अलग चूल्हा (Separate Stove)
मात-पिता का
शरीर हुआ कमजोर,
अब आंखें देतीं कम ही साथ ,
पैर डगमगाते, न टिकते हाथ।
कानों से कम ही सुनाई देती बात
ऐसे में औलाद कर दे मजबूर ।
बोले मेरा चूल्हा जलेगा
घर में होकर भी, तुमसे दूर।
क्या बोलें ऐसी किस्मत पर,
या अपने कर्मों पर।
अलग चूल्हा जलाने को मजबूर।
बच्चे निकले बड़े ही बेहया।
कैसे सह लेते हैं।
बीबी का ऐसा गुरुर।
हम सोचने को मजबूर।
सबका होता है एक ही हुजूर।
अगर मानते हो, तो ईश्वर से डरो।
मात-पिता से ऐसा न कराओ।
नास्तिक हो, तो तुम भी भोगोगे।
तुम भी जल्दी बूढ़े बनोगे।
अपने बच्चों से कैसे बचोगे।
जरा हमें भी बताओ।
सदियों से जैसा बोते हो।
वैसा ही काटोगे, होगे मजबूर।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 04 जनवरी 2024,©
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