Monday, June 30, 2025

#H463 मिला हुआ कुछ लौटाता जा। (Keep returning what you got)

#H463
मिला हुआ कुछ लौटाता जा। (Keep returning what you got)

जन्म दूसरे ने दिया।
शिक्षा दूसरे ने दी।
नौकरी दूसरे ने दी
जीवनसाथी दूसरे ने दिया।

मरने पर
कंधा दूसरों ने दिया।
मुखाग्नि दूसरे ने दी।
तर्पण भी दूसरे ने किया।

सोच तूने क्या दिया ?
तूने क्या किया ?
तेरे हाथों में क्या था?
कर्म ही तेरे हाथों में था।
बस करता जा।

पानी प्रकृति ने दिया।
सांसें प्रकृति ने दीं
धरती भी प्रकृति ने दी।
लकड़ी पेड़ों ने दी।
गर्मी और रोशनी सूरज ने दी।
मौसमों का रंग कुदरत ने दिया।

तेरे पास सिर्फ कर्म है।
वही तेरा सच्चा धर्म है।
मिला हुआ लौटाता जा।
यही तेरे जीवन का मर्म है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 30 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10

प्रेरणा स्रोत - गोपाल गौड़ जी  का प्रवचन इस विषय पर कविता लिखने को दिशा दिया।

Friday, June 27, 2025

#H462 सरेआम क्यों लुट रहा है ? (Why is being looted openly?)

#H462
सरेआम क्यों लुट रहा है ? (Why is being looted openly?)

हमने कभी किसी को न लूटा, पर
हर किसी ने लूटा समय-समय पर।
सिकंदर भी आया,
अरब, मंगोल और मुसलमान भी आए।
अंग्रेज, पुर्तगाली, फ्रेंच भी आए,
पर हमारी हस्ती न मिटा सके।

सभी को समेटा इसने समय-समय पर,
पारसी भी आए, मुसलमान भी अपनाए।
फिर आज क्यों बांग्लादेश में लुट रहा है?
भारत में सिमट रहा है।

क्या गले लगाने की सज़ा पा रहा है?
आपस में बंटने की सज़ा पा रहा है?
वामपंथ आज कहाँ सो रहा है?
चुपचाप लुटने का मज़ा ले रहा है।

निंदा करने का समय अब न रहा,
कुछ कठोर कदम उठाने का
समय आ गया है।
"नासमझ" सरकार से
उम्मीद लगा रहा है।
सभी को साथ लेकर चलने वाला
सरेआम क्यों लुट रहा है?

ग़ाज़ा में दर्द दिख रहा है,
ईरान दिख रहा है,
पर किसी को बांग्लादेश में
हिंदुओं पर अत्याचार क्यों नहीं दिख रहा है?
मंदिरों को तोड़ा जा रहा है,
पाक में लगभग मिट चुका है,
अब बांग्लादेश से भी
हिंदू मिटता दिख रहा है।

इससे वामपंथ का
एजेंडा न सध रहा है‽
इसलिए कोई
आवाज़ न उठा रहा है।
सभी को साथ लेकर चलने वाला
सरेआम क्यों लुट रहा है?

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक: 27 जून 2025 ©
रेटिंग 9.2/10

प्रेरणा स्रोत: बांग्लादेश में मंदिर तोड़े जाने की घटना टीवी पर देखने के बाद लिखी गई।

Thursday, June 26, 2025

#H461आख़िरी हो (Be the Last )

#H461
आख़िरी हो (Be the Last )

चुनाव में भ्रष्ट आचरण पाए जाने पर,
न्यायालय का फ़ैसला टाल दिया।
और आपातकाल लगा दिया।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

नागरिकों के मौलिक अधिकार
निलंबित कर दिए गए।
प्रेस की स्वतंत्रता ख़त्म कर दी गई,
समाचार पत्रों की सख़्त सेंसरशिप
लागू कर दी गई।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

विपक्षी नेताओं को, बिना मुक़दमा चलाए,
जेल में डाला गया मीसा क़ानून के दुरुपयोग से।
जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया,
जनता में भारी असंतोष जगाया गया।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

दिल्ली के तुर्कमान गेट में,
झुग्गी बस्तियाँ हटाने का
अभियान चलाया गया।
निहत्थों पर पुलिस गोलीबारी करवाई गई,
कई ग़रीबों ने अपनी जान गंवाई।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

'सोशलिस्ट', 'सेक्युलर' जैसे शब्द
संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए।
ताकि जनता धोखे में साथ आए।
न्यायपालिका को प्रभावित किया गया।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

