#H301
भूख (Greed)
"कविता में आज के लोगों के विशेष तरह के व्यक्तित्व की भूख को लालच, मौकापरस्ती, छोटा मार्ग अपनाने के रुप में बताया गया है। जो सदा अतृप्त रहती है।"
मैं खूब खाना खाती हूँ।
मोटी होती जाती हूँ।
फिर भी भूखी रह जाती हूँ
समझ नहीं पाती हूँ।
किस भूख में जीती जाती हूँ।
लालच में फंस जाती हूँ।
वाह - वाही चाहती हूँ।
मौके नहीं गंवाती हूँ।
हर दांव लगाती हूँ।
हाँ में हाँ मिलाती हूँ।
फिर भी पर समय से,
आगे नहीं बढ़ पाती हूँ।
कुछ समझ नहीं पाती हूँ
भूखी रह जाती हूँ।
बिलकुल नहीं शरमाती हूँ।
ऊपर पहुँच लगाती हूँ।
छोटा रास्ता अपनाती हूँ।
नया काम,
बहुत कम कर पाती हूँ।
थोड़े से काम चलाती हूँ।
जल्दी आगे बढ़ने की चाह में,
फंसकर रह जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
अपना महत्व दिखाने को
काम को लटकाती हूँ।
अन्तिम समय में करती हूँ
फंसकर रह जाती हूँ
लोगों की नजर में आ जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
गलत रोकने से कतराती,
संबंध खराब होने का
जोखिम नहीं उठाती हूँ।
फंसकर रह जाती हूँ।
लोगों से ठगी जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
यारों का साथ निभाती हूँ।
ईश्वर को भी ढोक लगाती हूँ।
जनसम्पर्क बढ़ाती हूँ।
फिर क्यों फंसकर रह जाती हूँ।
क्या लक्ष्य है मेरा
क्या रणनीति है मेरी
किसी को नहीं बताती हूँ
समझदार बन जाती हूँ।
फिर भी फंसकर रह जाती हूँ।
भूखी रह जाती हूँ।
किस भूख में जीती जाती हूँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 सितम्बर 2024,©
"कविता में आज के लोगों के विशेष तरह के व्यक्तित्व की भूख को लालच, मौकापरस्ती, छोटा मार्ग अपनाने के रुप में बताया गया है। जो सदा अतृप्त रहती है।"
मैं खूब खाना खाती हूँ।
मोटी होती जाती हूँ।
फिर भी भूखी रह जाती हूँ
समझ नहीं पाती हूँ।
किस भूख में जीती जाती हूँ।
लालच में फंस जाती हूँ।
वाह - वाही चाहती हूँ।
मौके नहीं गंवाती हूँ।
हर दांव लगाती हूँ।
हाँ में हाँ मिलाती हूँ।
फिर भी पर समय से,
आगे नहीं बढ़ पाती हूँ।
कुछ समझ नहीं पाती हूँ
भूखी रह जाती हूँ।
बिलकुल नहीं शरमाती हूँ।
ऊपर पहुँच लगाती हूँ।
छोटा रास्ता अपनाती हूँ।
नया काम,
बहुत कम कर पाती हूँ।
थोड़े से काम चलाती हूँ।
जल्दी आगे बढ़ने की चाह में,
फंसकर रह जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
अपना महत्व दिखाने को
काम को लटकाती हूँ।
अन्तिम समय में करती हूँ
फंसकर रह जाती हूँ
लोगों की नजर में आ जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
गलत रोकने से कतराती,
संबंध खराब होने का
जोखिम नहीं उठाती हूँ।
फंसकर रह जाती हूँ।
लोगों से ठगी जाती हूँ।
मैं भूखी रह जाती हूँ।
यारों का साथ निभाती हूँ।
ईश्वर को भी ढोक लगाती हूँ।
जनसम्पर्क बढ़ाती हूँ।
फिर क्यों फंसकर रह जाती हूँ।
क्या लक्ष्य है मेरा
क्या रणनीति है मेरी
किसी को नहीं बताती हूँ
समझदार बन जाती हूँ।
फिर भी फंसकर रह जाती हूँ।
भूखी रह जाती हूँ।
किस भूख में जीती जाती हूँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 सितम्बर 2024,©
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