#H446
प्रकृति का प्रहार (Nature's Fury)
रात अंधेरी थी।
हवा बहुत तेज थी।
धूल से भरी थी।
हवा के मन में
बात कुछ और थी।
साथ में बादल लाई थी।
बिजली की गड़गड़ाहट थी।
बारिश भी करने आयी थी।
पेड़ों शामत लाई थी।
रास्ते पानी से भर गए।
लोग पानी में फंस गए।
हम पानी में घुसने से डर गए।
फंसी गाड़ियां सड़क पर छोड़ गए।
कुछ पानी में उतर कर
धक्का लगवाने को मजबूर हो गए।
हवा कपड़ों को उड़ाकर ले गयी।
धूल हर जगह घुस गई।
कूड़ा करकट भी साथ में भर गई।
सफाई का काम बढ़ा गयी।
झावट की बारिश का पानी
मकानों में घुस गया।
दरवाजे उखड़ गए।
घरों के शीशे टूट गए।
लोग मायूस हो गए।
कई पेड़ यहां उखड़ गए
कई पेड़ वहां उखड़ गए।
जो न उखड़े
वो फिर डालियों से टूट गए।
कई गाड़ियां पेड़ों से दब गईं।
रास्ते बन्द हो गए।
सब खोलने में लग गए।
बिजली के तार टूट गए।
लोग सुधारने में लग गए।
लोग क्या कम थे विनाश को।
तूफान भी पेड़ों को उखाड़ गए।
हमको सीख दे गए।
पेड़ों के बढ़ने में वर्षों लग जाते हैं।
पल भर में उखड़ जाते हैं।
इंसान बस देखते रह गए।
पेड़, साइन बोर्ड उखड़ते गए।
हवाओं के झोंके
हमारी क्षमता बता गए।
रिश्ते बनाने में वर्षों लग जाते हैं।
पल भर में सब बिखर जाते हैं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 25 मई 2025,©
रेटिंग 9.7/10
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