#H154
मुखबिर
सबसे मिलकर रहता है
पकड़े जाने के डर से
बैचेन जल्द हो जाता है
जल्दी घुल मिल है जाता
खतरा बहुत उठाता है
थोड़े से अपने फायदे के लिए
यारों से गद्दारी कर जाता है
चुपके चुपके सारी खबरें
मालिक को पहुँचता है
तरह तरह की जुगत लगाता
तेरा बनकर तेरी ही खबरें
मालिक तक पहुँचाता है
कभी कभी तेरे दुश्मन का दुश्मन बन
तेरे मन की पाता है
सही को भी गलत बताकर
खुद का उल्लू सीधा करवाता है
पकड़े जाने पर मालिक से
भी नहीं पहचाना जाता है
धोबी के कुत्ते की तरह
न घर का, न घाट का रह जाता है
मालिक और यारों, दोनों का
फिर साथ नहीं पाता है
ऐसा ही मुखबिर कहलाता है
नासमझ यह बतलाता है।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 02 सितम्बर 2023,©
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