#H043
जनता ( Public)
गरीब की दरकार,
न पूछ रही सरकार।
होती है, दुष्ट की मनुहार,
लालची की दरकार,
न होती पूरी बारम्बार।
कोई नहीं होता,
जिसका पैरोकार।
जब साथ न आये परिवार,
वो प्यार में कैसे होगें, भागीदार।
जमीन के लिए लड़ते आऐ,
सदियों से आदम बारम्बार।
सड़क, रास्ते को कब्जाए,
सरकारी जमीन भी, इनसे बच पाए।
यह कैसा है, जनता का व्यवहार।
कैसे करे, निर्बल इन पर वार।
जब प्रशासन हो गया, निष्क्रिय,
चुनी गई, जब मौकापरस्ती में सरकार।
यह कैसा है, जनता का व्यवहार।
ऊपर वाला भी है, विचित्र रचनाकार।
भूखे को भोजन को तरसाए।
हर पल बढ़ता जाऐ, अमीर का व्यपार।
मौके पर चौका होता है,
सही समय पर बार।
गरीब लगाऐ, बस इसकी
ईश्वर से अंतिम गुहार।
निर्बल करे पुकार।
जनता देख रही है सब,
यह कैसा है, कुछ जन का व्यवहार।
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 17 दिसम्बर 2023, ©
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