#H171
मुलाकात
"कविता में कार्यस्थल से प्रेम की शुरुआत होने से, विवाह करने तक भाव प्रकट किया गया है"
वो काम की बात,
बात की शुरुआत
अब याद आ गयी,
वो सारी बात।
आंखों से आखें चार हो गईं
हुई सिलसिले की शुरुआत
तेरा महकता बदन,
खींचता मेरा मन
अब न रही अपने बस की बात।
तेरी सासों की आवाज
अपने भड़के जज्बात
सिमटते दायरे
वो कैसी थी मुलाकात
याद आ गयी सारी बात
कैसे गुजरी रातें यार के साथ।
रह रहकर याद आ रही
सारी बात। वो पहली मुलाकात।
मेरा वायदा, तेरा कायदा
दुल्हन तू
दूल्हा मैं बन जाऊँगा
मेरा ऐतबार करना
बारात लेकर आऊंगा।
तभी तू, मुझे प्यार करना।
मेरा वायदा, तेरा कायदा
ऐसे बढ़े प्यार के साथ।
चलती रहीं अपनी मुलाकात।
वो दिन आ गया
वायदा हकीकत हो गया।
मुलाकात से विवाह तक आ गया।
वो कैसे हुई मुलाकात।
दूल्हा चला दुल्हनियां लाने
बराती आये दावत उड़ाने,
रंग जमाने, ठुमका लगाने
दुल्हनियां सजी दूल्हा रिझाने
उमड़ रहे मन में जज्बात।
कुछ लोग नहीं पहुंचते,
होते उनके अपने बहाने
कहने को रह जाती है बात।
शादी रहे मुबारक तुम्हारी
ऐसी रब से दुआ हमारी।
फलेफूले घर की क्यारी तुम्हारी
जल्दी गूंजे घर में किलकारी
दूल्हा चला दुल्हनियां लाने
दुल्हनियां सजी दूल्हा रिझाने
नासमझ ढूंढे बस लिखने के बहाने
अब न रही मुलाकात की बात।
याद आ रही सारी बात।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 18 अप्रैल 2024,©
रेटिंग 8/10