दृष्टि और दृष्टिकोण (Vision and Approach)
नेत्रहीन देख ना पाए ।
सबको समझ में आए।
गिरकर चोट खा जाए।
चलना फिरना दूभर हो जाए।
आलसी सब कुछ देखे ।
पर फिर भी देख ना पाए
क्षणिक सुख के लिए
जिंदगी दांव पर गंवाए।
जीवन में बार-बार ठोकर खाए।
सूरदास बस कह सुनकर
अपना जीवन बिताए।
"कवि सूरदास" नेत्रहीन होकर भी
"सूरसागर" महाकाव्य बनाए।
नेत्रहीन, आलसी से
ज्यादा सम्मान पाए।
सोच अगर सच्ची हो ।
तो अक्षमता आड़े न आए।
कवि "नासमझ" को
ऐसा ही समझ आए।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 29 फरवरी 2025, ©
रेटिंग 9.7/10