#H155
संघर्ष
"इस कविता में किसी शोषण कर्ता के खिलाफ आवाज उठाते हुऐ संघर्ष करके हक पाने के बारे में बताया गया है। "
अगर चुप रहना सीखा है तुमने
अच्छा है, जीवन जीना सीखा है तुमने
पर क्या अन्याय पर भी
चुप रहना सीखा है तुमने
तो फिर जीना कहाँ सीखा है तुमने
क्या संघर्ष किऐ बिना
हार जाना सीखा है तुमने।
क्या अन्याय पर
चुप्पी रखना सीखा तुमने
क्या अन्याय से
डरकर जीना सीखा है तुमने
क्या अपना हक
भीख में मांगना सीखा है तुमने
क्या संघर्ष किऐ बिना
हार जाना सीखा है तुमने।
क्यों कोई और लड़े तुम्हारे लिए
जब डर डरकर
जीना सीखा है तुमने
हक तो लेने से मिलता है उसको
अन्याय से भिड़ना सीखा है जिसने
लोगों की चुप्पी
कहीं आवाज न बन जाऐ उसकी
खुलेआम शोषण करना सीखा है जिसने
क्यों अपना हक
मांगना नहीं सीखा है तुमने
ऐसे में क्यों चुप रहना सीखा है तुमने
लगता है डर डरकर जीना सीखा है तुमने
अन्याय से लड़ना नहीं सीखा है तुमने
अगला शिकार होना चुना है तुमने।
संगठन से दूर खड़े रहना सीखा है तुमने
क्या संघर्ष किऐ बिना
हार जाना सीखा है तुमने।
भूल गये क्या वो सीख पुरानी
एक लकड़ी को तोड़ना है आसान
गठ्ठर को तोड़ना कहाँ सीखा है उसने।
संघर्ष किऐ बिना नहीं
हार जाना सीखा है तुमने।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 22 अप्रैल 2024,©
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