#H436
संभल जा पड़ोसी मेरे भाई (Beware, My Neighbor, My Brother)
तुमने जमीन मांगी
मज़हब-ए-मुल्क के लिए।
हमने जमीन दे दी।
तुमने पैसे मांगे,
हमने पैसे भी दिए।
पर कभी पक्की सरकार
तेरे मुल्क न आयी।
दशकों से
हम जान गंवाते आए।
कब तक जान गंवाते रहेंगे ?
सीमा पर जानें तुम्हारी भी गयीं।
हमारे गमों की रातें,
तुमसे कभी कम न रहीं।
जंग में हार से भी
तुम्हें अक्ल न आयी।
ऐसी क्या भूख है तेरी,
भुखमरी छायी तेरे यहां।
पर खून पीने की चाहत न गयी।
चंद लोगों ने महफ़िल सजायी
मज़हब-ए-मुल्क में जनता को,
खुशहाली हासिल न हो पायी।
आम लोगों में भुखमरी है छायी।
फिर भी तुझे समझ न आयी।
आतंक की तूने फसल उगाई।
सदा पीछे से गोली चलाई।
हमारे वतन में आग लगाई।
कब तक चलेगी यह लड़ाई।
जरा दुनिया को भी बता
कब तेरी जनता हंसेगी भाई ।
संभल जा पड़ोसी मेरे भाई।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 25 अप्रैल 2025,©
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