#H443
दर्द का दस्तावेज़
(The Testament of Pain)
इंसान का दर्द से
बड़ा गहरा रिश्ता होता है।
दर्द दिल का हो
तो ज़ुबां बदल जाती है,
गुमसुम सी फितरत हो जाती है,
नफ़रत दिल से निकल जाती है—
या फिर नफ़रत ही रह जाती है।
माशूक की याद बन जाती है,
पाने के लिए जुनून बन जाती है,
दीवाना कहलाती है।
दर्द बदन का हो
तो मुंह से आह निकल जाती है,
जवानी में बुढ़ापा दिखाती है,
चाल बदल जाती है,
बेचैनी बढ़ जाती है।
दवा-दारू की महंगाई मार जाती है,
और अगर कुछ बचा हो
तो अपनों की बेवफाई मार जाती है।
पीर हमें ज़िंदगी सिखाती है,
अपनों की औक़ात बताती है।
कसरत न करने का परिणाम दिखाती है,
सही खानपान का महत्व समझाती है,
सेहत की अनदेखी का अंजाम बताती है—
पछताने का मौक़ा भी नहीं देती,
सीधा फ़ैसला सुनाती है।
पीड़ा हमें खुद से मिलवाती है,
हवा में उड़ती जवानी को
ज़मीन पर ले आती है।
पीर ऐसे सुर लगाती है...
जिंदगी हर हाल में बदल जाती है।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 10 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10
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