#H222
काश मैं कुवांरा होता (I wish, I was single)
कविता में व्यक्ति के घुटन, संघर्ष, अधूरी इच्छाऐं और परिवार के बारे में बताया गया है। "
काश मैं कुवांरा होता
फिर आज बेचारा न होता।
छोड़ जाता सब जी का जंजाल
अगर तुम्हारा ना होता।
और कोई हमारा न होता।
मैं किसी का दुलारा न होता
किसी का प्यारा न होता।
सुबह से शाम तक की कशमकश
मनचाहा न कर पाने की कशक
न घूमने जा पाने की कशक
न होती जहन में,
अगर मैं कुवांरा होता।
ईएमआई की तारीख
बच्चों की फीस की तारीख
न रुकने वाले बिल, न होते,
अगर मैं कुवांरा होता।
कम में गुजारा होता
दिन में कहीं, रात में कहीं सोता
आज यहाँ, कल कहीं और होता
दोस्तों के साथ गुजारा होता
अपनी जिंदगी में मस्त होता
पूरी दुनिया घूमता
काश मैं कुवांरा होता।
हाकिम का चाकर बन गया
दुनियादारी सारी भूल गया।
बेचारा होते हुए
परिवार का सहारा बन गया
परिवार का दुलारा न होता
परिवार जो सहारा न होता
अगर तुम्हारा न होता
आज मै कुवांरा होता।
अकेला रहता , मजबूर न होता
बस मेरे हाथ में तेरा हाथ न होता
प्यार का अहसास,
जिंदगी में ठहराव न होता।
जिंदगी की शाम होने तक
जो तेरी सासों के होने का अहसास न होता।
जो मैं कुवांरा होता।
आज मैं दुनिया में न होता
जो कोई कुंवारा होता।
जहाँ हो वहाँ खुश रहो।
कुवांरे को बुढ़ापे में कोई सहारा न होता।
सच तो यह है बुढ़ापे में कोई हमारा न होता।
दोस्तों की यादें और दोस्तों का सहारा होता है
काश मैं कुवांरा होता।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 16 अगस्त 2024,©
रेटिंग 9/10