जननायक ने संपूर्ण क्रांति कराई,
विपक्ष को एकजुट किया।
देश में पहली बार सत्तापक्ष को
सत्ता से बाहर करवाया।
किस लिए? देश भ्रष्ट न हो, इसलिए।

भारत के इतिहास में
आंतरिक कारणों से
पहला आपातकाल लगाया गया,
लोकतंत्र पर धब्बा लगाया गया।
किस लिए? सत्ता न जाए, इसलिए।

यह कविता एक चेतावनी है —
यदि देश में सशक्त लोकतंत्र चाहिए,
तो संविधान, न्यायपालिका, मीडिया,
और जनता — सभी को सतर्क रहना होगा।
जो भ्रष्ट हों, उन्हें सत्ता से दूर भगाना होगा।
संकट की स्थिति को छोड़कर
इस आपातकाल को आख़िरी बनाना होगा।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 26 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10

प्रेरणा स्रोत: भारतीय इतिहास में आंतरिक कारणों से लगी इमर्जेंसी के कारण, प्रभाव, पर कविता इमर्जेंसी लगने के दिन लिखी। इमर्जेंसी 25 जून 1975 को लगाई गई थी।

Wednesday, June 25, 2025

#H460 खुल्लम-खुल्ला (Openly)

#H460
खुल्लम-खुल्ला (Openly)

जिसने इराक जला दिया,
जैविक हथियारों के नाम पर
सद्दाम को हटा दिया।
वहाँ पपेट सरकार बना दी,
जनता को और गरीब बना दिया।

अफगानिस्तान बर्बाद कर दिया,
सालों तक जंग में धकेल दिया।
आतंकियों को पैदा किया,
सारा युद्ध का जखीरा छोड़ दिया।

गाज़ा जलता रहा,
संयुक्त राष्ट्र का मान
दिन-ब-दिन घटता रहा।
इज़राइल हमले करता रहा,
गाज़ा जलाता रहा,
नागरिकों को बेघर करता रहा।

पाक को बढ़ावा देता रहा,
आतंकवाद को नज़रअंदाज़ करता रहा।
ओसामा को दिए संरक्षण को भुलाता रहा,
छद्म युद्ध करवाता रहा है।
छद्म युद्ध के नाम पर
देशों में सत्ता बदलता रहा है।
अपने मकसद में आगे बढ़ता रहा।

ईरान को धमकाता रहा,
इज़राइल को मूक समर्थन देता रहा।
परमाणु बम के नाम पर
हमले करवाता रहा।
देशों को अपना पिट्ठू बनाता रहा,
ताकत और पैसा दिखाता रहा।

शांति का पाठ पढ़ाता रहा,
खुल्लम-खुल्ला चढ़ाई करता रहा।
देशों को शमशान बनाता रहा,
दोहरा चरित्र दिखाता रहा।
"जिसकी लाठी, उसकी भैंस" —
यह सबको याद दिलाता रहा।
सभी कानूनों को ठेंगा दिखाता रहा।

हर देश को हक है अपना बचाव करे।
सुरक्षा के साधन बनाए।
छद्म युद्ध से आत्म रक्षा करें।
अपनी संप्रभुता को बचाकर रखें।
और दूसरे देश का सम्मान करे।
इंसानियत का ख्याल रखे।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 25 जून 2025 ©
रेटिंग 9.9/10

Saturday, June 21, 2025

#H459 भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी (The First Step of Corruption)

#H459
भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी (The First Step of Corruption)

गलियां तो कभी चौड़ी थीं ।
पहले एक ने सीढ़ियां बनाई।
दूसरे ने भी सीढ़ियां बनाई।
तीसरे ने भी बनाईं।
चौथे, पांचवें, छठे....ने
भी यह परंपरा निभाई।
अब गली की चौड़ाई
आधी रह गई भाई।

आना जाना मुश्किल हो गया।
गली में वाहन लाने ले जाने में
बड़ा जोखिम है दोस्त।
किसी ने क्यों न आवाज उठाई,
जब सड़क पर पहली सीढ़ी बनाई।
प्रशासन ने अपनी ड्यूटी न निभाई।
नोटिस न दिया, ना ही तुड़वाईं।

हमको ऐसी गलियां कभी न भायी।
शहर हो या गांव,
यह समस्या हमने हर जगह देखी।
ऐसी गलियों में दम घुटता है, साथी।

