#H511
अब तो लौट आ बेटे अपने गांव।
आ अब लौटें अपने गांव।
बुला रही नीम की छांव।
खेतों ने आवाज लगाई l
अब तो लौट आओ बेटे ।
उजड़ रहा है तेरा गांव।
गलियों में सन्नाटा सा है।
हवा भी जाने से डरती है।
रोजगार के लिए
छोड़ रहे युवक गांव।
ठोस अपशिष्ट बढ़ रहा है।
जो अब न खाद बन रहा है।
जहां तहां खूब जल रहा है।
बेटे मेरा दम घुट रहा है।
बच्चे न चाहकर भी
जहर पी रहे हैं।
घुट घुट कर सब जी रहे हैं।
अब नल भी
ज्यादा आवाज करता है।
पानी कम दे पाता है।
सूखा भी हो जाता है।
गहरा होता जाता है।
कैसे होगा जीवन आगे।
पूंछ रहा है मेरा गांव।
खेत भी बोल रहे हैं।
प्यास अब न बुझती है।
ट्यूबवेल सूख जाते हैं।
किसान को न सूझ रहा कोई दांव।
फसलों में बीमारी लग जाती है।
दवा छिड़क देता हूॅं।
जहर फसलों में लग रहा है।
ऐसा लगता है
लोगों को जहर खिला रहा हूॅं।
कैसे सुरक्षित रहे गांव।
अब तो लौट आओ बेटे अपने गांव ।
कर ले कुछ धंधा अपने गांव।
पलायन रोकने को लगा कोई दांव।
प्लास्टिक कचरे से मुक्त करा।
जल का अतिसंदोहन रुकवा।
खेतों से पेस्टीसाइड हटवा।
बारिश का पानी एकत्रित करवा।
खेतों में प्रयोग करवा।
कम पानी की फसलें लगवा।
तभी बचेगा तेरा गांव।
अब तो लौट आओ बेटे अपने गांव।
मेरा ऋण चुका बेटे।
बोल रहा है तेरा गांव।
दिनांक 7 जून 2025,©
रेटिंग 9/10
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