#H208
मैं कांटा हूँ ( I am Thorn)
मैं कांटा हूँ।
"नासमझ" को अपनी कथा सुनाता हूँ
कुछ अपनी व्यथा बताता हूँ।
फूलों के साथ में पाया जाता हूँ
रक्षा करते - करते मर जाता हूँ।
फूलों से खेलने वालों को
थोड़ा सतर्क बनाता हूँ।
तोड़ने वालों में लग जाता हूँ।
फूल चले जाते हैं
मंदिर को महकाने,
गजरे में लग जाते हैं
मैं वहीं रह जाता हूँ।
न महक चढ़ी मुझ पर
न मखमली अहसास पाया मैंने
अन्त में अपना जीवन
फूलों पर न्योछावर कर जाता हूँ।
मैं कांटा हूँ,
इसलिए जलाया जाता हूँ
जलकर भी शक्ति दे जाता हूँ।
फिर भी कांटा हूँ, कांटा कहलाता हूँ।
मैं चुभ जाता हूँ, घुप जाता हूँ
फूलों की रक्षा में
खुद को तुड़वा जाता हूँ।
पर पीछे नहीं हठता हूँ
जब तक पेड़ से
अलग नहीं किया जाता हूँ।
फिर भी फूलों का बदला लेने को
मर मिट जाता हूँ, घुप जाता हूँ,
चुभ जाता हूँ।
कांटा भी निकालने के भी काम आता हूँ
फिर भी बदनाम हूँ
किसी के रास्ते का कांटा कहलाता हूँ
कल प्यारा था तुम्हारा
आज आंखों में खटक जाता हूँ।
क्या दोष है मेरा,
जो मैं कांटा कहलाता हूँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 30 जुलाई 2024,©
रेटिंग 9.5/10