Saturday, May 31, 2025

#H450 बारिश की शाम, फिर से जाम (Rainy evening, jam again)

#H450
बारिश की शाम, फिर से जाम (Rainy evening, jam again)

जगह -जगह जल भराव है,
सड़क पर बहुत जाम है।
कंपनी में रोज काम है,
बस में बैठकर आराम है।
जाम में ज़िंदगी हराम है।

जल भराव में
बस भी हो जाती है ख़राब।
बारिश में कहाँ आराम है।
रूट बदलते और देरी से पहुंचते
जल भराव का परिणाम है।

कोई साथी स्टैंड बदलता है,
जल भराव का अंजाम है।
सड़कें पानी में डूब जाती हैं।
बारिश का कहाँ ख्याल है।

सड़कों में गढ्ढे पड़ जाते हैं।
दुर्घटना का कारण बन जाते हैं।
प्रशासन की तैयारी दिखाते हैं।
उफनते सीवर
सब पोल खोल जाते हैं।

यहाँ हर कोई जल्दबाज़ है।
फ्लाइओवर के नीचे
अक्सर जाम में ही शाम है।
दोनों दिशाओं से आता ट्रैफ़िक,
करता, जाम का इंतज़ाम है।
इसलिए जाम ही जाम है,
आदमी परेशान हर शाम है।

जल्दी हल होता नजर नहीं आता है।
हर कोई इस समस्या से परेशान है।
कब होगी सुबह इस समस्या की।
अभी तो हर तरफ शाम ही शाम है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 31 मई 2025,©
रेटिंग 9.4/10

Thursday, May 29, 2025

#H449 मुसलमान की पहचान (Identity of a Muslim)

#H449
मुसलमान की पहचान (Identity of a Muslim)

शहादा कर
अल्लाह को स्वीकार कर,
आस्था को प्रदान कर।
मन से प्रथम शर्त को स्वीकार कर।

सलात कर
पांच वक्त की नमाज कर —
फज्र, जुहर, असर, मगरिब और ईशा।
द्वितीय शर्त को स्वीकार कर।

जकात कर
आय का 2.5% हर साल दान कर,
बराबरी और करुणा की भावना भर।
तृतीय शर्त को स्वीकार कर।

सौम रख
रमज़ान के महीने में रोजे रख।
सूरज निकलने से पहले,
सूर्यास्त के बाद
खान-पान कर।
आत्मसंयम और आध्यात्मिक शुद्धि कर,
खुद को मोह-माया से दूर कर।
चतुर्थ शर्त को स्वीकार कर।

हज जा
अगर धन और तन से सक्षम हो,
एक बार जीवन में हज कर।
पंचम शर्त पर नज़र रख,
हज के लिए संकल्प कर,
साधन जुटाने का प्रयास कर।

एक अच्छा मुसलमान बन कर,
ईमान को अडिग रख।
इंसान बनकर इंसान से प्यार कर,
कौम का संसार में नाम कर।
दूसरे धर्मों का भी सम्मान कर।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Wednesday, May 28, 2025

#H448 सावधान! ठग कहीं भी हो सकता है। (Be careful! Scammers can be anywhere)


#H448
सावधान! ठग कहीं भी हो सकता है। (Be careful! Scammers can be anywhere)

तुमसे कोई पैसे ले सकता है।
वादा करके मुकर सकता है।
पैसे लेकर भाग सकता है।
ज्यादा का वायदा करके
तुमको कम दे सकता है।

तुमको कोई ठग सकता है।
अच्छे-अच्छे सपने दिखाकर
तुमको कोई धोखा दे सकता है।
असली की जगह नकली
सामान बेच सकता है।

प्यार का वादा करके
कोई बेवफा हो सकता है।
तुम्हारी जिंदगी नर्क बना सकता है।
अपना बनकर
तुमको कोई धोखा दे सकता है।

डर दिखा कर भी
कोई तुमको ठग सकता है।
तुम्हारी भावनाओं का कोई
गलत फायदा उठा सकता है।
लालच तुमको मरवा सकता है।
नुकसान बहुत करवा सकता है।

फोन से तुझे फंसा सकता है ।
वीडियो बनाकर तुझे
कोई गुमराह कर सकता है
तेरी जानकारी चुरा सकता है
खाते से पैसे उड़ा सकता है।
तेरा मजबूत पासवर्ड और
तेरा ओटीपी तुझे बचा सकता है।

