#H137
लोक परलोक
"कविता में गरीबी और अमीरी के अंतर, इलाज की कमी, और सरकारी व्यवस्थाओं का संकेत मिलता है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं का परिप्रेक्ष्य दिखाया गया है।"
आओ मैं तुम्हें
तीनों लोकों की यात्रा करवाता हूँ
गरीब व्यक्ति जी रहा है
ना भर पेट खाना खा रहा है
न साफ पानी रहा है
न इलाज पा रहा है
बिना थके काम कर रहा है
हर रोज जा रहा है
मैं पूछता हूँ आपसे आपसे
देश की सरकार से
राज्य की सरकार से
और पिछली सरकार से
कब तक चलता रहेगा
कब तक यह जिंदा रहेगा
जिसको ऐतराज है
जाऐ जिला अस्पतालों में
नये राजकीय मेडिकल अस्पतालों में
देखे यहाँ क्या हो रहा है
तड़प - तड़प कर बीमार
मर रहा है
प्रशासन सरेआम सो रहा है
सरकारी अस्पताल बन रहे हैं
वोट पाने का जरिया
न स्वच्छता है, न हवा है
न डाक्टर हैं, न दवा है
न मशीनें हैं, जो हैं वो खराब हैं
न सुरक्षा है यह कैसी
नागरिक की रक्षा है
मैंने सुना था
नरक लोक में सजा़ऐं मिलती है
यह तो जीते जी नरक भोग रहा है
लगता है, यही नरकलोक है
मरने के बाद कुछ नहीं है
ऐसा कहने को जी कह रहा है
एक सोम रस पी रहा है
अप्सराओं से दिन रात
महफ़िल सजा रहा है
बंगलों में रह रहा है
इमपोर्टिड गाड़ियों में चल रहा हैं
धन दौलत इतनी है, पता नहीं
नेताओं को इलाज सरकारी हासिल है
अमीर पैसे से इलाज विदेश में करवा रहा है
इनके अस्पतालों को अस्पताल न कहना
इनके मुकाबले फाईव स्टार होटल शरमा रहा है
लगता है यही स्वर्ग लोक है
हर बात अपनी मनवा रहा है
मध्यम समाज
खा रहा है पी रहा है
अच्छे से जी रहा है
अच्छा जीवन व्यतीत रहा है
जरुरत से ज्यादा जीवन में है
पर फिर भी इलाज पर
कम पड़ रहा है
अच्छे अस्पताल में जा नहीं सकता
सरकारी में जाने से डर रहा है
जबकि गरीब यहाँ मर रहा है
महंगे इलाज पर बच्चों का
भविष्य गंवा रहा है
लगता है , यह भूलोक है
कुछ खुशी है कुछ गम खा रहा है
धन्यवाद।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ" ©
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