Tuesday, October 8, 2024

#H270 अधूरी हसरतें (unfulfilled desires)

#H270
अधूरी हसरतें (unfulfilled desires) 

मैं झूठ बोल ना सका
तुम सच समझ न सकीं। 
हम ऐसे बिछड़े, 
फिर कभी मिल न सके। 
हम रात - रात भर जागे। 
पर तुम भी सो न सकीं। 

निगाहें तरसती रहीं । 
हसरतें मिट न सकीं। 
तुम मेरा साथ दे न सकीं
मेरा सच समझ न सकीं। 
मुझे सच बोलने से, 
पहले बता न सकीं। 
झूठ से मिलती मंजिल
तुम बता न सकीं। 
हम समझ न सके। 

सिसकियां सुनाई आती रहीं
मुझसे आंखें न मिला सकीं। 
उदास मैं जीता रहा। 
पर झूठ कह न सका। 
तुम सच समझ न सकीं। 
अपनी उल्फत , 
नदी के किनारे सी बन गयी। 
साथ तो रहे पर मिल न सके। 
नदी का पानी न बन सकीं। 
आज तक मेरे सपनों से 
तुम बाहर जा न सकीं। 

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 08 अक्टूबर 2024,©
रेटिंग 8.5/10

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