Wednesday, October 30, 2024

#H282 मायूसी (Disappointment)

#H282
मायूसी (Disappointment)

आंखों में आंसू आए,
पर निकल न सके।
सिर भारी हो गया,
गला भर आया,
शब्द न मिल सके।

हम आवाज दे न सके,
किसको सुनाते
हम दिल-ए-दास्तान।
सुनने के काबिल
कोई हमें मिल न सके।

आज दिल का कोई तार छिड़ गया,
जज्बात जाग उठे।
लगता है हम दिल से मायूस हो गए,
जिंदगी से निराश हो गए।
मायूसी में जाने लगे,
मासूम से हो गए,
मजबूरी को कोसने लगे।
हालात कुछ ऐसे रहे
हम किसी को बता न सके।

समय रहते वापस आ गए,
मायूसी को धता बता आए।
बात दिल की थी,
दिल में ही दबा गए।
जब लोगों से मिले हम,
लोगों से मुस्कुराते मिले।
दिल की मायूसी,
सारे ग़म छिपा गए।
ज़ख्म दिलों के दिखा न सके।
दिल की बात,
हम किसी को बता न सके।
जग हंसाई की वजह से
किसी को राजदार बना न सके।

घर वाले अपने  में‌ मशगूल मिले।
मायूस वहां से भी हुए।
दिल की बात,
हम किसी को बता न सके।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 अक्टूबर 2024,©
रेटिंग 9.5/10

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