#H134
ताल
"कविता में किसी अच्छी संस्कृति वाले संस्थान का स्तर गिरने की स्थिति में लोगों का हाल और व्यवहार को बताया गया है।"
सुर है, न ताल है
बन्दे बेहाल है।
यहाँ कैसी लोगों की चाल है।
हर कोई बहुत व्यस्त है।
पर, सब कुछ बदहाल है।
किसी को नहीं ,
यहाँ पर कोई मलाल है
हर कोई बेताल है।
यह कैसा सुर है, कैसी ताल है
मालिक मालामाल है।
उसको पड़ता घंटा मलाल है।
बंदों का उसकाे कहाँ ख्याल है।
यह मालिक की सोची समझी चाल है।
यह कैसा सुर है, कैसी ताल है
कर्मचारी बदहाल है।
बेवजह तनाव से बेहाल है।
सपने में देख रहा अस्पताल है
यहाँ संस्कृति बदहाल है।
अपनी चला रहा है ,
यहाँ सलाहकार, दलाल है।
यह कैसा सुर है, कैसी ताल है
सीधे काम को, जलेबी जैसी बनाना,
यह तो लोगों का अंदाज है।
नासमझ होकर भी लोगों का ,
समझदार दिखना अंदाज है।
काम छोड़कर,
अपने धन्धे में, बन्दे मालामाल हैं।
कहते हैं, अपनी हाथी जैसी चाल है।
यहाँ पर लोगों की यह ताल है।
यहाँ संस्कृति बदहाल है।
"नासमझ" की भी एक चाल है।
यह कैसा सुर है, कैसी ताल है
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 16 मार्च 2024, ©
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