तेरा ज्ञान, धैर्य, संतोष ही
तुझे ठगी से बचा सकता है।
धन और आत्मसम्मान की
रक्षा कर सकता है।
सरकार की चेतावनियों से
तेरा कुछ बुरा होने से बच सकता है।
सावधान! ठग कहीं भी हो सकता है।

ठगी का शिकार कोई भी हो सकता है।
बस ठगी होने पर , तुरन्त सूचना देने पर,
आरबीआई तुझे हक दिला सकता है।
कंज्यूमर कोर्ट मुआवजा दिला सकता है।
पुलिस शोषण से बचा सकता है।
जागरुक बन तू खुद को बचा सकता है।
औरों को जगा सकता है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 28 मई 2025,©
रेटिंग 9.2/10











Tuesday, May 27, 2025

#H447 गंगा, बाबा, टुक-टुक और बनारस (Ganga, Baba, Tuk-Tuk and Banaras)

#H447
गंगा, बाबा, टुक-टुक और बनारस (Ganga, Baba, Tuk-Tuk and Banaras)

यात्रा - वृत्तांत दिखाया है।
अपना दृष्टिकोण समझाया है।

यह नगरी
कई नामों से जानी जाती है।
काशी, बनारस, वाराणसी,
"शिव की नगरी" भी कहलाती है।

भिवाड़ी से टैक्सी से बारिश में
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा।

"शिव गंगा" ट्रेन से
सुबह सुबह बनारस पहुंचा।
ट्रेन को बहुत अच्छा पाया।
स्टेशन पर रुककर इंतजार किया।
सुविधाओं को अच्छा नहीं पाया।
रखरखाव को घटिया पाया
टायलेट जेट और नलकों, साॅकेट को
चालू अवस्था में नहीं पाया।

टुक-टुक बुक करके,
बीएचयू हॉस्टल पहुंचा।
बीएचयू को अतिविस्तृत
और हरा-भरा पाया।
पैदल हैदराबाद गेट पहुंचकर
होटल में विश्राम करने गया।

शाम को शेयरिंग ऑटो से
लंका चौराहा पहुंचा।
आगे सामने घाट पर पहुंचा।
ज़्यादा सीढ़ियाँ देख,
डर से वापस आ गया।
फिर शेयरिंग टुक-टुक लेकर
बीएचयू के अंदरूनी मार्ग से लौटा।

गद्दे और तकियों को खरीदा।
हॉस्टल पहुंचाकर लौटा।
डिनर कर, होटल पहुंचा।

दूसरे दिन,
हैदराबाद गेट से लंका पहुंचा।
लंका से कैंट ऑटो स्टैंड पहुंचा।
आगे टुक-टुक से आशापुर पहुंचा।
आशापुर से सारनाथ पहुंचा।

यहाँ पहले श्रीलंका मंदिर देखा।
स्वर्ण आभा में भगवान बुद्ध को पाया।
महाबोधि वृक्ष भी देखा।

सारनाथ चिड़ियाघर देखा।
टिकट यहाँ पर लिया।
हिरण, नीलगाय,
विभिन्न पक्षियों को पाया।

सारनाथ म्यूज़ियम पहुंचा।
टिकट यहाँ पर भी खरीदा।
धमेख स्तूप और
अशोक की लाट देखा।
अन्य बहुत सी कलाकृतियाँ भी पाया।

टुक-टुक से सारंगनाथ मंदिर पहुंचा।
ढलान से ऊपर गया।
सीढ़ियों से नीचे उतरा।
पानी से भरा कुंड पास में पाया।

चौखंडी स्तूप पहुंचा।
यहाँ पर भी टिकट जरूरी था।
काउंटर या ऑनलाइन से लिया।
यहाँ पर एक बड़ा पार्क भी पाया।
जोड़ों को यहां पर बैठा देखा।

यहाँ पर दोपहर खाना खाया।
सारनाथ से आशापुर,
आशापुर से कैंट स्टैंड,
टुक-टुक से पहुंचा।
कैंट स्टैंड से टुक-टुक और रिक्शा लेकर
बाबा विश्वनाथ क्षेत्र पहुंचा।

सड़क पर ही
एक दुकानदार मिला।
नियमों को समझाया।
मोबाइल, बैग को नहीं
ले जा सकते हो।
पूजन सामग्री खरीदी।
मोबाइल और बैग
यहीं पर लॉकर में रखा।
गलियों को अति संकरा पाया।

