#H224
कैसे पार लगेंगे हम (How will we get through as Nation)
"कविता में देश की तरक्की में बाधक कुछ विशेष परिस्थितियों के बारे में सवाल उठा गया है।"
कैसे पार लगेंगे हम
कहीं नदी,
कहीं नाले में फंस गए हम।
कोई डूब रहा है ,
कोई तैर रहा है
कोई मजे से मचल रहा है
कोई लूट रहा है।
कोई लुट रहा है
कैसे भंवर में फंस गए हम।
कैसे पार लगेंगे हम
जाति, धर्म, राजनीति, भ्रष्टाचार ने ऐसा जकड़ा
मौका परस्ती ने ऐसा फांसा
खुद का हित पहला हो गया
देश हो गया अंतिम।
कैसे भंवर में फंस गए हम।
कैसे पार लगेंगे हम
देश जाति, धर्म, राजनीति के
चक्कर में ऐसा फंस गया
न सूझ रहा रास्ता हमको
कहाँ फंसकर रह गए हम
याद रखो, देश न रहा तो
न तेरी जाति रहेगी, न पार्टी और न धरम।
राज्य बन्द, भारत बंद,
कैसे आगे बढ़ेंगे हम।
और देशों की हालत से
कब सीखेंगे हम।
क्या एक बार फिर से
बंटवारा करवायेंगे हम।
कैसे भंवर में फंस गए हम।
कैसे पार लगेंगे हम ।
नासमझ को भी
नासमझ लगने लगे हम।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 अगस्त 2024,©
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