यह मात्र सीढ़ियां नहीं,
भ्रष्टाचार का पहला कदम है भाई।
आमजन को दिक्कत देकर,
कुछ छोटी सी जगह बचाई।

अगर अब भी न‌ जागे,
तो गली एक दिन बंद हो जाएगी।
फिर मत कहना बताया नहीं, भाई।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 21 जून 2025,©
रेटिंग 9.5/10

Wednesday, June 18, 2025

#H458 हवाई त्रासदी: एक अधूरी कहानी (Air tragedy: an unfinished story)

#H458
हवाई त्रासदी: एक अधूरी कहानी (Air tragedy: an unfinished story)

अहमदाबाद से लंदन,
वो उनकी आखिरी हवाई उड़ान।
सब पहुंच गए शमशान,
एक यात्री बच गया,
यह सब जान कर हैं हैरान।

जहाज बिल्डिंग से टकरा गया,
छात्रावास बन गया शमशान।
ले गया रेजीडेंट डॉक्टरों की जान,
बुझ गई 275 की कहानी,
हजारों को कर गई
जीवन भर के लिए परेशान।

कोई बिजनेस मैन था,
कोई नेता था,
कोई डॉक्टर था,
कोई अभियंता था,
कोई कलाकार था,
कोई गृहणी, छात्र, मजदूर था।
कहीं पूरा परिवार था,
न बची वंश की पहचान।

कोई लेट हो गया,
फ्लाइट छूट गई।
बचने पर खुशी न जता सका,
घटना ने तोड़ दिया अभिमान।
पल भर में कुछ नहीं है इंसान,
इंसान की औकात बता रहा भगवान।

दुर्घटना इतनी भयंकर थी,
खबर सुनकर मेरा दिल बैठ गया।
जीवन लेता है ऐसे ही इम्तिहान।

यात्रियों के परिवार के
भविष्य के सपने बन गए मसान,
हर प्रिय शोक में है परेशान।
मुआवजा नहीं होता समाधान,
टूटा भरोसा कैसे हासिल हो?
सदमे में है इंसान।

दांव पर लगी है समूह की शान,
दांव पर लगा है देश का मान।
क्या गलती थी? पता चले,
तभी निकलेगा समाधान।

हर कोई है परेशान,
जिसकी आंखों में न हों आंसू,
वो नहीं है सच में इंसान।
सबकी आत्मा को शांति दे भगवान,
और परिजनों को शक्ति दे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 16 जून 2025,©
रेटिंग 9/10

Sunday, June 15, 2025

#H457 खामोशी से सिखाया मुझे (Taught Me Silently)

फादर्स डे पर कविता प्रस्तुत करता हूॅं।

#H457
खामोशी से सिखाया मुझे
(Taught Me Silently)

मन्नतें मांग कर पाया मुझे,
गोद में उठाया, दुलराया मुझे।

उंगली पकड़ कर चलाया मुझे,
हाथों में बार-बार झुलाया मुझे।
कंधों पर बिठा कर मेला घुमाया,
दुनिया के बारे में बताया मुझे।

रातों में घबराकर उठा,
तो ढांढस बंधाया मुझे।
बीमारी में रात-रात जागे,
मेरे लिए खुद को भी भुलाया,
तकलीफ़ में ऐसे बचाया मुझे।

जब कभी हारा,
तो नया रास्ता बताया मुझे।
फैसला करना सिखाया मुझे,
खुद समझ न रखते हुए भी,
सही रास्ता दिखाया मुझे।

सब कुछ हासिल कराया मुझे,
खुद महरूम रहे सुविधाओं से,
सदा अच्छा दिखाया मुझे।

जब मनोबल टूटा मेरा,
सदा आगे की राह दिखाई मुझे।
अच्छे संस्कार देकर,
अच्छा बनाया मुझे।

सच को जानना सिखाया मुझे,
तर्क को आगे रखना सिखाया मुझे।
दिमाग से स्वतंत्र बनाया मुझे,
भगवान को मानो या न मानो,
मर्यादा रखने को प्रथम बताया मुझे।

खामोश रहना भी सिखाया मुझे,
गुस्से को काबू में रखना,
थोड़े शब्दों में बताया मुझे।
खुद से आगे निकलने को,
सक्षम बनाया मुझे।

पिता की खामोशी ने डराया मुझे,
वक्त सभी का सीमित होता है।
डरने की कोई बात नहीं,
सभी को एक दिन जाना होता है।
खामोशी से सिखाया मुझे,
पापा ने ऐसे पाला मुझे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक: 15 जून 2025 ©
रेटिंग: 9.8/10

