#H447
गंगा, बाबा, टुक-टुक और बनारस (Ganga, Baba, Tuk-Tuk and Banaras)
यात्रा - वृत्तांत दिखाया है।
अपना दृष्टिकोण समझाया है।
यह नगरी
कई नामों से जानी जाती है।
काशी, बनारस, वाराणसी,
"शिव की नगरी" भी कहलाती है।
भिवाड़ी से टैक्सी से बारिश में
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा।
"शिव गंगा" ट्रेन से
सुबह सुबह बनारस पहुंचा।
ट्रेन को बहुत अच्छा पाया।
स्टेशन पर रुककर इंतजार किया।
सुविधाओं को अच्छा नहीं पाया।
रखरखाव को घटिया पाया
टायलेट जेट और नलकों, साॅकेट को
चालू अवस्था में नहीं पाया।
टुक-टुक बुक करके,
बीएचयू हॉस्टल पहुंचा।
बीएचयू को अतिविस्तृत
और हरा-भरा पाया।
पैदल हैदराबाद गेट पहुंचकर
होटल में विश्राम करने गया।
शाम को शेयरिंग ऑटो से
लंका चौराहा पहुंचा।
आगे सामने घाट पर पहुंचा।
ज़्यादा सीढ़ियाँ देख,
डर से वापस आ गया।
फिर शेयरिंग टुक-टुक लेकर
बीएचयू के अंदरूनी मार्ग से लौटा।
गद्दे और तकियों को खरीदा।
हॉस्टल पहुंचाकर लौटा।
डिनर कर, होटल पहुंचा।
दूसरे दिन,
हैदराबाद गेट से लंका पहुंचा।
लंका से कैंट ऑटो स्टैंड पहुंचा।
आगे टुक-टुक से आशापुर पहुंचा।
आशापुर से सारनाथ पहुंचा।
यहाँ पहले श्रीलंका मंदिर देखा।
स्वर्ण आभा में भगवान बुद्ध को पाया।
महाबोधि वृक्ष भी देखा।
सारनाथ चिड़ियाघर देखा।
टिकट यहाँ पर लिया।
हिरण, नीलगाय,
विभिन्न पक्षियों को पाया।
सारनाथ म्यूज़ियम पहुंचा।
टिकट यहाँ पर भी खरीदा।
धमेख स्तूप और
अशोक की लाट देखा।
अन्य बहुत सी कलाकृतियाँ भी पाया।
टुक-टुक से सारंगनाथ मंदिर पहुंचा।
ढलान से ऊपर गया।
सीढ़ियों से नीचे उतरा।
पानी से भरा कुंड पास में पाया।
चौखंडी स्तूप पहुंचा।
यहाँ पर भी टिकट जरूरी था।
काउंटर या ऑनलाइन से लिया।
यहाँ पर एक बड़ा पार्क भी पाया।
जोड़ों को यहां पर बैठा देखा।
यहाँ पर दोपहर खाना खाया।
सारनाथ से आशापुर,
आशापुर से कैंट स्टैंड,
टुक-टुक से पहुंचा।
कैंट स्टैंड से टुक-टुक और रिक्शा लेकर
बाबा विश्वनाथ क्षेत्र पहुंचा।
सड़क पर ही
एक दुकानदार मिला।
नियमों को समझाया।
मोबाइल, बैग को नहीं
ले जा सकते हो।
पूजन सामग्री खरीदी।
मोबाइल और बैग
यहीं पर लॉकर में रखा।
गलियों को अति संकरा पाया।
मंदिर में दर्शन कराया।
समय बहुत बचाया।
लाइन में आगे लगने से
मन में अफसोस भी आया।
पहले विनायक दर्शन किए।
काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचा।
बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए।
स्वर्ण जड़ित आभा पाया।
दर्शन कर लौटा, फिर
मां अन्नपूर्णा के दर्शन किए।
गलियों से घाट मार्ग तक पहुंचाया।
मैंने उसका आभार जताया।
पैदल प्रयाग घाट पहुंचा।
दशाश्वमेध घाट पर
नाव वाले से मोल-तोल किया।
गंगा आरती का नाव में बैठकर,
गंगा पूजन का अवलोकन किया।
इस दृश्य को विहंगम पाया।
सात पुजारी दीप-ज्योति से
आरती करते हैं।
