नीति और नियति (Policy and Destiny)
यह चालाकियां, यह मक्कारियां,
यह दुश्वारियां, हमने न सीखीं।
ज़माने ने आजमाईं हम पर,
अपनी सारी चालाकियां।
मुंह पर मुस्कान,
बगल में श्मशान का इंतजाम,
सामने मीठा, पीछे ज़हर घोले,
तेरी सारी चालाकियां।
इनको कमजोरी न बनाओ।
जितना संभव हो,
साम से काम बनाओ,
बातचीत कर
समझा-बुझाकर काम चलाओ।
न बने काम तो दाम लगाओ,
सामने वाले का मुंह बंद कराओ।
फिर भी न हासिल हो मंजिल,
तो दंड का विधान लगाओ।
अब भी अगर दूर खड़ी मंजिल,
तो फिर आपस में भेद कराओ,
ऊंच-नीच, जातिवाद, धर्म,
भाई-भतीजावाद फैलाओ,
दुश्मन के टुकड़े कर जाओ।
फिर भी न हो पाए तो
ईश्वर की चाल समझ जाओ।
ठंड रखो और मान जाओ,
ऊपर वाले की रहमत से न टकराओ।
फिर दुश्मन को भी गले लगाओ,
हंसते-हंसते ग़म का घूंट गटक जाओ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 अक्टूबर 2024,©
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