मंदिर में दर्शन कराया।
समय बहुत बचाया।
लाइन में आगे लगने से
मन में अफसोस भी आया।

पहले विनायक दर्शन किए।
काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचा।
बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए।
स्वर्ण जड़ित आभा पाया।
दर्शन कर लौटा, फिर
मां अन्नपूर्णा के दर्शन किए।
गलियों से घाट मार्ग तक पहुंचाया।
मैंने उसका आभार जताया।

पैदल प्रयाग घाट पहुंचा।
दशाश्वमेध घाट पर
नाव वाले से मोल-तोल किया।
गंगा आरती का नाव में बैठकर,
गंगा पूजन का अवलोकन किया।
इस दृश्य को विहंगम पाया।

सात पुजारी दीप-ज्योति से
आरती करते हैं।
ज्योति बार-बार बदली जाती है।
भजन-संगीत समां बाँधता है।
शिव तांडव की ध्वनि स्वतः
तुम्हारे हाथों से करतल कराती है।
मैंने‌ खुद को मंत्र-मुग्ध पाया।

बड़ी स्क्रीन पर भी दिखता पाया।
नाव से दशाश्वमेध घाट से हरिश्चंद्र घाट तक,
हरिश्चंद्र से मणिकर्णिका घाट तक।
फिर दशाश्वमेध घाट पहुंचा।
हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका पर
चिताओं को जलते पाया।
नौका यात्रा का अंधेरे में लुत्फ़ उठाया।
मन को बहुत प्रसन्न पाया।
अंधेरे में रोशनी से मुग्ध हो गया।

पैदल चलकर और सीढ़ियाँ चढ़कर
विश्वनाथ कॉरिडोर का भ्रमण किया।
दुर्लभ दर्शन केन्द्र पर
ऑडियो-विज़ुअल दिखाते हैं।
दीवार पर धार्मिक वीडियो दिखाते हैं।
कई रेस्टोरेंट और सुविधाएं पाया।
नया विशेष कुछ बनाया है।
यहाँ पर खुली जगह को पाया।

पैदल और रिक्शा से गोडोलिया पहुंचा।
गोडोलिया से टुक-टुक और रिक्शे से,
बनारस स्टेशन हम पहुंचा।

ट्रेन से वापस नई दिल्ली आया।
मेट्रो पकड़ कर धौला कुआं,
यहां से बस से भिवाड़ी पहुंचा।

कुछ जरूरी बातें बताता हूँ।
बैग में ताला लगता हो।
पास एक और ताला हो,
जो सीट के नीचे लगाना है।
नींद का फिर भरपूर मौका होगा।
साबुन भी लेकर आओ।
न मिले, तो अपने से काम चलाओ।
हैंड सैनिटाइज़र भी लेकर चलो।
खाने की वस्तु साफ हाथों से खाओ।
या सैनिटाइज़र लगाओ, फिर खाओ।
साथ में चश्मे का कवर और स्लीपर
यात्रा में जरूर लेकर चलो।
बाथरूम जाने से न हिचकिचाओ।

टुक-टुक, ऑटोरिक्शा, रिक्शा ही
बनारस की लाइफ लाइन है।
संकरी गलियों में सक्षम साधन बनता है।
यह रुक जाए, समझो
फिर शहर न चल पाएगा।

चालक पैसे ज्यादा मांगेगा।
कोई कम मांग कर भी,
खुले नहीं हैं, बोल ज्यादा ले लेगा।
हर कोई, हर चीज को बेच रहा है।
चाहे रिक्शा और
फूल-माला बेच रहा हो।
आखिर में भावनाओं से ले लेगा।
पैसे तय करके ही सुविधा लेना,
वरना तुम पछताओगे।

बुक करके ऑटो महँगा पड़ता है।
शेयरिंग में सारा शहर दौड़ता है।
हर रूट पर टुक-टुक चलता है।
चाहे हो बीएचयू, या हो सारनाथ,
हर जगह टुक-टुक खूब दौड़ता है।

चार स्टेशन हैं शहर में —
वाराणसी जंक्शन,
बनारस रेलवे स्टेशन,
काशी रेलवे स्टेशन,
बनारस सिटी।
प्लानिंग में ध्यान रखना,
वरना कहीं और पहुंच जाओगे,
और पछताओगे।
गलत वाहन पर बैठ गया।
गलती सुधार जल्दी उतरा।

