Wednesday, June 11, 2025

#H456 निर्गुण की वाणी (The Voice of the Formless)

#H456
निर्गुण की वाणी (The Voice of the Formless)

मैं ना जानूं जात-पात को,
मैं ना मानूं ऊँच-नीच को।
मैं ना मानूं धर्म-जात को,
मैं मानूं बस ज्ञान को,
मैं मानूं बस काम को।

नहीं है मुझे दशरथ पूत राम प्यारा,
नहीं है मुझे रहीम प्यारा।
मैं ना मानूं पत्थर को,
मैं ना पूजूं मूरत को।
मैं ना जाऊं तीरथ को,
मैं मानूं बस एक ईश्वर को,
जो है सबके अंदर —
मैं मानूं उस राम को।

बड़े बनो, पर मत बनो खजूर,
छाया नहीं, फल भी अति दूर।

शिक्षा से ज्ञान तो मिले,
पर न बनते विद्वान।
जो न समझे प्रेम को,
रह जाए अज्ञान।
उपयोग करना न आता हो,
तो बेकार है सारा ज्ञान।

या तो रहना,
नदिया के इस पार,
या जाना उस पार।
वरना जीवन है बेकार।

जहां प्रेम है, वहां धर्म है।
जहां धर्म है, वहां सत्य है।
जहां सत्य है, वहां रब है।
जहां रब है, वहां सब है —
प्रेम, खुशहाली और मुस्कान।

जोड़ रहे हैं असीमित सामान,
छल-कपट से न कतराते।
न जाने कब निकले प्राण,
फिर भी नहीं सुधरे इंसान।

जो जन्मे थे काशी में,
मगहर में छोड़े प्राण,
ताकि आमजन
बन जाए सच्चा इंसान।

बिन पढ़ें - लिखे ही,बने संत कबीर महान,
करता हूँ मैं उनको शत-शत प्रणाम।
रखते थे वे व्यवहारिक ज्ञान।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 11 जून 2025,©
रेटिंग 9.9/10

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