेटिंग 9/10