जगह जगह पर
प्रसिद्ध जलेबी-कचौड़ी,
बनारसी चाट, को पाया।
बनारसी पान,
साड़ी को भी पाया।

मैंने तो डोसा, इडली, लस्सी,
चावल और मंचूरियन
और दाल-रोटी से काम चलाया।
खाने को सब मिल जाता है।

रेलगाड़ी में यह वृत्तांत
दिल से लिखा है।
क्या अच्छा और क्या भिन्न
बनारस में पाया‌ है।
सबके लिए बनाया है।

कोई ग़लती हो इसमें तो
मैं अग्रिम माफ़ी माँगता हूँ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 16 मई 2025,©
रेटिंग 9.7/10

Monday, May 26, 2025

#H446 प्रकृति का प्रहार (Nature's Fury)

#H446
प्रकृति का प्रहार (Nature's Fury)

रात अंधेरी थी।
हवा बहुत तेज थी।
धूल से भरी थी।
हवा के मन में
बात कुछ और थी।

साथ में बादल लाई थी।
बिजली की गड़गड़ाहट थी।
बारिश भी करने आयी थी।
पेड़ों शामत लाई थी।

रास्ते पानी से भर गए।
लोग पानी में फंस गए।
हम पानी में घुसने से डर गए।
फंसी गाड़ियां सड़क पर छोड़ गए।
कुछ पानी में उतर कर
धक्का लगवाने को मजबूर हो गए।

हवा कपड़ों को उड़ाकर ले गयी।
धूल हर जगह घुस गई।
कूड़ा करकट भी साथ में भर गई।
सफाई का काम बढ़ा गयी।

झावट की बारिश का पानी
मकानों में घुस गया।
दरवाजे उखड़ गए।
घरों के शीशे टूट गए।
लोग मायूस हो गए।

कई पेड़ यहां उखड़ गए
कई पेड़ वहां उखड़ गए।
जो न उखड़े
वो फिर डालियों से टूट गए।

कई गाड़ियां पेड़ों से दब गईं।
रास्ते बन्द हो गए।
सब खोलने में लग गए।
बिजली के तार टूट गए।
लोग सुधारने में लग गए।

लोग क्या कम थे विनाश को।
तूफान भी पेड़ों को उखाड़ गए।
हमको सीख दे गए।
पेड़ों के बढ़ने में वर्षों लग जाते हैं।
पल भर में उखड़ जाते हैं।
इंसान बस देखते रह गए।
पेड़, साइन बोर्ड उखड़ते गए।
हवाओं के झोंके
हमारी क्षमता बता गए।
रिश्ते बनाने में वर्षों लग जाते हैं।
पल भर में सब बिखर जाते हैं।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 25 मई 2025,©
रेटिंग 9.7/10

Friday, May 23, 2025

#H445 पायदान का संघर्ष (Struggle for a Position)

#H445
पायदान का संघर्ष (Struggle for a Position)

"प्रथम" को किसी की
परवाह नहीं होती।
चाह होती है कोई
उसके आस पास न आ पाए।
इसके लिए
साम, दाम, दण्ड, भेद
सभी साधन अपनाता है,
और अपनी मनबाकर ही मानता है।

"द्वितीय" को
"प्रथम" से ईर्ष्या होती है।
जल्दी नंबर एक बनना चाहता है।
दबे कुचलों को दबाता है।
पहले सब्जबाग दिखाता है।
फिर अपने जाल में फंसाता है।
खुद को आगे बढ़ाता जाता है।

"तृतीय" को
"प्रथम" और "द्वितीय" से,
और उनके साथियों से
सदा संघर्ष करना पड़ता है।
धोखों से दो - चार होना पड़ता है।
आदर्श बनकर चलता है।
अक्सर फंस जाल में जाता है।
फिर भी प्रयास करता जाता है।
"द्वितीय" के बाद सब "तृतीय" होते हैं।

किसी को भी प्रतिस्पर्धा में
मजबूत विरोधी नहीं चाहिए।
ताकि जीत सुनिश्चित हो।
बात सदा आदर्श की करते हैं।
काम सदा पाखंड के करते हैं।
व्यक्ति ही नहीं,
देशों का भी मसला है।

काम नहीं चलता है बिन हथियार।
भाड़ में जाए दुनिया
पैसों  के लिए ही होता है व्यापार।
पैसा ही सबसे ऊपर होता है, यार।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 23 मई 2025,©
रेटिंग 9/10

Monday, May 12, 2025

#H444 कोच बिना जीवन अधूरा (Life is incomplete without a coach)

