#H080
चिठ्ठी (Letter)
यार जब परदेश जाऐ।
परदेश में बाप,
काम पर समय बिताऐ।
बेटा पढ़ने जाऐ विदेश,
बहुत समय से जब आऐ ,
न चिट्ठी, न संदेश।
घर पर हर कोई घबराऐ।
फिर चिठ्ठी ही यह डर दूर भगाऐ।
चिठ्ठी लिखने वाला जुड़ जाऐ,
आंखों में आंसू भी लाऐ।
पढ़ने वाला भी जुड़ जाऐ।
चिठ्ठी आंसुओं से भीग जाऐ।
जज्बातों को भरपूर जगाऐ।
भेजने वाले को सामने ही पाऐ।
आने का इन्तजार कराऐ।
डाकिया देख दिल खुश हो जाऐ।
क्या आज यह मेरी चिठ्ठी लाऐ?
अच्छी और बुरी ,
दोनों तरह की खबरों को लाये।
पैसे आने की खबर बताऐ।
या फिर पैसे भेजने की,
अर्जी भी लगाऐ।
पढ़वाने को भी किसी ओर के पास जाऐ।
जब लिखना पढ़ना ना आऐ।
पढ़ने वाला भी पढ़ जज्बाती हो जाऐ।
शब्दों को अपने अनुसार बताऐ।
ऐसे शख्स से भी,
एक अलग सा नाता बन जाऐ।
चिठ्ठी आंसू भी दिखलाये।
बढ़ते बच्चों की तस्वीर बनाये।
प्रियतम का चेहरा दिखलाये।
घर की दिक्कतें भी समझाऐ।
दूर रहने पर भी
एक दूजे से चिपकाऐ।
कोना फटे खत की कौन याद दिलाऐ।
तार के शब्दों को कैसे छोटा कर पाऐ।
ऐसा होने पर,
बुरा होने की बात बताऐ।
कभी कभी मेहमान घर पे आये।
सबको फिर चौंकाये।
जब यह बतलाऐ,
आने की चिठ्ठी तो
महीना भर पहले भिजवाऐ।
अब तो हर कोई बतलाकर ही आऐ।
चौकाने का मौका,
अब न कोई पाये।
जब से मोबाइल आये।
बोलो क्या हाल है,
सब ठीक है।
बस यह बात करवाये।
भावनाओं को जड़ से
खत्म कराऐ।
जब से इमेल चलाऐ।
कितना भी अच्छा लिख जाऐ
चिठ्ठी जैसी तस्वीर न बन पाऐ।
शार्ट मैसेजिंग लाऐ।
सब कुछ छोटा ही लिखा जाऐ
भावनाऐं फिर कहाँ जुड़ पाऐं।
अब वीडियो कालिंग को लाऐ।
सब खुशहाल दिखलाऐ।
सच को फिर भी, न बतलाऐ।
जैसा पहले चिठ्ठी कर पाऐ।
वाट्सएप ने सब खत बन्द कराऐ।
चिठ्ठी तो बस सरकारी दफ्तर से आऐ।
तेरी मेरी चिठ्ठी कहाँ गुम हो गयीं।
"नासमझ" सोच - सोच मायूस हो जाये।
साधन बढ़ने पर भी,
आदम अपनों से न जुड़ पाऐ।
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 29 फरवरी 2024, ©
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