#H467
आचरण के बाद शब्द आते हैं (Conduct before words)
धर्म ओढ़ कर आते हैं।
अपना हित साधते हैं।
ज्ञान ज्ञान चिल्लाते हैं।
विद्वत्ता फरमाते हैं।
ज्ञान से दूर हैं ये लोग।
जाति का जहर फैलाते हैं।
गला फाड़कर कहते हैं
सभी समान हैं धर्म में
फिर जाति के नाम पर
क्यों आगे आ आते हैं।
सच पूछो तो
धर्म का सबसे ज्यादा
नुकसान यही लोग कराते हैं।
सभी धर्म श्रेष्ठ हैं।
धर्म से कोई बड़ा नहीं होता।
जाति से कोई श्रेष्ठ नहीं होता।
धर्म पालन करने से ही
कोई ऋषि बन जाता है।
कोई राक्षस हो जाता है।
राम और रावण याद आते हैं।
प्रवचनों में आदर्श दिखाते हैं।
खुद उससे मुंह मोड़ जाते हैं।
अच्छी - अच्छी बातें बतलाते हैं।
शब्दों के जाल में फंसाते हैं।
असल आचरण में पीछे रह जाते हैं।
हम तो बस यही समझते हैं।
आचरण को सबसे ऊपर मानते हैं।
कर्म से ही इंसान श्रेष्ठ बनते हैं।
आचरण के बाद ही
शब्द अपना मूल्य बताते हैं।
सरदार पूर्ण सिंह की रचना
"आचरण की सभ्यता"
को बार बार याद करते हैं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10
प्रेरणा स्रोत: मुकुट मणि यादव, एक कथावाचक के साथ हुई 21-22 जून 2025 को घटित घटना और राम-रहीम, आशारामजी की अपराधिक घटनाओं से प्रेरित है।
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