Wednesday, June 11, 2025

#H456 निर्गुण की वाणी (The Voice of the Formless)

#H456
निर्गुण की वाणी (The Voice of the Formless)

मैं ना जानूं जात-पात को,
मैं ना मानूं ऊँच-नीच को।
मैं ना मानूं धर्म-जात को,
मैं मानूं बस ज्ञान को,
मैं मानूं बस काम को।

नहीं है मुझे दशरथ पूत राम प्यारा,
नहीं है मुझे रहीम प्यारा।
मैं ना मानूं पत्थर को,
मैं ना पूजूं मूरत को।
मैं ना जाऊं तीरथ को,
मैं मानूं बस एक ईश्वर को,
जो है सबके अंदर —
मैं मानूं उस राम को।

बड़े बनो, पर मत बनो खजूर,
छाया नहीं, फल भी अति दूर।

शिक्षा से ज्ञान तो मिले,
पर न बनते विद्वान।
जो न समझे प्रेम को,
रह जाए अज्ञान।
उपयोग करना न आता हो,
तो बेकार है सारा ज्ञान।

या तो रहना,
नदिया के इस पार,
या जाना उस पार।
वरना जीवन है बेकार।

जहां प्रेम है, वहां धर्म है।
जहां धर्म है, वहां सत्य है।
जहां सत्य है, वहां रब है।
जहां रब है, वहां सब है —
प्रेम, खुशहाली और मुस्कान।

जोड़ रहे हैं असीमित सामान,
छल-कपट से न कतराते।
न जाने कब निकले प्राण,
फिर भी नहीं सुधरे इंसान।

जो जन्मे थे काशी में,
मगहर में छोड़े प्राण,
ताकि आमजन
बन जाए सच्चा इंसान।

बिन पढ़ें - लिखे ही,बने संत कबीर महान,
करता हूँ मैं उनको शत-शत प्रणाम।
रखते थे वे व्यवहारिक ज्ञान।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 11 जून 2025,©
रेटिंग 9.9/10

Tuesday, June 10, 2025

#H455 क्या मैं गांव लौट पाऊंगा ? (Will I be able to return to the village?)

#H455
क्या मैं गांव लौट पाऊंगा ? (Will I be able to return to the village?)

क्या मैं अब अपने गांव
लौट पाऊंगा ?
या शहर की दौड़ धूप में ही
खो जाऊंगा?
भागदौड़ की इस अंधी रेखा में,
क्या जीवन पूरा यूँ ही गंवाऊंगा?

क्या जड़ों से
बच्चों को जोड़ पाऊंगा?
उन्हें खेतों में धूप दिखा पाऊंगा?
मिट्टी की खुशबू, पोखर की बातें,
कभी दोबारा उन्हें सुना पाऊंगा?

क्या फिर से खेतों में
सूरज उगता देख पाऊंगा ?
ताज़ा दूध, हरा साग ले पाऊंगा ?
चूल्हे की रोटी खाकर,
मन भर के मुस्कुरा पाऊंगा ?

लोगों संग फिर बतियाऊंगा,
बूढ़े माँ बाप की गोद में
अपना सिर रख पाऊंगा।
बुढ़ापे की साँझ में चैन से बैठ,
कुछ मीठे पल
फिर से जी पाऊंगा‌ ?

न चाहूंगा अकेला मरना शहर में,
चिता न जले कंक्रीट के शहर में।
मरूं तो वहीं जहाँ बचपन बीता,
जहाँ आँगन हो, नीम का पेड़ हो।
पीपल के पत्तों की आवाज हो।

या फिर भीड़ में
यूँ ही गुम हो जाऊंगा ?
नाम पता सब मिटा जाऊंगा ?
या गांव में
कुछ काम शुरू कर पाऊंगा,
और गांव को
कुछ लौटाने लायक बन जाऊंगा ?
एक दिन लौटुंगा जरुर,
गांव की मिट्टी का ऋण चुकाऊंगा।
ख्वाब नहीं हकीकत बनाऊंगा।
अपने गांव को फिर से सजाऊंगा।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 10 जून 2025,©
रेटिंग 9.5/10

Friday, June 6, 2025

#H454 शून्य की ओर (Towards zero)

#H454
शून्य की ओर (Towards zero)

