#H435
बातों से ना काम चलेगा (Words won't work)
क्या खून तुम्हारा नहीं खोलेगा ?
जब तुम खबर ऐसी पाओगे।
अपनों का लहू बहा है।
तुम आंसू न रोक पाओगे।
"मैं निन्दा करता हूॅं"
"मैं खंडन करता हूॅं"
से नहीं काम चलेगा।
अब ध्यान रहे
बेगुनाहों का लहू चीख रहा है।
इंसाफ हमसे मांग रहा है।
बातों से न काम चलेगा।
पहलगाम की धरती
हमसे बोल रही है -
"बदनाम हुआ हूॅं मैं
कब मेरा वापस मान मिलेगा ?"
बातों से ना काम चलेगा।
बेगुनाहों का लहू बहा है इस धरती पर,
हमको न आराम मिलेगा।
सैलानियों से ना दाम मिलेगा।
अब हमें ना काम मिलेगा।
आतंकी और उनके सहयोगी,
और आकाओं के मरने का,
समाचार पत्र में, कब नाम मिलेगा ?
घर का हो या बाहर वाला -
बतलाओ हमको,
कब बेगुनाहों के लहू का
इंतकाम मिलेगा ?
कब आतंकियों का लहू
इस धरती पर बहेगा ?
बातों से ना काम चलेगा ?
एक मजहब है तो जीने का मौका।
दूजा है तो सीधा श्मशान मिलेगा।
मजहबी आतंक से
हम सबको कब आराम मिलेगा ?
किसी का बेटा पूछ रहा ?
किसी की मां ढूंढ रही है -
कब बेटे का समाचार मिलेगा ?
किसी का बाप, अब घर न पहुंचेगा,
बेटे को बस समाचार मिलेगा।
किसी बहिन अभी तक न सोई है -
"मेरा वीर कब घर आएगा ?"
भाभी लाने -
"कब बारात लेकर जाएगा ?"
अब भी जो न रोया।
आंखों में न आंसू लाया।
क्या अपनों को खोने पर
वो आंखों में आसूं लाएगा ?
न समझना, जग से कोई मेरा चला गया है -
वो मेरे ताऊ, चाचा, भाई बहन दोस्त हैं।
साला, साली, जीजा, मौसा, और मौसी हैं,
वो मेरे बेटे और बेटियां हैं।
मैं कोई गैर नहीं - भारत का बेटा हूॅं।
आंखों में आसूं, सीने ज्वाला समेटा हूॅं।
अब पीछे न जाऊंगा ।
बातों से न काम चलेगा।
कूटनीतिक फैसले लो,
चाहे जंग पर जाओ।
एक रोटी मैं कम खाऊंगा।
पर बदला लेकर मानूंगा।
बतलाओ हमको अब।
बेगुनाहों को इंसाफ कब मिलेगा ?
बातों से न काम चलेगा।
पहले ऊरी, फिर पुलवामा,
अब पहलगाम,
कब आतंक पर
देश में पूर्ण विराम लगेगा ?
दुश्मन कोशिश कितनी भी कर ले।
मज़हब के नाम पर
यह मुल्क अब न बंटेगा ?
जनता कब विश्वास मिलेगा ?
देश में कहीं घूमने से
जब कोई न डरेगा।
बातों से न काम चलेगा।
केवल पक्का इलाज चलेगा।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 24 अप्रैल 2025,©
रेटिंग 9.7/10
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