तेल का खेल (Game of Oil)
सर्दी का मौसम आता,
शरीर शुष्क हो जाता।
अब शरीर तेल मांगता,
जब तेल लगाया जाता।
शरीर को फिर से चमकाता,
खुश्की दूर भगाता।
तन-मन अच्छा हो जाता।
इसलिए सर्दी में लोगों द्वारा
शरीर पर तेल लगाया जाता।
कुछ लोग हर मौसम में
तेल लगाते।
हम आगे बताते,
लोग कैसे लगाते,
किसे लगाते।
हम तेल नहीं लगाते।
हम ही तेल नहीं लगाते,
इस जहां में
यहां लोगों ने दरिया बहा रखा है,
लोगों को सरेआम डुबो रखा है।
खुद को भी
तेल में डुबो रखा है।
क्या मजाल किसी की,
जो फंसा पाए इनको,
फिसलने का पूरा
इंतजाम कर रखा है।
काम को मना न करने का
उसूल बना रखा है।
जुबान पर शहद लगा रखा है।
दूसरे के काम का श्रेय
लेने का जाल बिछा रखा है।
अपने साहब को पटा रखा है।
सुबह-शाम काम का जिक्र
करने का प्रोग्राम बिठा रखा है।
साहब से पेठ बन गई है,
इस खुशफहमी में तरकीबों का
जाल बना रखा है।
काम छोड़कर दफ्तर को
दरबार बना रखा है।
खुद को दरबान बना रखा है।
तेल को हथियार बना रखा है।
तेल को ढाल बना रखा है।
तेल से माहौल बिगाड़ रखा है।
सब यों ही तेल नहीं लगाते,
तेल को बहुत फायदेमंद बताते।
शरीर पर लगे तो काया बनाते,
वरना सरेआम साहब पटाते।
तेल से मेल कराते,
तेल से सरपट रेल चलाते।
हम सब बचपन से सुन आते।
लोग तेल का खेल यों चलाते।
आज के समय में,
ऐसे लोग स्मार्ट समझे जाते।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 6 दिसंबर 2024,©
रेटिंग 9.5/10
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 6 दिसंबर 2024,©
रेटिंग 9.5/10