जीत जश्न क्या भूला पाएंगे ?
11 जानें चली गईं।
कमाने वाले ही चले गए।
सवाल बड़ा सा छोड़ गए।
भगदड़ में मरने वालों की
संख्या को कब शून्य करेंगे।

अक्सर भगदड़ में
आम आदमी ही मरते हैं।
गलत प्रबंधन की
खुलेआम भेंट चढ़ जाते हैं।

अब दौर शुरू होगा।
आरोप प्रत्यारोप का।
जिम्मेदारी न लेने का।
किसी को बकरा बनाने का।
एफआईआर करने वालों का।
फाइलों में जांच दबाने का।

क्या कोई लौट आएगा?
जो चला गया इस जग से।
जाने वालों का दर्द
क्या कोई दूर कर पाएगा ?
2 लाख में क्या होगा ?
कैसे आगे का जीवन
परिवार चला पाएगा ?

कब हम सबक लेंगे ?
प्रबंधन के तरीकों को
अब दुरुस्त करेंगे।

जितनी क्षमता है स्थल की
कब उस पर नियंत्रण करेंगे ?
क्या हम और भगदड़ों में
आमजन की जान गंवाएंगे।
जल्दी ही हम भूल जाएंगे।
कुंभ कर्ण की नींद में
फिर से सो जाएंगे।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 06 जून 2025,©
रेटिंग 9.8/10

Wednesday, June 4, 2025

#H453 हाथों में हाथ (Hand in hand)

#H453
हाथों में हाथ (Hand in hand)

साथ निभाया सालों तक।
प्यार निभाया बरसों तक।
सदा साथ में सुखी रहे।
दुख में भी साथ
निभाया बरसों तक।

बच्चे हमको छोड़ गए।
जीवन में आगे बढ़ने को
अब दिन दोनों ही काट रहे हैं।
हाथों में हाथ रख कर अब तक।

थोड़ा बचा लेना अपने लिए
सारा पैसा कभी न देना।
कुछ पेंशन का इंतजाम करो।
किसी के सहारे की उम्मीद न करो।
सब व्यस्त रहते खुद में।

सांस तेरी रुक जाए पहले।
या रुक जाए पहले मेरी।
तो कैसे समय कटेगा बरसों तक।
किससे हम बोलेंगे ?
कौन हमें समझेगा ?
कैसे ऐसे जिएंगे हम बरसों तक।

आंखों की रोशनी कम हो जाएगी।
हाथ पैर सही से न चल पाएंगे।
बीमारियां धीरे-धीरे पांव पसारेंगी।
कोई कैसे समय बिताएगा बरसों तक।

जो होगा आगे देखा जाएगा।
जब तक साथ हैं, साथ रहेंगे
फिर तेरी यादों के सहारे
बाकी समय बिताएंगे।
वायदा रहा, हंसते हुए हम जाएंगे।
स्वर्ग में फिर एक हो जाएंगे।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 4 जून 2025,©
रेटिंग 10/10

Monday, June 2, 2025

#H452 वो ही हिन्दू है (Way of Life)

#H452
वो ही हिन्दू  है  (Way of Life)

हिन्दू नाम नहीं है
केवल धर्म का।
संस्कृति है, दर्शन है।
जीवन जीने की शैली है।
कर्म से उपजी प्रणाली है।

जो सबको अपनाए।
सबको साथ में लाए।
सबके साथ निभाए।
दुनिया को
अपना कुटुम्ब बताए।

नवाचार को अपनाए।
सत्य, अहिंसा, करुणा और
क्षमा को जीवन में अपनाए।
यज्ञ, पूजा, और ध्यान में
संभव समय लगाए।
सहिष्णुता को अपनाए।

आत्मा की खोज पर
अपना जीवन बिताए।
आस्था, विज्ञान, कला,
योग, साधना और
आध्यात्मिकता को
एक साथ अपनाए।

एक सर्वोच्च ब्रह्म में
विश्वास‌ रखे,
साथ ही बहुदेववाद
की पूजा‌ को अपनाए।

रामायण, महाभारत,
भगवत गीता से
दर्शन की समझ बढ़ाए।

नवदुर्गा, दशहरा, दीवाली,
होली और रक्षाबंधन
खुशी से परिवार संग मनाए।

आत्मा अमर है।
कर्मों के अनुसार जन्म पाए।
पुनर्जन्म में विश्वास जगाए।
जन्म-मृत्यु के चक्कर से
मुक्ति पाने को, अंतिम लक्ष्य बनाए।
वो ही हिन्दू है।

