#H175
धौंस
"कविता में साथियों की पार्टी में धौंस दिखाने की परिस्थिति को बताया गया है। "
तेरा सुरुर कुछ ऐसा चढ़ा।
कुछ पीकर बहक गए।
कुछ खुशबू से चहक गये।
कुछ ऐसे बिदक गये।
दोष सुरा को क्या देना।
कुछ बिन पिए ही महक गये।
किसी के काबिले सुर लगे।
किसी ने हंसी के ठहाके लगाऐ।
किसी ने कविता को पढ़ा,
जीवन में अनुभव फरमाऐ।
कुछ मंद मंद मुस्काऐ।
कोई बिचलित से दिखे।
कई पीने पर भी संयम रख पाऐ
ऐसे लोग ही पार्टी की
सच्ची रंगत बन पाए।
हम सब अपनी करनी को
यादकर ठिठक गये।
एक दूजे पर
अपनी धौंस जमाते हैं
अपनी साख बढ़ाने के चक्कर में
खुद की इज्जत गंवाते हैं।
संबंध बढ़ाने की बजाय
रिश्तों में कड़वाहट ले आते हैं।
"नासमझ" सब से गुहार लगाते हैं।
खुशी मनाने के अवसर पर
रिश्तों में कड़वाहट नहीं फैलाते हैं।
हर कोई आपकी नासमझी को
माफ नहीं कर पाते हैं।
हम तो बस इतना ही फरमाते हैं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 10 फरवरी 2024,©
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