Sunday, August 24, 2025

#H518 बैगेरत

#H518 बैगेरत

समान सौ बरस का,
पल भर की खबर नहीं।
हमें खबर है हर बात की,
पर अब आँखों में शर्म नहीं।

बेगाना है हर कोई इस महफ़िल में,
हमें अब रिश्तों की क़द्र नहीं।
यहाँ हर कोई मौक़ापरस्त है,
ईमान की किसी को क़द्र नहीं।

दायरे हमारे इतने सिमट गए हैं,
समाज की हमको कोई क़द्र नहीं।
जल्द मिट जाएँगे हम ज़माने से,
फिर भी धोखा देने से डर नहीं।

पता है हमको—हासिल,
किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं।
ऊपरवाले पर भरोसा है सबको,
पर किसी ने देखा नहीं।

अपने बच्चों से बातें तो करते हैं,
पर अपने ग़लत कामों पर चर्चा करते नहीं।
अपने बच्चों से आँखें कैसे मिलाते हैं,
हमें इसका कुछ इल्म नहीं।

दिनांक 22 अगस्त 2025,©
रेटिंग 9.5 /10

#H519 हर ओर शिकायत

#H519 हर ओर शिकायत  तारों को चांद से शिकायत है। अंधेरे को चांदनी से शिकायत है। रात को सूरज से शिकायत है। सूरज को‌ शाम से शिकायत है। दिन को ...