जन्म से मृत्यु तक
16 संस्कार निभाए।
जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह।
अंतिम संस्कार से पीछे न जाए।
अंत में पंचतत्व में विलीन हो जाए।
वो ही हिन्दू है।

हिन्दू धर्म में
कोई एक धर्मगुरु या
संस्था बंधन नहीं है।
जिसका जिसमें मन लग जाए।
अपनी मर्ज़ी से संप्रदाय अपनाए।

विविधता में समझ बनाए।
शिव को माने "शैव" बन जाए।
विष्णु को माने "वैष्णव" कहलाए।
देवी को पूजे 'शाक्त" समझा जाए।
सभी को समान भाव से
देखे "स्मार्त" कहलाए।
वो ही हिन्दू है।

चार वेद को जाने
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
108 उपनिषद से समझ बढ़ाए।
18 महापुराण को श्रवण करे।
वो ही हिन्दू है।

ब्रह्मा सृष्टिकर्ता, विष्णु पालक,
शिव संहारक, देवी शक्ति  को पूजे।
राम, कृष्ण में आस्था जगाए।
वो ही हिन्दू है।

धर्म के चार स्तम्भ अपनाए।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का
जीवन में संतुलन बनाए।
वो ही हिन्दू है।

जीवन के चार चरण माने
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,
वानप्रस्थ और संन्यास।
हर चरण में आस्था दिखाए।
वो ही हिन्दू है।

अनिवार्य पूजन बंधन से मुक्त है।
परमब्रह्म के स्मरण मात्र से,
बंधन से अंत में मुक्त हो जाए।
क्षमा को अंतिम हथियार बनाए।
कभी भूखे को घर से 
खाली हाथ न लौटाए।
वो ही हिन्दू है।

रोज कुछ समय लगाओ।
अपनों को हिन्दू होने का
सच्चा मतलब बतलाओ।
हिन्दू होने पर न शर्माओ।
हिन्दू का परचम लहराओ।
दुनिया में अपनी जगह बनाओ।
"नासमझ" यह गुहार लगाए।

हिन्दू को समझो, अपनाओ।
ज्ञान, करुणा, और कर्म से
अपना जीवन सजाओ।
हिन्दू बनो, या नहीं।
पर हिन्दू का जीवन अपनाओ।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 2 जून 2025,©
रेटिंग 10/10

Sunday, June 1, 2025

#H451 तम्बाकू छोड़ो, जीवन बचालो। (Quit Tobacco, Save Life)

#H451
तम्बाकू छोड़ो, जीवन बचालो। (Quit Tobacco, Save Life)

चिलम उठाओ।
तंबाकू इसमें डालो
और फिर चिलम जला लो
जोर से अब कस मारो।
अब धुआं उड़ाओ।

हुक्का हो तो उसे पर रख लो।
गुड़गुड़ की आवाज निकालो।
जोर जोर से कस लगाओ।
और धुआं उड़ाओ।
चार दोस्तों को और बुला लो।
हुक्के पर महफ़िल सजा लो।

ना मिल पाए चिलम और हुक्का
तो सिगरेट, बीड़ी से काम चला लो।
दिन भर में कई बार जला लो।
साथियों के साथ कुछ बतिया लो।

सिगार सुलगा लो।
खैनी, तम्बाकू से काम चला लो।
शान से गुटखा भी मुंह में डालो।
यह सब करते- करते उम्र बिता लो।

अब डाक्टर से
खुद की एक मुलाकात करा लो।
फेफड़ों में टार का पता लगा लो।
गले और मुंह की गांठों की जांच करा लो।

सांस फूल जाती है।
मुंह नहीं खुल पाता है।
कैंसर की सूचना पाकर
अब तुम घबरा लो।
समय रहते इलाज करा लो।
वरना फिर खूब पछता लो।

नियम बना लो
न मैं चिलम जलाऊंगा।
हुक्का न चढ़वाऊंगा।
सिगरेट, बीड़ी, सिगार, खैनी, गुटखा से
सदा के लिए दूरी बनाऊंगा।
जीवन को
कैंसर के नाम नहीं चढ़ाऊंगा।


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 31 मई 2025,©
रेटिंग 9.8/10

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (World No Tobacco Day) प्रस्तुत करता हूॅं।

#H475 7 मासूम (7 Innocents)

#H475 7 मासूम (7 Innocents) पिपलोदी स्कूल की छत गिर गई, सात मासूमों की जान चली गई। स्कूली प्रार्थना आखरी हो गई। घरों में घनघोर अंधेरा क...