श्रम पर भारी श्रेय
फसल काटने सब आते हैं।
पानी देने न आता कोई।
खेत जोतने से बचता हर कोई।
खेत किसने बोया है।
यहां न पूछे कोई।
रातों को किसने खेतों पर
अपनी निंदिया खोई।
कॉर्पोरेट जगत में
फसल काटना ही सिखलाते हैं।
किसी की मेहनत को
अपनी बताते हैं।
जब परिणाम आने वाले होते हैं।
तो फसल काटने आ जाते हैं।
मेहनतकश की मेहनत को खा जाते हैं।
जोर-शोर से उद्घाटन करवाते हैं
फोटो खूब खिंचवाते हैं।
जनता में इसको
अपनी उपलब्धि बताते हैं।
यह फसल काटने वाले ही
साक्षात किसान को खा जाते हैं
श्रेय के लिए श्रम की बलि चढ़ाते हैं।
किसान अगली फसल में लग जाते हैं।
हर साल सारा मुनाफा
ट्रेडर ही खा जाते हैं।
कुछ किसान तो
आत्महत्या कर जाते हैं।
और कुछ खेती छोड़
पलायन कर जाते हैं।
मजदूरी में जीवन बिताते हैं।
बेहतर मानव संसाधन को भी
अनदेखा कर गंवा देते हैं।
फिर एक नया चेहरा लाते हैं।
चक्कर यों ही चलता रहता है।
दूसरों का हक फिर हड़पने आ जाते हैं।
असल मुद्दे को जड़ से
खत्म करने का प्रयास नहीं करते हैं।
अपनी डुगडुगी ऐसे ही बजाते जाते हैं।
सब ऐसे ही होते हैं, हम नहीं कहते हैं।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 2 जुलाई 2025,©
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