#H444
कोच बिना जीवन अधूरा (Life is incomplete without a coach)

तुम कितने भी माहिर हो जाओ
कितने भी पढ़-लिख जाओ।
एक समय बाद, कोच बिना
फिर आगे न बढ़ पाओ।

खुद की गलती
तुम न पकड़ पाओगे।
बस खुद में उलझकर
रह जाओगे।
जीवन में खिन्नता
ले आओगे।

समय रहते
सही कोच को खोजो।
आगे बढ़ने का रास्ता पाओ।
फिर जीवन में ठहराव न लाओ।
बस आगे ही बढ़ते जाओ।

तुम्हारे काम में
क्या-क्या गलत है ?
क्या करना है?
क्या नहीं करना है?
क्या ज्यादा करना है?
कब रुकना है?
कब आगे जाना है?
सब कुछ अपने कोच से पाओ।

आलोचना से बिल्कुल न घबराओ।
कोच से कुछ भी न छिपाओ।
कोच को उसका मूल्य चुकाओ।

खेलों में कोच मिलते हैं।
यह सब लोग जानते हैं।
डाक्टर भी कोच रखते हैं।
ताकि कार्य में उन्नति पाएं।
हर पेशे में कोच को
आवश्यक पाएं।

कोच की सलाह मानकर
उसका पालन करते जाओ।
कोच का शुक्रिया अदा करो।
वरना कोच बिना
जीवन अधूरा पाओ।

कलयुग में
मूरत से एकलव्य न बन पाओ।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 12 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Saturday, May 10, 2025

#H443 दर्द का दस्तावेज़(The Testament of Pain)

#H443
दर्द का दस्तावेज़
(The Testament of Pain)

इंसान का दर्द से
बड़ा गहरा रिश्ता होता है।

दर्द दिल का हो
तो ज़ुबां बदल जाती है,
गुमसुम सी फितरत हो जाती है,
नफ़रत दिल से निकल जाती है—
या फिर नफ़रत ही रह जाती है।
माशूक की याद बन जाती है,
पाने के लिए जुनून बन जाती है,
दीवाना कहलाती है।

दर्द बदन का हो
तो मुंह से आह निकल जाती है,
जवानी में बुढ़ापा दिखाती है,
चाल बदल जाती है,
बेचैनी बढ़ जाती है।
दवा-दारू की महंगाई मार जाती है,
और अगर कुछ बचा हो
तो अपनों की बेवफाई मार जाती है।

पीर हमें ज़िंदगी सिखाती है,
अपनों की औक़ात बताती है।

कसरत न करने का परिणाम दिखाती है,
सही खानपान का महत्व समझाती है,
सेहत की अनदेखी का अंजाम बताती है—
पछताने का मौक़ा भी नहीं देती,
सीधा फ़ैसला सुनाती है।

पीड़ा हमें खुद से मिलवाती है,
हवा में उड़ती जवानी को
ज़मीन पर ले आती है।
पीर ऐसे सुर लगाती है...
जिंदगी हर हाल में बदल जाती है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 10 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Thursday, May 8, 2025

#H442 सिंदूर : नारी शक्ति की पहचान "Sindoor: The Identity of Womanhood and Strength"


#H442
सिंदूर  : नारी शक्ति की पहचान "Sindoor: The Identity of Womanhood and Strength"

महिलाओं की शान है।
महिलाओं का मान है।
सुहागन की पहचान है
महिलाओं का अभिमान है।

सिंदूर लाल रंग ही नहीं है।
सीमा रेखा की पहचान है।
खुशियों का अरमान है।
चहकने की तान है।

मिट जाए जिसका सिंदूर
जिंदगी जीते जीते शमशान है।
फिर होता रंग रूप का बलिदान है
सुहागन की पहचान है।

सजना का मान है।
सजने का अरमान है।
शादी में मांग सिंदूर भरने  से
मिलती महिला को पहचान है।
सुहागन की शान है।

मिटाया है जिन्होंने कईयों का सिंदूर
अब उनके लिए
मौत का फरमान है ।
आतंक को पहुंचाना शमशान है।
'आपरेशन सिंदूर" से ही
उनको पहुंचाया शमशान है।
सिंदूर सुहागन का मान है।
सेना ने दिलाया न्याय है।
नारी शक्ति की पहचान है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 08 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Wednesday, May 7, 2025

#H441 नाक की लड़ाई (The Battle of Ego)

