Thursday, August 15, 2024

#H220 एक सलाम गुमनामी के नाम (A salute to anonymity)

" सभी को 78वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। "

#220
एक सलाम गुमनामी के नाम

"कविता में गुमनाम क्रांतिकारियों, आंदोलनकारियों, गुमनाम पीड़ितों और नेताओं के दोहरे चरित्र के बारे में है। "

आज की शाम गुमनाम क्रांतिकारियों के नाम
एक सलाम गुमनामी के नाम।
कायरों, मत ढूंढना इसमें मजहबों के नाम।
आजादी से पहले सब एक थे
बाद में केवल हिन्दू मुसलमान अलग कैसे हो गये।

जो रण में खेत रह गए ।
लौट कर घर वापस न आऐ
इतिहास में अपना नाम दर्ज न करा पाऐ
गोली सीने पर पहली खाऐ।
सिर पर पता नहीं कितने डण्डे खाऐ
जेल गए, फिर घर वापस न आऐ
फांसी भी चढ़ा दिऐ पर,
आजादी के लिए अपनी आहुति दे गये।
यह सोच उनकी संतानें खुली हवा में खेलेंगी।
अपनी सांसें आजादी के लिए दे गए।

हिन्दुस्तान हमारा है, हमको जान से प्यारा है
यह संदेश हम सभी को दे गये।

नेताओं से अब तक हमने समझा है
कैसे न लगी गोली इन्हें,
कैसे न फांसी चढ़े
कैसे न बम से मरे,
कैसे न दंगे में फंसे
और इतिहास में अमर हो गये।
और यह यहाँ के अंग्रेज हो गये।
हम सब कैसे इनके पीछे हो गये।
गुमनाम क्रांतिकारी कहाँ रह गये।
कोई था किसान,
कोई छात्र, कोई मजदूर था
सब कैसे गुमनाम हो गये।
अपनी जान देश के नाम कर गये।
हिन्दुस्तान हमारा है, हमको जान से प्यारा है
यह संदेश हम सभी को दे गये।
और हम आजाद हो गये।

बंटवारा करवा गये।
पर बंटवारे की वजह को
ज्यों का त्यों छोड़ गये।
लाखों बेघर हो गये।
अपनों से बिछड़ गये।
लाखों मर गये।
बंटवारे में गुमनाम हो गये।
करवाने वाले तो अमर हो गये।
सदा के लिए ताजा जख्म दे गये।
क्यों करवाया बंटवारा।
गुमनाम "नासमझ" से पूछते रह गये।

चीन और पाकिस्तान से लड़ाई में
सीमा पर लड़े, लड़ते ही गये ।
हथियार न थे फिर भी भिड़ते ही गये।
वापस न आये, गुमनाम हो गये।
बस चंद ही इतिहास दर्ज हो गये।

इमरजेंसी में कितनों के साथ क्या क्या हुआ।
क्या क्या नहीं झेला लोगों ने,
बहुत से जेल गये
बहुत से नेता तो चमक गये।
आम लोग तो गुमनाम हो गये।
इमरजेंसी का दर्द झेलते रह गये।

सिख दंगों में
कितनों ने क्या क्या नहीं झेला
अपनों से दूर हो गये
बेघर हो गये।
बहुत से नेता तो चमक गये।
दर्द झेलने वाले गुमनाम हो गये
इंसाफ को सालों साल तरसते रह गये।
देश में अपने ही अंग्रेज हो गये।

मंडल कमंडल आंदोलन में
कितने मर गये, आत्मदाह कर गये।
बहुत से जेल गये।
और गुमनाम हो गये।
बहुत से नेता तो चमक गये।

राम मंदिर आंदोलन में
हजारों कारसेवकों ने
कारसेवा में भाग लिया
सीने पर गोली खाई,
सिर पर डण्डे खाये
कई तो मर गए, और गुमनाम हो गये
बहुत से नेता तो चमक गये।
देश में अपने ही अंग्रेज हो गये।

कारगिल की लड़ाई में
बहुत से वापस न आऐ।
अपनों को अकेला छोड़ गये
अन्त्येष्टि में नेताओं ने फोटो खिंचायी
वो शहीदों के परिवार,
नेताओं के लिए जल्द गुमनाम हो गये।

अपने ही यहाँ अब अंग्रेज हो गये।
नेता कुछ ही सालों में कैसे अरबपति बन जाते हैं
आज भी आजादी पाने को कुछ और सवाल रह गए।
भ्रष्टाचार से आजादी पाने को कह गये।

बहुत से हर बार आंदोलन में
लोग गुमनाम हो गये।
हमको यह संदेश दे गये
हिन्दुस्तान हमारा है, हमको जान से प्यारा है।

इसको संभाल कर रखने का
बच्चों अब दायित्व तुम्हारा है।
हिन्दुस्तान हमारा है, हमको जान से प्यारा है।

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 13 अगस्त 2024,©

रेटिंग 9.5/10

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