अधूरी हसरतें (unfulfilled desires)
मैं झूठ बोल ना सका
तुम सच समझ न सकीं।
हम ऐसे बिछड़े,
फिर कभी मिल न सके।
हम रात - रात भर जागे।
पर तुम भी सो न सकीं।
निगाहें तरसती रहीं ।
हसरतें मिट न सकीं।
तुम मेरा साथ दे न सकीं
मेरा सच समझ न सकीं।
मुझे सच बोलने से,
पहले बता न सकीं।
झूठ से मिलती मंजिल
तुम बता न सकीं।
हम समझ न सके।
सिसकियां सुनाई आती रहीं
मुझसे आंखें न मिला सकीं।
उदास मैं जीता रहा।
पर झूठ कह न सका।
तुम सच समझ न सकीं।
अपनी उल्फत ,
नदी के किनारे सी बन गयी।
साथ तो रहे पर मिल न सके।
नदी का पानी न बन सकीं।
आज तक मेरे सपनों से
तुम बाहर जा न सकीं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 08 अक्टूबर 2024,©
रेटिंग 8.5/10