#H441
नाक की लड़ाई (The Battle of Ego)

तुमने हमें पूरी बात न बताई,
लोगों से करवा दी हमारी लड़ाई।
आपस में गलतफहमी ऐसी फैलाई,
हर किसी ने अब यहाँ बनाई—
अपनी नाक की लड़ाई।

काम की समय-सीमा
हर किसी ने भुलाई,
ग्राहक की अपेक्षा जाती रही।
मुझसे बिना पूछे क्यों
काम कराया, भाई?
किसी ने किसी को न बताई,
पर सभी समझ गए—
यह तो बन गई है
नाक की लड़ाई।

राणा प्रताप ने
मानसिंह के साथ जताई
अपनी नाक की लड़ाई।
थाली मेहमान के संग न खाई,
बन गई वह भी
नाक की लड़ाई।
हल्दीघाटी युद्ध की याद आई।

साथ में बैठो,
गलतफहमियाँ दूर करो।
काम में अब देरी न करो।
ग्राहक की अपेक्षा पूरी करो,
संस्थान को बदनाम न करो।
भूल जाओ नाक की लड़ाई,
इसी में है हम सबकी भलाई।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 07 मई 2025,©
रेटिंग 9.5/10

Tuesday, May 6, 2025

#E012 Truth That Is Lie

#E012
Truth That Is Lie

Truth that is lie.
Collaborated by many agencies.
Truth created by evidences—
Is not truth; that is lie.
Everyone taking
their piece of the pie.

Moving ahead together,
Call it a win-win situation.
This is corruption
For the piece of pie.

Observe violations,
But do not report.
Hired to find violations,
Yet wish not to be reported.

Getting business,
Buying ignorance—
This is the win-win situation
For the piece of pie.

Report only limited items,
Justify the reports—
This is crafted truth.
The benefit of sampling.
This truth is lie,
Done for a piece of pie.

This demean "The Process"
No one cares for the piece of pie.
Customer and Regulations
Suffer due to this.
Corruption is kept over principles,
For the piece of pie.

Devendra Pratap "नासमझ"
Date 06 April 2025,©
Rating 9.2/10

Monday, May 5, 2025

#H440 अभी चाह बाकी है (The Desire Still Remains)

#H440
अभी चाह बाकी है (The Desire Still Remains)

एक चाहत सदा से रही,
कभी मुझे भी पुरस्कार मिले
और पापा को
स्टेज पर बुलाया  जाए ।
खुशी का पल साथ में बांटा जाए।

पर यह चाहत
अब तक पूरी ना हो सकी।
पर आस अभी तक बाकी है।
अब भी कई मंजिलें बाकी हैं।

क्या हमारे बच्चे
वो सपना पूरा कर पाएंगे ?
हमें स्टेज पर बुलाएंगे।
उनके जरिए हम भी
अपनी चाहत पूरी कर जाएंगे।

अभी चाह बाकी है,
अभी आस बाकी है।
अभी आंखों में खामोशी के आंसू हैं।
क्या खुशी के आंसू बन पाएंगे ?

एक दिन वो भी आएगा।
सपना हकीकत हो जाएगा।
स्टेज पर बुलाएंगे।
सम्मान की माला पहनाएंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 04 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Thursday, May 1, 2025

#H439 मजदूर न बन सके (Could not become a labourer)

#H439
मजदूर न बन सके (Could not become a labourer)

मजदूर आज
"श्रमिक दिवस" की छुट्टी पर रहे।
गुलाम ड्यूटी बजाते रहे।
हम सोचते रहे,
खुद को साहब।
गुलामी में जीते जा रहे।
सही से मजदूर भी न सके।
श्रमिक दिवस से दूर ही रहे।

श्रम कानूनों के लिए हुए
संघर्ष याद भी न रहे।
व्यस्त खुद में इतने हैं।
बस खुद की ही सोचते रहे।

अगर पहले लोगों ने
संघर्ष न किया होता।
आज बंधुआ ही होते
मजदूर न होकर
गुलाम ही होते।
खुली आंखों से सो रहे।
गुलाम बन जी रहे।
सच्चे मजदूर न सके।
बस गुलाम ही रहे।
संघर्षों को सम्मान न दे सके।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 1 मई 2025,©
रेटिंग 9.3/10





#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475 7 मासूम (7 Innocents) पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई, सात मासूमों की जान चली गई। स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई। घरों में घनघोर अंधेरा क...