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कल्याण (Welfare)
मेरो राम, तेरो घनश्याम।
कहीं हैं केवट, कहीं सुदामा।
कहीं निषादराज, कहीं सबरी।
सदा साथ लाऐ है भगवान्।
कहीं शिवालय, कहीं दैवियां
पूज रहा सनातनी यजमान।
एक अयोध्या, एक है मथुरा
कहीं है काशी, कभी है जम्मू।
सब में ही है करुणानिधान।
क्यों दर दर भटक रहा इंसान।
सबके अन्दर है बैठा ,
जब साक्षात भगवान्।
क्यों दर दर भटक रहा इंसान।
अमीर जाऐ गर्भगृह तक।
चढ़ा रहा धनधान्य।
क्या भूल रहा इंसान।
जिसने दिया तुझे यह सब,
कैसे करता है अर्पण धनवान।
क्या तुझसे मांग रहा भगवान्।
क्या धन वाले की ही होते भगवान्।
क्या धन देने से ही आते ,
धनी तेरे घर भगवान्।
गरीब बैठ मंदिर के बाहर,
ढूंढ रहा,
कहां है मेरा भगवान्।
क्यों अन्दर जाने से रोक रहा इंसान।
भगवान् के मूर्त दर्शन को भी
क्यों जाति,कुल ढूंढ रहा इंसान।
जब केवल पूज रहा लक्ष्मी जी ।
पास बिठा रहा केवल धनवान।
फिर कैसे मिले तुझको ज्ञान।
किस - किसके अन्दर बैठे हैं भगवान्।
मन्दिरों में पटा पड़ा धन धान्य।
हमारा देश ले रहा कर्ज विदेशों से
तड़प रहा गरीबी में इंसान।
फिर कैसा है मंदिरों के पैसे का अभिमान।
मंदिरों के पैसे का उपयोग करो।
और बढ़ाओ देश का सम्मान।
वरना रोक दे, देना चंदा ऐ इंसान।
"नासमझ" पूछ रहा सबसे,
कैसे हो ऐसे में सबका कल्याण।
कैसे होगा सनातनी तेरा कल्याण।
जब पहचान नहीं है तुझको,
सबके अन्दर बैठा है भगवान्।
फिर कैसा ऊंच नीच का अभिमान।
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 22 जनवरी 2024, ©
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