#H197
जरूरत बनाम प्यार
"कविता में शारीरिक जरुरतों और सच्चे प्यार के बारे में बताया गया है। "जब नजरों से नजरें मिलीं
दिल में अरमान मचल गये
कर गए प्यार का इजहार
कदम आगे बढ़ गये
होंठों से होठ सिल गये
बहक गये हम दोनों
हाथों में हाथ आ गये
मिल गये दोनों के बदन
हम दोनों एक हो गये
हसरतें हो गई पूरी
लगता है हम प्यार कर गए
दिन रात सोचते रहे हम
प्यार का खेल खेलते रहे
यह जरूरत है जिस्म की
हम इक दूजे की पूरी करते रहे
हर शाम, हर रात, हर दिन
अरमान मचलते रहे
लोग हमारे लिए कहते रहे
ये प्यार करते हैं, इक दूजे पर मरते हैं
पर हम तो जिस्मों की जरूरत
खाने भांति पूरी करते रहे
कुछ साथी, साथी बदलते रहे
साथी साथ रखकर भी
और साथी बाहर खोजते रहे
कुछ फिर भी इस लम्हे को तरसते रहे
यों ही हम प्यार का खेल खलते रहे
जिस्म से चढ़ा था खुमार
उम्र के साथ ढल गया
बदली हैं जरूरतें
जज्बात आज भी वही है
साथ है साथी जिनके
हाथों में हाथ है उनके
आज लगता है यही है प्यार
साथी के साथ रह गए, वो कर गए
वो ही जीवन को जी गए
साथी से सच्चा प्यार कर गए
मरते दम तक हाथों को हाथ में रखकर
जीवन इक दूजे के नाम कर गए
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 24 अगस्त 2023,©
रेटिंग 9.5/10