#H408
जीवन ज्योति (Light of Life)
नारी सदा रही है जग में न्यारी,
लेती रही सदा जग में
संस्कारों को बढ़ाने की जिम्मेदारी।
जीवन की ज्योति
सबको लगती जग में प्यारी।
स्त्री करे घर में कारगुजारी,
मकान को घर बनाने की
लेती है वह जिम्मेदारी।
औरत समान अधिकार चाहे,
सदा रखी है इसने
जग से जंग कर
कुछ बनने की जिम्मेदारी।
बेटी जब घर में जन्मे,
अब होने लगी है
खुशियों की सवारी।
सबका मन हर्षाए,
जब देखे इसकी किलकारी।
बच्ची भी थाम रही अब
अपने सपनों की जिम्मेदारी।
आज लड़कियां कर रही हैं
लड़कों को हर क्षेत्र में
पटखनी देने की तैयारी।
बहन कर रही है
भाई की कलाई सजाने की तैयारी।
आंखों में आंसू आते,
जब विदाई की आती है बारी।
अब है बहू की बारी,
सास को मनाना है जारी।
पीहर से खत पाते ही,
सहयोग दे रही है ननद हमारी।
मां बच्चों को सिखाना
रखती है जारी,
अपने बच्चे से लेकर
अपने पोते-पोतियों तक,
सदा रहे बच्चों पर बलिहारी।
कभी-कभी मौसी से भी
मिलने की आती है बारी,
मिलती है ऐसे, जैसे हो
दूसरी मां हमारी।
बुआ, पापा से कर रही है
बच्चों को घर लाने की तैयारी।
हम भी सोच रहे हैं,
कैसे बीतेंगी छुट्टियां इस बार
सबके साथ हमारी।
आज भाभी रूठ गई,
मनाने की अब भैया की बारी।
सोच रहा है, क्यों आंखें
दिखा रही हैं पत्नी हमारी।
मामी, मामा बुला रहे हैं,
मिठाई हमको खिला रहे हैं।
नानी पंखा हिला रही है,
हमको कहानी सुना रही है।
निंदिया हमको बुला रही है।
महिला ने अब कर ली है तैयारी,
हर जगह होगी अब हमारी भागीदारी।
तभी हक पाएगी देश की नारी।
देवी हैं सब देवों पर भारी,
सदा कष्टों की मुक्त नारी।
महिला घर में होती है
जीवन ज्योति हमारी।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक: 08 मार्च 2025,©
रेटिंग 9.5/10
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