Tuesday, January 28, 2025

#H363 महक (Fragrance)

#H363
महक (Fragrance)

बन ठन के वो जाती है ।
पता नहीं ,
किसको वो ‌लुभाती है।
इत्र बहुत लगाती है।
रस्ते को महकाती है।
लिफ्ट‌ को भी ,
महक से भर जाती है।

हमारे जैसों को बहुत सताती है।
नजला चालू करवा जाती है।

पता नहीं इतना
इत्र/डियो क्यों लगाती है।
ऐसी शख्सियत ,
हर जगह मिल जाती है।
गली हो, सोसायटी हो, या हो दफ्तर,
महकाने वाली मिल जाती है।
उम्र इत्र के आड़े नहीं आती है।

नोटिस में आ जाती है।
लोगों में छा जाती है।
ऐसा वो चाहती है।
इसीलिए वो,
इतना इत्र लगाती है।

महकाने वाले भी मिलते हैं।
वो भी ऐसी चाहत रखते।
भर- भर के इत्र लगाते हैं।
खुद की बदबू भी छुपाते हैं।

ऐसों से हम, दूर भाग जाते हैं।
खुद को नजले से बचाते हैं।
पता नहीं ये कैसे बर्दाश्त कर पाते हैं।
सूंघने शक्ति कमजोर करते जाते हैं।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 28 जनवरी 2025,©
रेटिंग 8.5/10

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