गांवों से तीन सवाल (Three questions from the villages)
ना तुम्हारा विकास हुआ
ना हमारा विकास हुआ
एक गांव से आता हूं मैं
तीन सवाल उठता हूं मैं
पानी, कचरा, और सीवर का
कोई समाधान नहीं पाता हूं मैं।
हर जगह कचरे का
अंबार लगा हुआ पाता हूॅं मैं।
जगह-जगह पर कूड़ा पाता हूॅं मैं ।
ऊपर से हर जगह
प्लास्टिक कचरा रूपी
डायन को पाता हूॅं मैं।
इस कचरे के लिए
कोई योजना नहीं पाता हूं मैं।
कचरे से निकलने वाले धुएं से
बहुत डर जाता हूॅं मैं।
साफ पानी पीने को नहीं पाता हूॅं मैं।
धीरे-धीरे पाने के स्रोतों को
दूषित होता पाता हूॅं मैं।
धीरे-धीरे पानी का स्तर
नीचे जाता हुआ पाता हूॅं।
पानी की लाइन बिछी है
पर पानी रोज नहीं पाता हूॅं मैं।
"हर घर जल योजना" का
हाल बताता हूॅं मैं।
ढंग से नालियां नहीं पाता हूॅं मैं.
नालिया बन भी जाती है तो
बस आगे सीवर का पानी
बहता हुआ पाता हूॅं मैं।
गांवों में सीवर के पानी का
कोई हल नहीं पाता हूॅं मैं।
सड़कों पर भरता हुआ पाता हूॅं मैं।
अगर देश का विकास चाहो तो
हर गांव में इन समस्याओं
का हल करवाओ।
सरकार से गुहार लगाता हूॅं मैं ।
देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 25 जनवरी 2025, ©
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