ज्योति बार-बार बदली जाती है।
भजन-संगीत समां बाँधता है।
शिव तांडव की ध्वनि स्वतः
तुम्हारे हाथों से करतल कराती है।
मैंने खुद को मंत्र-मुग्ध पाया।
बड़ी स्क्रीन पर भी दिखता पाया।
नाव से दशाश्वमेध घाट से हरिश्चंद्र घाट तक,
हरिश्चंद्र से मणिकर्णिका घाट तक।
फिर दशाश्वमेध घाट पहुंचा।
हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका पर
चिताओं को जलते पाया।
नौका यात्रा का अंधेरे में लुत्फ़ उठाया।
मन को बहुत प्रसन्न पाया।
अंधेरे में रोशनी से मुग्ध हो गया।
पैदल चलकर और सीढ़ियाँ चढ़कर
विश्वनाथ कॉरिडोर का भ्रमण किया।
दुर्लभ दर्शन केन्द्र पर
ऑडियो-विज़ुअल दिखाते हैं।
दीवार पर धार्मिक वीडियो दिखाते हैं।
कई रेस्टोरेंट और सुविधाएं पाया।
नया विशेष कुछ बनाया है।
यहाँ पर खुली जगह को पाया।
पैदल और रिक्शा से गोडोलिया पहुंचा।
गोडोलिया से टुक-टुक और रिक्शे से,
बनारस स्टेशन हम पहुंचा।
ट्रेन से वापस नई दिल्ली आया।
मेट्रो पकड़ कर धौला कुआं,
यहां से बस से भिवाड़ी पहुंचा।
कुछ जरूरी बातें बताता हूँ।
बैग में ताला लगता हो।
पास एक और ताला हो,
जो सीट के नीचे लगाना है।
नींद का फिर भरपूर मौका होगा।
साबुन भी लेकर आओ।
न मिले, तो अपने से काम चलाओ।
हैंड सैनिटाइज़र भी लेकर चलो।
खाने की वस्तु साफ हाथों से खाओ।
या सैनिटाइज़र लगाओ, फिर खाओ।
साथ में चश्मे का कवर और स्लीपर
यात्रा में जरूर लेकर चलो।
बाथरूम जाने से न हिचकिचाओ।
टुक-टुक, ऑटोरिक्शा, रिक्शा ही
बनारस की लाइफ लाइन है।
संकरी गलियों में सक्षम साधन बनता है।
यह रुक जाए, समझो
फिर शहर न चल पाएगा।
चालक पैसे ज्यादा मांगेगा।
कोई कम मांग कर भी,
खुले नहीं हैं, बोल ज्यादा ले लेगा।
हर कोई, हर चीज को बेच रहा है।
चाहे रिक्शा और
फूल-माला बेच रहा हो।
आखिर में भावनाओं से ले लेगा।
पैसे तय करके ही सुविधा लेना,
वरना तुम पछताओगे।
बुक करके ऑटो महँगा पड़ता है।
शेयरिंग में सारा शहर दौड़ता है।
हर रूट पर टुक-टुक चलता है।
चाहे हो बीएचयू, या हो सारनाथ,
हर जगह टुक-टुक खूब दौड़ता है।
चार स्टेशन हैं शहर में —
वाराणसी जंक्शन,
बनारस रेलवे स्टेशन,
काशी रेलवे स्टेशन,
बनारस सिटी।
प्लानिंग में ध्यान रखना,
वरना कहीं और पहुंच जाओगे,
और पछताओगे।
गलत वाहन पर बैठ गया।
गलती सुधार जल्दी उतरा।
जगह जगह पर
प्रसिद्ध जलेबी-कचौड़ी,
बनारसी चाट, को पाया।
बनारसी पान,
साड़ी को भी पाया।
मैंने तो डोसा, इडली, लस्सी,
चावल और मंचूरियन
और दाल-रोटी से काम चलाया।
खाने को सब मिल जाता है।
रेलगाड़ी में यह वृत्तांत
दिल से लिखा है।
क्या अच्छा और क्या भिन्न
बनारस में पाया है।
सबके लिए बनाया है।
कोई ग़लती हो इसमें तो
मैं अग्रिम माफ़ी माँगता हूँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 16 मई 2025,©
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